कोरोना से जुड़े अहम सवाल
कोविड-19 से संबंधित मौतों को दर्ज करने केप्रोटोकॉल में लापरवाही का यह एक नमूना है. संशय इस बात को लेकर भी है किकेंद्र स्वयं कैसे इन आंकड़ों को दर्ज कर रहा है. आधिकारिक बयान दिया गयाकि अब महामारी का वक्र नीचे की तरफ हो जायेगा
टी जैकब जॉन, (रिटायर्ड प्रोफेसर क्लीनिकल विरोलॉजी, सीएमसी वेल्लोर)
जगदीश रत्नानी, (वरिष्ठ पत्रकार एवं फैकल्टी सदस्य, एसपीजेआइएमआर)
आंकड़ों को दर्ज करने के मामले में भारतीय स्वास्थ्य प्रबंधन तंत्र कभीअच्छा नहीं रहा. वर्षों से कई बीमारियों के मामलों को दर्ज करने मेंअघोषित पूर्वाग्रह की स्थिति रही है. यह स्थिति कोविड-19 महामारी में भीजारी है. उदाहरण के तौर पर देखें, तो तेलंगाना में छह डॉक्टरों ने लिखा कि कैसे राज्य के कुल आंकड़ों में कोविड-19 से होनेवाली मौतों का जिक्रनहीं किया जा रहा है. कोविड-19 से संबंधित मौतों को दर्ज करने केप्रोटोकॉल में लापरवाही का यह एक नमूना है. संशय इस बात को लेकर भी है किकेंद्र स्वयं कैसे इन आंकड़ों को दर्ज कर रहा है. आधिकारिक बयान दिया गयाकि अब महामारी का वक्र नीचे की तरफ हो जायेगा. मेडिकल प्रबंधन पर सरकारकी सशक्त समिति ने 24 अप्रैल के सप्ताहांत में अनुमान लगाया कि मई केआखिर तक महामारी खत्म हो जायेगी. कुछ अज्ञात कारणों से सरकार ने 5 मई कोघोषणा कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट पर कोविड-19से जुड़े मामलों को रोजाना दो बार दर्ज करने की बजाय अब एक बार ही आद्यतनकिया जायेगा.
कोविड-19 से जुड़े मामलों की संख्या और इससे उत्पन्न कठिनाई, एकमहत्वपूर्ण मुद्दा है, जिस पर खुलकर चर्चा करने की जरूरत है. एक तरफमौतों के दर्ज आंकड़े भारत की जनसंख्या के अनुपात में काफी कम है. यह एकतर्क है कि अगर कम मामले दर्ज हो रहे हैं, तो मौतों के मामले बंद नहीं होसकते. हमारी स्थिति कुछ विकसित देशों जैसी खराब नहीं हुई है, यह किनवजहों से है, हम नहीं जानते या समझते हैं. क्या सार्वजनिक बीसीजी टीकाकरणकी वजह से कुछ प्रतिरक्षा प्राप्त हुई है?दूसरी ओर, लग रहा है कि भारत में मामलों के दोगुना होने की दर इटली केमुकाबले तेज हो चुकी है. भारत में 24 मार्च से 30 अप्रैल के बीच संक्रमणके मामले 257 से बढ़कर 34,863 हो गये. यह अवधि लॉकडाउन के पहले और पिछलीमहीने के अंत तक की है. इटली में 1 मार्च को जहां 1694 मामले थे, वह 30अप्रैल को 205463 हो गये, यानी इसमें सात गुना की बढ़ोतरी हुई.
संक्षेप में देखें, तो इटली में मामलों के सात गुना बढ़ने में आठ हफ्तेलगे, जबकि भारत में सात गुना मामले पांच हफ्ते में ही हो गये. भारत 25मार्च से लॉकडाउन में था. इटली और भारत में महामारी बढ़ने की दर कुलमिलाकर एक जैसी ही थी, लेकिन भारत में थोड़ा अधिक रही. इन निष्कर्षों सेस्पष्ट है कि हम बैठे हुए हैं और हमें मुश्किलों में डालने वाले आंकड़ेतेजी से बढ़ रहे हैं.आंकड़े की पहेली हमें एक अन्य हिस्से में ले जाती है. बीते चार मई कोकेंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि सभी बंद मामलों के लिएनतीजा अनुपात (स्वस्थ्य हो चुके लोगों के अनुपात में मृत्यु) से स्पष्टहै कि अस्पतालों में क्लीनिकल मैनेजमेंट बेहतर हुआ है. उन्होंने कहा किदेश में 17 अप्रैल, 2020 (नतीजा अनुपात 80:20 था) के बाद आज अनुपात 90:10है.
दूसरे दृष्टिकोण से देखें, तो तस्वीर बिल्कुल अलग दिखती है. विश्वस्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कोविड-19 के आज तक के मामलों से स्पष्ट है कि80 प्रतिशत संक्रमण बहुत कम या बिना लक्षण का है, जबकि 15 प्रतिशत मामलेगंभीर संक्रमण के हैं, जिसमें ऑक्सीजन की जरूरत होती है और पांच प्रतिशतअति गंभीर मामलों में वेंटिलेशन की आवश्यकता होती है. आम इन्फ्लूएंजा केमुकाबले इस प्रकार के संक्रमण की गंभीरता अधिक है. डब्ल्यूएचओ मानता हैकि कोविड-19 से होनेवाली मौतों के मामलों को पूरी तरह से समझने में अभीसमय लगेगा. अभी तक आंकड़ों से अशोधित मृत्य अनुपात (मौतों के दर्ज मामलोंको कुल संक्रमण के मामलों से भाग देने पर) तीन से चार प्रतिशत के बीच मेंहै. भारत में पांच मई को मौतों के कुल मामले 1568 दर्ज किये गये यानी मौतकी स्थिति में पहुंचने में मरीज को करीब तीन हफ्ते का समय लगा, जिसमें एकहफ्ता इन्क्यूबेशन में, लक्षणों के उभरने में एक सप्ताह और अगले एक हफ्तेमें स्थिति गंभीर हो गयी, जो मौत का कारण बनी.
अगर 1568 कुल मामलों काचार प्रतिशत है, तो संक्रमण के कुल मामले 39200 (1568×25) होने चाहिए.लेकिन, तीन हफ्ते पहले 14 अप्रैल को मामलों की संख्या 11487 ही थी, जो39200 का मात्र 30 प्रतिशत है. फिर नंबर कैसे जुड़ते हैं? अगर दर्ज कियेगये मामलों की संख्या सही है, तो भारत में मौतों का आंकड़ा 14 प्रतिशत(यानी 1568 /11487) बैठता है, जो कि बहुत डरावना है.जिस तरह आंकड़े आ रहे हैं, कहीं कुछ गड़बड़ है. यह केवल चिंताजनक इसलिएनहीं है कि मामले गलत तरीके से रिपोर्ट किये जा रहे हैं, बल्कि अगर हममामलों को सही तरीके से दर्ज नहीं करेंगे या आंकड़ों के निष्कर्ष परचर्चा नहीं करेंगे, तो महामारी के खिलाफ लड़ाई प्रभावित होगी. हालांकि,यह नहीं कहा जा सकता है कि जानबूझकर इसे छिपाया जा रहा है, लेकिनपक्षपातपूर्ण गणना की संभावना से इनकार भी नहीं किया जासकता है. हो सकता है कि कमजोर सिस्टम दबाव की वजह से सही रिपोर्ट न कर पारहा हो.
इसके अलावा संसाधनों की कमी, तनाव, आधिकारिक परिपत्रों से असमंजसपैदा करनेवाले दिशा-निर्देश आदि कारण हो सकते हैं.राज्य सरकारों को प्रोत्साहित करने का एक सामान्य नियम होना चाहिए कि वेमुक्त और स्वतंत्र होकर मामलों को दर्ज करें. जहां अधिक मामले हों, वेअधिक मदद और यहां तक कि धन की मांग कर सकें. ईमानदार और पारदर्शी आंकड़ोंका बाहर आना जरूरी है, जिससे महमारी से लड़ाई में हमें बेहतर मदद मिलेगी.हमें यह समझना होगा कि महामारी का समय आंकड़ों के हेरफेर का नहीं है.आइए, हम इस बीमारी का इलाज करें. आंकड़े से इस बीमारी की सही स्थिति कोदर्शायें. आगे यही सबसे अच्छा तरीका है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)