वीर बाल दिवस 2023: गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादों का अतुलनीय बलिदान, पढ़ें बाबूलाल मरांडी का लेख
गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादे जोरावर सिंह जी व साहिबजादे फतेह सिंह जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि. आइए, हम सब अपने आदर्शों के सामने संकल्प लें कि वीर साहिबजादों के बलिदान को अपना आदर्श मानकर उनके दिखाये हुए मार्ग में निरंतर प्रशस्त होंगे.
बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री झारखंड: हजारों वर्षों का विश्व का इतिहास क्रूरता के खौफनाक अध्यायों से भरा पड़ा है. यह अतीत हजारों वर्ष पुराना नहीं है कि समय के पहियों ने चमकौर और सरहिंद के युद्ध की रेखाओं को धुंधला कर दिया हो. जहां एक ओर धार्मिक कट्टरता और उसमें अंधी होकर बढ़ी मुगल सल्तनत थी, तो वहीं दूसरी ओर ज्ञान और तपस्या में तपे हुए हमारे गुरु थे, जहां एक ओर आतंक की पराकाष्ठा थी, तो वहीं दूसरी ओर अध्यात्म का शीर्ष था! और, जहां एक ओर लाखों की फौज थी, तो वहीं दूसरी ओर अकेले होकर भी निडर खड़े गुरु के वीर साहिबजादे थे! गुरु गोबिंद सिंह जी के दो साहिबजादे 26 दिसंबर, 1705 को शहीद हुए. साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह को वजीर खान ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था. कल्पना कीजिए कि साहिबजादा जोरावर सिंह साहब और साहिबजादा फतेह सिंह साहब जैसे कम उम्र के बालकों से औरंगजेब और उसकी सल्तनत की क्या दुश्मनी हो सकती थी? दो निर्दोष बालकों को दीवार में जिंदा चुनवाने जैसी दरिंदगी क्यों की गयी? ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि औरंगजेब और उसके लोग गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादों का धर्म तलवार के दम पर बदलना चाहते थे. लेकिन, भारत के वीर बेटे मौत से भी नहीं घबराये. वे दीवार में जिंदा चुन गये, लेकिन उन्होंने धार्मिक कट्टरता के मंसूबों को हमेशा के लिए दफन कर दिया.
किसी भी राष्ट्र की पहचान उसके सिद्धांतों, मूल्यों और आदर्शों से होती है. हमने इतिहास में बार-बार ऐसा देखा है कि जब किसी राष्ट्र के मूल्य बदल जाते हैं, तो कुछ ही समय में उसका भविष्य भी बदल जाता है. और, ये मूल्य सुरक्षित तब रहते हैं, जब वर्तमान पीढ़ी के सामने अपने अतीत के आदर्श स्पष्ट होते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने वर्तमान पीढ़ी के आदर्श के रूप में गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर 26 दिसंबर को दोनों साहिबजादों (साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह) की शहादत को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की, तथा वीर बाल दिवस के महत्व को बताते हुए कहा, ‘वीर बाल दिवस हमें याद दिलायेगा कि शौर्य की पराकाष्ठा के समय कम आयु मायने नहीं रखती, यह हमें याद दिलायेगा कि दस गुरुओं का योगदान क्या है, देश के स्वाभिमान के लिए सिख परंपरा का बलिदान क्या है. वीर बाल दिवस हमें बतायेगा कि भारत क्या है, भारत की पहचान क्या है.’
लेकिन एक सच यह भी है कि हमारा इतिहास और आदर्श पिछले 70 वर्षों तक हमें तय नहीं करने दिया गया. भारत के वीर एवं वीर सपूतों के बलिदानों को इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज होने से रोका गया. हमारी संस्कृति और नैतिकता को नष्ट करने के प्रयास से आक्रमणकारी राजाओं के उगले विषों को पहले शब्दों में पिरोया गया, फिर उसके बाद उसे किताबों और खुले मंचों पर परोसा गया. अंग्रेजी एवं मुगल हुकूमत के जागीरदारों द्वारा अपने मनमुताबिक ऐतिहासिक तथ्यों के साथ खिलवाड़ किया गया. सच को परदे में रखकर मनगढ़ंत कहानियों द्वारा झूठ का व्यापार किया गया. हमारी आस्थाओं और विश्वासों को राजाओं की कब्रों में दफनाकर भारतीयों की पहचान को मिटाने का प्रयास किया गया. लेकिन उनको यह अहसास नहीं था कि सच पर झूठ की कितनी कालिख क्यों न पोत दी जाए, सच अपने आप उभरकर सामने आ ही जाता है.
हम जान देकर, औरों की जानें बचा चले।
सिखी की नींव हम हैं, सर ऊपर उठा चलें।।
वाहे गुरु दा खालसा, वाहे गुरु दी फतेह!!
गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादे जोरावर सिंह जी व साहिबजादे फतेह सिंह जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि. आइए, हम सब अपने आदर्शों के सामने संकल्प लें कि वीर साहिबजादों के बलिदान को अपना आदर्श मानकर उनके दिखाये हुए मार्ग में निरंतर प्रशस्त होंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)