पिछले कुछ दशकों में भारत ने आर्थिक विकास की जो कहानी लिखी है उसने सारी दुनिया का ध्यान खींचा है. चाहे इस सदी के पहले दशक में अमेरिका से शुरू हुई आर्थिक मंदी रही हो जिसने सारी दुनिया को चपेट में ले लिया, या कोरोना महामारी के समय मचा आर्थिक हाहाकार हो, भारत अपने पैरों पर टिका रहा. आज भी जब जर्मनी जैसी आर्थिक महाशक्तियों से लेकर चीन तक आर्थिक मोर्चे पर जूझ रहा है, भारत लगातार विकास के पथ पर अग्रसर है. भारत के विकास की इस इमारत को खड़ा करने में सबसे बड़ा योगदान यहां के कामगारों का रहा है. चाहे पढ़े-लिखे कुशल पेशेवर लोग हों, या मजदूरी करने वाले श्रमिक, हर किसी ने अपने स्तर पर विकास में योगदान दिया है. मगर भारत में एक बड़ी चिंता महिला श्रम को लेकर जतायी जाती रही है.
कुल श्रम में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का हिस्सा बहुत कम रहा है और यह असंतुलन चिंता का कारण रहा है. लेकिन, पिछले दिनों एक रिपोर्ट में इस दिशा में प्रगति होने का संकेत मिला है. केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के कुल श्रम में महिला श्रमिकों की भागीदारी 4.2 प्रतिशत बढ़कर 37 प्रतिशत हो गयी है. कोरोना महामारी के पहले वर्ष 2019 में भारत में 21 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही थीं या काम की तलाश कर रही थीं. महिला और बाल कल्याण विकास मंत्रालय का कहना है कि यह वृद्धि महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक विकास के उद्देश्य से सरकार के नीतिगत प्रयासों की वजह से संभव हुई है. महिला श्रम की भागीदारी बढ़ने के बारे में आए यह आंकड़े उत्साहवर्धक हैं, लेकिन चुनौतियां बहुत बड़ी हैं.
विकास के मामले में भारत की ही तरह चीन का भी लोहा सारी दुनिया मानती है. भारत की ही तरह चीन में भी विकास की इमारत वहां के विशाल श्रम की बुनियाद पर लिखी गयी. लेकिन चीन महिला श्रम के मामले में भारत से बहुत आगे है. चीन में 65 प्रतिशत महिलाएं काम करती हैं. पश्चिमी और विकसित देशों में यह भागीदारी और भी ज्यादा होती है. कुछ रिपोर्टों में यह भी बताया जाता रहा है कि भारत के पड़ोसी श्रीलंका और बांग्लादेश में भी कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत हमसे बेहतर है. भारत के वर्ष 2047 तक विकसित देश बनना चाहता है. अब समय आ गया है कि महिलाओं की श्रम में भागीदारी को बढ़ाने के लिए शिक्षा से लेकर उनके कार्यस्थलों पर सुविधाओं और माहौल को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया जाए.