वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 वायरस के कहर का गंभीर असर पड़ा है. सभी देशों में वृद्धि दर में कमोबेश गिरावट का दौर चल रहा है. इस स्थिति से उबरने में बहुत समय लग सकता है, क्योंकि महामारी की चुनौती बनी हुई है. यह बड़े संतोष की बात है कि ऐसे निराशाजनक माहौल में भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार की मजबूती तथा सरकार की लगातार कोशिशों से उद्योगों और निवेश का आना जारी है. सरकार ने अपने महत्वाकांक्षी कार्यक्रम ‘मेक इन इंडिया’ के तहत देश में निर्माण को प्रोत्साहित करने के सिलसिले में मार्च में इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं के निर्माताओं को करों में बड़ी छूट देकर भारत आने का निमंत्रण दिया था. इस योजना में ऐसी कंपनियों को अगले पांच सालों तक बढ़ती बिक्री का चार से छह फीसदी का भुगतान करना है.
इससे आकर्षित होकर लगभग दो दर्जन कंपनियों ने देश में मोबाइल फोन बनाने के लिए डेढ़ अरब डॉलर के निवेश की मंशा जाहिर की है. सरकार ने फार्मास्यूटिकल कारोबारों के लिए भी ऐसी छूटों की घोषणा की है और उम्मीद है कि आगामी दिनों में वाहन, वस्त्र और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों के लिए भी इसी तरह की नीतियां सामने आ सकती हैं. पिछले महीने भारत-अमेरिका व्यापार सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी व अन्य देशों की कंपनियों को भारत आने का आह्वान किया था. उल्लेखनीय है कि कोरोना संकट से जूझते हुए लॉकडाउन के दिनों में अप्रैल से जुलाई के बीच देश में बीस अरब डॉलर से अधिक का विदेशी निवेश हुआ है.
विदेशी कंपनियों और निवेशकों का यह रुख इंगित करता है कि उनमें भारत के विकास के प्रति विश्वास बरकरार है. शेयर बाजार की स्थिरता और बढ़त से भी ऐसे भरोसे की पुष्टि होती है. महामारी और अन्य कुछ कारणों से घरेलू मांग फिलहाल कम है और देशी निवेशक पूंजी लगाने में संकोच कर रहे हैं. जानकारों का मानना है कि बाहर से कंपनियों के आने तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ने से देशी उद्योगों और वित्तीय निवेशकों का हौसला भी बढ़ेगा. यह अकारण नहीं है कि कोरोना काल के बाद निकट भविष्य में जिन अर्थव्यवस्थाओं में तेज बढ़ोतरी की संभावना है, उनमें भारत प्रमुख है.
अमेरिका और चीन के बीच गहराते व्यापार युद्ध तथा कोरोना वायरस के फैलने से उत्पन्न हुई परिस्थितियों में अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला के केंद्र को चीन से हटा कर अनेक देशों से जोड़ने की जरूरत पैदा हुई है. हालांकि अभी वियतनाम, कंबोडिया, म्यांमार, बांग्लादेश और थाईलैंड इसके सबसे बड़े लाभार्थी हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में कंपनियां इन देशों का रुख कर रही हैं, लेकिन धीरे-धीरे भारत भी इस सूची में तेजी से आगे बढ़ रहा है. स्थानीय उत्पादन व उपभोग तथा आत्मनिर्भरता के संकल्प ने भी इसमें योगदान किया है. निवेश और निर्माण की खपत के लिए भारत में बड़ा बाजार तो है ही, निर्यात के लिए भी यह आधार केंद्र बनने की क्षमता रखता है.