उद्यमिता का क्षेत्र व्यापक है, इसलिए कौशलों के प्रकार भी बहुत हैं. युवा अपनी दिलचस्पी और जरूरत के मुताबिक चयन कर सकते हैं. जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है, सीखने की यह प्रक्रिया लगातार चलती रहनी चाहिए. पांच साल पहले केंद्र सरकार ने स्किल इंडिया मिशन की शुरुआत की थी, जिसके तहत अब तक लाखों लोगों को प्रशिक्षित किया जा चुका है. इससे प्रेरित होकर कई राज्य सरकारों तथा औद्योगिक समूहों द्वारा भी अपने स्तर पर लोगों को कौशलयुक्त करने के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं.
कुछ दिन पहले कुशल कामगारों के लिए एक वेब-पोर्टल भी शुरू हुआ है. इससे एक तो कौशल की उपलब्धता की जानकारी मिल सकेगी, वहीं कंपनियों को आसानी से जरूरत के हिसाब से कामगार मिल सकेंगे. लॉकडाउन ने औद्योगिक और कारोबारी गतिविधियों को तो नुकसान पहुंचाया ही है, प्रवासी कामगारों की वापसी से भी नयी चुनौतियां पैदा हुई हैं. उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार देने की कोशिशें तेजी से हो रही हैं. उनमें बहुत से लोग अकुशल भी हैं.
यदि कौशल हासिल करने पर जोर दिया गया, तो भविष्य में इस तरह की समस्याओं का सामना आसानी से किया जा सकता है. आत्मनिर्भरता के साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि हम उत्पादन का निर्यात भी कर सकें ताकि निवेश व समृद्धि के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि दूसरे देशों की जरूरतों की जानकारी मुहैया करायी जायेगी, ताकि उनके अनुसार उत्पादन को बढ़ावा मिले और उसी हिसाब से कौशल भी सीखा जाये. ऐसा कर हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी मजबूत जगह बना सकते हैं.
हम सभी जानते हैं कि न तो हमारे पास संसाधनों की कमी है और न ही कामगारों की. समुचित निवेश की उपलब्धता भी है. इसके बावजूद उत्पादन में अनेक देशों से पीछे होने की एक बड़ी वजह हमारे कामगारों का अकुशल होना है. हमारे देश के कुल कार्यबल में महज 2.3 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिनके पास कामकाजी कौशल है. इस तथ्य के आलोक में देखें, तो कौशल सीखने पर प्रधानमंत्री के जोर देने तथा स्किल इंडिया जैसी पहलों की अहमियत को समझा जा सकता है. युवा पीढ़ी को कौशलयुक्त बनाने के लिए सरकार, उद्योग जगत और समाज को मिलजुल कर काम करने की जरूरत है.