अविवाहित रहने की बढ़ती आकांक्षा
विवाह न करने का असर अभी तो महसूस नहीं होगा, तीन दशकों के बाद इसके परिणाम सामने आयेंगे. जब युवा पीढ़ी उम्रदराज होगी, उसका शरीर व मन थकने लगेगा, मस्तिष्क वृद्ध होने लगेगा, तब उनके पास कोई भी नहीं होगा.
राष्ट्रीय सांख्यिकी रिपोर्ट में सामने आया है कि बीते कुछ वर्षों में अविवाहित रहने की चाहत रखने वाले युवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है. सर्वे के अनुसार, 15-29 आयु वर्ग के अविवाहित युवाओं का अनुपात 2019 में बढ़कर 23 प्रतिशत हो गया, जो 2011 में 17.2 प्रतिशत था. अविवाहित युवाओं की संख्या और तेजी से बढ़ेगी, जो समाज के लिए बहुत दुखद बात है.
समाज किसी निर्जीव वस्तु का नाम नहीं है. समाज, समाज के लोगों से बनता है. जब व्यक्तिश: लिये गये निर्णय समूहगत निर्णय में परिवर्तित होने लगते हैं, तो वे न केवल समाज को सकारात्मक या नकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, अपितु समाज की पूरी दिशा को भी परिवर्तित कर देते हैं.
यह प्रश्न स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों हो रहा है? इसका पहला कारण है कि युवा पीढ़ी लगभग दो दशकों से अपना आदर्श पश्चिमी संस्कृति को मानती आ रही है. प्यू रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में पिछले पांच वर्षों में तलाक की दर दोगुनी हो गयी है. आधे से अधिक अमेरिकी शादी को महत्वपूर्ण तो मानते हैं, लेकिन जीवन को पूर्णता में जीने के लिए वे इसे आवश्यक नहीं मानते. अमूमन ऐसी ही स्थिति भारत में भी होती जा रही है, क्योंकि यहां तलाक की दर बहुत बढ़ रही है.
ऐसे में युवाओं के मन में भय उत्पन्न हो गया है कि शादी का अंतिम परिणाम यदि अलग होना है, तो इसमें प्रवेश ही क्यों किया जाये. दूसरा, आज जो युवा पीढ़ी है, उसकी जिस तरीके से परवरिश हुई है, उसने उन्हें बहुत अधिक बदल दिया है. इसके दोषी अकेले युवा पीढ़ी नहीं हैं. पहले जो पारिवारिक व्यवस्था थी, वह परिवार केंद्रित थी. इसमें संयुक्त परिवारों का महत्व था.
उसके बाद वह अभिभावक केंद्रित हो गयी. बीते दो-तीन दशकों में वह बाल केंद्रित हो गयी है, जिसका उद्देश्य हर समय बच्चों को महत्व देते हुए उसकी समस्त आकांक्षाओं की पूर्ति है. आकांक्षाओं की पूर्ति में बच्चा ‘नहीं’ जैसे शब्द से परिचित ही नहीं हुआ. अब जब नहीं, अस्वीकारिता जैसे शब्द उसके शब्दकोश में थे ही नहीं, तो इससे स्वाभाविक तौर पर सामंजस्य, समर्पण और त्याग ये तीनों ही शब्द स्वत: ही उसके जीवन से समाप्त हो गये.
जब किसी के व्यक्तित्व में ये तीनों ही चीजें नहीं हैं, तो वह किसी भी स्थिति में परिवार निर्मित नहीं कर सकता. परिवार के निर्माण के तीन मूलभूत आधार हैं- सामंजस्य, समर्पण और त्याग. युवा पीढ़ी में तलाक के मामले इन्हीं तीनों बिंदुओं के अभाव के कारण बढ़े हैं तीसरा, आज से दो-तीन दशक पूर्व लड़कियों के जीवन का उद्देश्य एक खास उम्र के बाद विवाह करना होता था, क्योंकि माना जाता था कि विवाह जीवन में स्थिरता और आर्थिक सुदृढ़ता लाता है.
परिवार, समाज की सोच बदली और लड़कियों को पढ़ाया जाने लगा, यह बहुत आवश्यक भी था. परंतु, इसकी परिणति यह हुई कि अब लड़कियां विवाह को एक विकल्प के तौर पर देखती हैं, अपने जीवन के ध्येय के तौर पर नहीं. क्योंकि अब लड़कियां आर्थिक रूप से स्वावलंबी होने लगी हैं. अमेरिका की फर्टिलिटी एंड फैमिली ब्रांच की 2018 की एक रिपोर्ट कहती है कि यह मन:स्थिति पूरे विश्व में बन चुकी है, यह केवल भारत की बात नहीं है.
अब आर्थिक सुदृढ़ता पहली प्राथमिकता हो गयी है. युवाओं के लिए विवाह दूसरा विकल्प है. कई बार तो भौतिक संसाधनों का जुगाड़ करते-करते इतनी देर हो जाती है कि युवाओं की नजर में विवाह का औचित्य ही समाप्त हो जाता है. चौथा कारण सोशल मीडिया है. पहले व्यक्ति परिवार इसलिए बनाना चाहता था क्योंकि वह उसे अपने दुख-सुख का साथी मानता था. उसके समय व्यतीत करने का एक माध्यम था परिवार.
वह मानता था कि परिवार में रच-बस कर उसका व्यक्तित्व संपूर्ण हुआ. पर आज सोशल मीडिया ने उसे सारे विकल्प उपलब्ध करा दिये हैं. अब व्यक्ति अकेला होते हुए भी स्वयं को कम अकेला महसूस करता है. पांचवां कारण महंगाई व आर्थिक सुरक्षा है. वर्ष 2020 में अमेरिका में हुए एक अध्ययन के अनुसार, युवा मानते हैं कि शादी जरूरी है, पर उससे भी ज्यादा जरूरी है आर्थिक सुरक्षा.
चूंकि, परवरिश का तरीका बदला, ना सुनने की आदत, सामंजस्य की आदत समाप्त हुई, सो युवा पीढ़ी कमिटमेंट करने से डरने लगी है. वह किसी भी प्रकार के भावनात्मक दायित्व के निर्वहन से भयभीत है. उनके शब्दों में यह सब झमेला है. पहले विवाह करने का एक बड़ा कारण शारीरिक सुखों की प्राप्ति भी था, पर अब लोगों की सोच शारीरिक संबंधों को लेकर बहुत उन्मुक्त हो चुकी है.
जब यह सुख बिना विवाह किये ही प्राप्त हो सकता है, तो युवा पीढ़ी विवाह बंधन में भला क्यों बंधना चाहेगी. एक और बात, शादी ना करने का फैसला पूरी तरह से विवाह संस्था से मोहभंग होना है. इसका कारण अधिकांश परिवारों में सामंजस्य की कमी के कारण विवाहों का ढोया जाना है. इस सोच का प्रभाव समाज पर बहुत नकारात्मक पड़ेगा.
प्रसिद्ध समाजशास्त्री इमाईल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘सुसाइड’ में लिखा था कि विवाहित पुरुषों की अपेक्षा अविवाहित युवा अधिक आत्महत्या करते हैं, क्योंकि विवाह भावनात्मक सुरक्षा देता है, अकेलापन दूर करता है. विवाह न करने का असर अभी तो महसूस नहीं होगा, तीन दशकों के बाद इसके परिणाम सामने आयेंगे. जब युवा पीढ़ी उम्रदराज होगी, उसका शरीर व मन थकने लगेगा, मस्तिष्क वृद्ध होने लगेगा, तब उनके पास कोई भी नहीं होगा.