बुधवार को संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्लास्टिक बोतलों को रिसाइकिल कर बनायी गयी जैकेट पहन कर सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण संदेश दिया है. प्लास्टिक आज एक बड़ी जरूरत है, पर इस्तेमाल प्लास्टिक को अगर फिर से उपयोग करने लायक नहीं बनाया गया, तो इससे बहुत बड़ा पर्यावरण संकट पैदा हो सकता है.
इसकी वजह यह है कि प्लास्टिक को खत्म होने में सैकड़ों साल लग जाते हैं. सरकार ने इस संबंध में तीन रणनीति बनायी है- एक, सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक; दूसरा, प्लास्टिक के उपभोग को कम करना तथा तीसरा, प्लास्टिक रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देना. बेंगलुरु में चल रहे भारत ऊर्जा सप्ताह के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने रिसाइकिल किये गये प्लास्टिक के कपड़ों का शुभारंभ किया था.
उन्होंने रेखांकित किया है कि भारतीय परंपरा में चीजों के कम उपभोग, बार-बार उपभोग और रिसाइकिल कर उपभोग करने के मूल्य हमेशा से रहे हैं. लेकिन हमारे देश में प्लास्टिक के प्रबंधन की स्थिति संतोषजनक नहीं है. सबसे बड़ी समस्या प्लास्टिक कचरे के संग्रहण की है. इसकी कोई समुचित व्यवस्था नहीं है और यह काम मुख्य रूप से कचरा बीनने वाले लोग करते हैं. अध्ययनों में पाया गया है कि 68 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे का कोई हिसाब ही नहीं होता.
हालांकि भारत सरकार का यह दावा रहा है कि देश में 60 प्रतिशत तक प्लास्टिक कचरा रिसाइकिल किया जाता है, लेकिन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि यह खास तरह की बोतलों तक ही सीमित है. रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि हम मात्र 12 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल कर पा रहे हैं. जो बड़ी कंपनियां प्लास्टिक उत्पादन में लगी हैं, रिसाइकिल सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी है. पर वे किसी तीसरी कंपनी को ठेका देकर निश्चिंत हो जाती हैं.
यह भी बेहद चिंताजनक है कि 20 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा जला दिया जाता है. यह पहले से ही संकटग्रस्त पर्यावरण के अत्यधिक घातक है. साथ ही, मानव स्वास्थ्य पर भी इसके गंभीर असर होते हैं. पिछले साल अगस्त में सरकार की ओर से जानकारी दी गयी थी कि 2019-20 में देश में लगभग 35 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ था,
जिसमें से लगभग 16 लाख टन को रिसाइकिल किया गया और 1.67 लाख टन को संयुक्त रूप से प्रसंस्कृत किया गया. इसमें उस कचरे का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए, जो नालों, नदियों और समुद्र में बहता है, जलाया जाता है या कचरे का ढेर बन जाता है. कुछ दिन पहले प्रकाशित प्लास्टिक वेस्ट मेकर्स इंडेक्स में बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर पहले से कहीं अधिक सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है.