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राज्यों पर बढ़ता कर्ज

पंजाब, राजस्थान, केरल, पश्चिम बंगाल, बिहार, आंध्र प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा पर सबसे अधिक कर्ज का बोझ है.

देश के दस राज्य भारी कर्ज के दबाव में हैं और इससे उनकी वित्तीय स्थिति असंतुलित हो सकती है. भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि इन राज्यों में सभी सूचक निराशाजनक संकेत दे रहे हैं. इनमें सबसे खराब स्थिति पंजाब की है, जहां 2026-27 में कर्ज और राज्य के सकल घरेलू उत्पादन (एसजीडीपी) का अनुपात 45 प्रतिशत से अधिक हो जाने का अनुमान है. इस अवधि तक राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल में यह अनुपात 35 प्रतिशत से अधिक हो सकता है.

देश के केंद्रीय बैंक ने अपने अध्ययन में कहा है कि वित्तीय स्थिति को और ज्यादा डगमगाने से बचाने के लिए ठोस उपाय किये जाने चाहिए. इन राज्यों को अपने कर्ज स्तर को स्थिर करने को प्राथमिकता देनी चाहिए. इस अध्ययन में पाया गया है कि देश के दस राज्यों पर सबसे अधिक कर्ज का बोझ है. ये राज्य हैं- पंजाब, राजस्थान, केरल, पश्चिम बंगाल, बिहार, आंध्र प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा.

पूरे देश की सभी राज्य सरकारें जितना खर्च करती हैं, उसका लगभग आधा इन दस राज्यों में खर्च किया जाता है. आंध्र प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पंजाब ने वित्तवर्ष 2020-21 में 15वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित कर्ज और वित्तीय घाटे के लक्ष्यों को भी पार कर लिया. केरल, झारखंड और पश्चिम बंगाल ने निर्धारित लक्ष्य से अधिक कर्ज लिया, तो मध्य प्रदेश का वित्तीय घाटा तय हिसाब से ज्यादा रहा. हरियाणा और उत्तर प्रदेश लक्ष्यों के भीतर ही कर्ज और वित्तीय घाटे को रख सके.

रिजर्व बैंक का आकलन है कि राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल वर्तमान वित्तवर्ष 2022-23 में कर्ज और वित्तीय घाटे के लक्ष्य को लांघ सकते हैं. राज्यों द्वारा कर्ज लेने का मुख्य कारण यह होता है कि उनकी राजस्व प्राप्तियां और केंद्र से प्राप्त होने वाली राशि से उनका खर्च पूरा नहीं होता. ऐसे में वित्तीय घाटा भी बढ़ जाता है. मध्य प्रदेश, पंजाब और केरल की करों से होने वाली अपनी राजस्व प्राप्तियों में लगातार कमी आ रही है. पहले उल्लिखित दस राज्यों में से अधिकतर में गैर-कर राजस्व में भी गिरावट आ रही है.

इस स्थिति में ये राज्य अपने राजस्व का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा खर्च करने के लिए विवश होते हैं. ऐसे में खर्च की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है और पूंजी निर्माण भी नहीं हो पाता. यह जो खर्च होता है, उसका बड़ा हिस्सा ब्याज चुकाने, पेंशन देने और प्रशासनिक खर्च में चला जाता है. ऐसी स्थिति में यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि विकास कार्यों पर खर्च के लिए कम रकम बचती है. रिपोर्ट ने रेखांकित किया है कि अन्य राज्यों से इन दस राज्यों में विकास कार्यों पर खर्च बहुत कम है.

यदि इन राज्यों ने राजस्व बढ़ाने तथा कर्ज कम करने पर जोर नहीं दिया, तो अर्थव्यवस्था पर खराब प्रभाव पड़ेगा और विकास की गति धीमी हो जायेगी. रिजर्व बैंक के अध्ययन से निकले संदेश पर गौर करना चाहिए.

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