भारत सैन्य साजो-सामान के सबसे बड़े खरीदार देशों में है, लेकिन अब रक्षा क्षेत्र में हमारे निर्यात में भी तेज बढ़त हो रही है. साल 2016-17 में भारत ने 1521 करोड़ रुपये मूल्य के रक्षा उत्पाद अन्य देशों को बेचा था. दो साल में यानी 2018-19 में यह आंकड़ा 10,745 करोड़ रुपये हो गया यानी इस अवधि में निर्यात में 700 प्रतिशत की वृद्धि हुई. भारत शीर्ष के 20 रक्षा उत्पाद निर्यातक देशों की सूची में शामिल हो गया है. फिलहाल इसमें हमारा देश 19वें पायदान पर है. यह उपलब्धि इस अर्थ में और भी महत्वपूर्ण है कि केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने आत्मनिर्भर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प को साकार करने के लिए रक्षा उत्पादन और निर्यात को बढ़ाने के उद्देश्य से पिछले महीने एक विशेष नीति बनाया है. इसमें इस क्षेत्र का विस्तार कर 2025 तक टर्नओवर 1.75 लाख करोड़ रुपये तथा निर्यात 35 हजार करोड़ करने का लक्ष्य रखा गया है.
कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर होने की प्रतिबद्धता के परिणाम दिखने लगे हैं. घरेलू रक्षा उद्योग के लिए बड़ी मात्रा में आयात एक अहम चुनौती है. लेकिन सरकार ने इसे प्रोत्साहन देने के लिए 101 सैन्य साजो-सामान के आयात पर चरणबद्ध तरीके से पाबंदी लगाने का फैसला किया है. निवेश को सुगम बनाने के लिए अब सरकार ने रक्षा उद्योग में प्रत्यक्ष विदेश निवेश की सीमा को 49 से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने का बड़ा निर्णय लिया है, जिसकी घोषणा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मई में कोरोना संकट का सामना करने के विभिन्न उपायों व सुधारों का प्रस्ताव करते हुए ही कर दी थी.
अब इस पर कैबिनेट की मुहर लग गयी है. चूंकि राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से रक्षा क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए इस निर्णय के साथ यह नियमन भी कर दिया गया है कि सरकार को ऐसे निवेशों की समीक्षा का अधिकार होगा. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आने से निजी क्षेत्र के विस्तार का लाभ रक्षा उद्योग में लिया जा सकेगा. इसी क्रम में इस क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों को बेहतर करने की जरूरत है ताकि उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ाने के साथ उन्हें बदलते आर्थिक और तकनीकी रूझानों के अनुरूप बनाया जा सके.
सैन्य प्रमुख (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने ऐसी कंपनियों में सुधार की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा है कि कार्य संस्कृति और गुणवत्ता को स्तरीय बनाने के लिए ऐसा करना आवश्यक है. उन्होंने कुछ पुराने उपकरणों और तकनीकों को उन देशों को निर्यात करने का सुझाव भी दिया है, जिनकी रक्षा शक्ति कमजोर है. इससे हमारे यहां नयी तकनीक के लिए जगह भी बनेगी और निर्यात से रणनीतिक व सामरिक संबंधों को भी मजबूत किया जा सकेगा. उनकी यह बात भी बेहद अहम है कि ताकतवर देशों की पाबंदियों की चिंता से भी भारत को निकलना चाहिए और अपने हितों के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए.