क्षेत्रीय अखबारों का बढ़ता महत्व

पाठकों के बीच क्षेत्रीय अखबारों की पैठ यूं ही नहीं बनी है. अखबारों ने इसके लिए काफी काम किया है. दरअसल पाठकों ने महसूस किया कि राष्ट्रीय अखबारों ने उनकी जरूरत को बेहतर तरीके से या तो समझा नहीं है या समझने के बाद भी किसी कारण उसे उतना महत्व नहीं दिया, जितना पाठक उससे अपेक्षा करते थे.

By Anuj Kumar Sinha | August 14, 2024 11:09 AM

Regional newspapers : एक दौर था जब देश में राष्ट्रीय अखबारोें का बोलबाला था. समय के साथ-साथ इसमें बदलाव दिखा. राष्ट्रीय अखबारों का वर्चस्व कम हुआ और क्षेत्रीय अखबार धीरे-धीरे ताकतवर होते गये. क्षेत्रीय अखबारों का महत्व भी बढ़ता गया. यह बदलाव देश के हर हिस्से में दिखा. भाषाई अखबारों ने अपनी खबरों के बल पर पाठकों के बीच अपनी पकड़ बनायी. ऐसे अखबारों में मलयालम का मलयाला मनोरमा, तमिल का थांदी, तेलुगु का इनाडू, कन्नड़ का विजय कर्नाटक, बांग्ला का आनंद बाजार पत्रिका, मराठी का लोकमत प्रमुख है. ये सभी अपने-अपने क्षेत्र में पाठकों के लंबे समय से पसंदीदा अखबार रहे हैं और अभी भी हैं. अगर हिंदी की बात करें तो ऐसा ही ताकतवर और पाठकों का पसंदीदा अखबार है प्रभात खबर. झारखंड, बिहार और बंगाल से प्रकाशित होकर इस अखबार ने पिछले 40 सालों में देश की हिंदी पत्रकारिता में अपना एक खास स्थान बना लिया है. यह उन चंद अखबारों में शामिल है, जिसमें छपी खबरों का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है.


पाठकों के बीच क्षेत्रीय अखबारों की पैठ यूं ही नहीं बनी है. अखबारों ने इसके लिए काफी काम किया है. दरअसल पाठकों ने महसूस किया कि राष्ट्रीय अखबारों ने उनकी जरूरत को बेहतर तरीके से या तो समझा नहीं है या समझने के बाद भी किसी कारण उसे उतना महत्व नहीं दिया, जितना पाठक उससे अपेक्षा करते थे. क्षेत्रीय अखबारों ने इसके लिए एक रणनीति बनायी कि पाठकों के बीच उनकी पैठ कैसे बढ़े. प्रभात खबर भी उनमें से एक है. 1984 में प्रभात खबर की स्थापना रांची में उस समय हुई थी, जब झारखंड राज्य बना नहीं था और बिहार का हिस्सा था. झारखंड आंदोलन का दाैर था. झारखंड क्षेत्र में रहनेवालों का आरोप रहता था कि उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. झारखंडियों (आदिवासी-मूलवासी) की शिकायत रहती थी कि मीडिया में उनके मुद्दे नहीं आते. पानी, बिजली की कमी थी. शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों का बुरा हाल था. एक स्थानीय और क्षेत्रीय अखबार होने के नाते प्रभात खबर ने पाठकों के नब्ज को बेहतर तरीके से समझा, उन मुद्दों को अखबार में स्थान दिया. यही काम देश के अन्य क्षेत्रीय अखबार भी कर रहे थे. मुद्दों और जनहित की पत्रकारिता की.


जब झारखंड आंदोलन की बात आती थी, प्रभात खबर इसके समर्थन में खड़ा मिलता था. प्रभात खबर के प्रकाशन के पूर्व कोई अखबार आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के मुद्दों को स्थान नहीं देता था, जबकि झारखंड में इनकी आबादी अच्छी-खासी है. प्रभात खबर ने इस पाठक वर्ग को केंद्रित कर अखबार निकाला. 1990-95 तक पत्रकारिता में यह बात मान ली गयी थी कि स्थानीय खबरों की मांग ज्यादा रहेगी. बाकी राष्ट्रीय या अन्य खबरों की जानकारी टेलीविजन से मिल ही जाती थी. पाठक अपने आसपास की, अपने काम की खबरों, अपने रोजगार-शिक्षा की, स्थानीय राजनीति की खबरों को ज्यादा पसंद करने लगे थे. एक स्थानीय-क्षेत्रीय अखबार होने के नाते प्रभात खबर ने पाठकों की मांग-जरूरत को ध्यान में रख कर निष्पक्ष अखबार निकाला. भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार अखबार में रिपोर्ट छपी, जिससे यह संदेश गया कि यह अखबार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़नेवाला अखबार है. चूंकि दिग्गज राजनीतिज्ञों और शक्तिशाली ब्यूरोक्रैट्स के खिलाफ प्रभात खबर ज्यादा आक्रामक होता था, इसलिए पाठकों में यह धारणा बनी कि सच को सामने लाने में यह अखबार किसी से डरता नहीं है, समझौता नहीं करता, खुल कर लिखता है. प्रभात खबर की यही छवि राष्ट्रीय स्तर पर बनी.


कह सकते हैं कि क्षेत्रीय अखबार पाठकों के ज्यादा करीब होते हैं, जिला स्तर पर संस्करण होने के कारण पाठक और अखबार एक-दूसरे को बेहतर तरीके समझते हैं, आपस में कम्युनिकेशन बेहतर होता है, पाठकों को अखबारों में जगह ज्यादा मिलती है, स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा फोकस होता है. इन्हीं कारणों से ये क्षेत्रीय अखबार राष्ट्रीय अखबारों पर प्रसार के मामले में भी भारी पड़ते हैं. कोरोना काल में भी यह देखने को मिला. क्षेत्रीय अखबारों ने संकट के काल में अपने पाठकों का साथ दिया और न सिर्फ खबरों के जरिये, बल्कि सड़क पर उतर कर भी मदद की.

पाठकों ने इस बात को माना कि संकट में भी हमारे स्थानीय और क्षेत्रीय अखबार खड़ा रहे, जान बचाने में मदद की. ऐसे प्रयासों से पाठकों और क्षेत्रीय अखबार के संबंध मजबूत हुए. इसलिए जब कोरोना के बाद कुछ कारणों से पाठकों ने अखबारों को पढ़ना कुछ कम किया तो सबसे कम असर स्थानीय या क्षेत्रीय अखबारों पर पड़ा, जबकि राष्ट्रीय अखबारों पर सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ा.भले ही टीवी का जमाना हो, डिजिटल मीडिया का प्रभाव बढ़ रहा हो, सोशल मीडिया का चलन ज्यादा है, इसके बावजूद प्रभात खबर जैसे स्थानीय और क्षेत्रीय अखबार पाठकों की पहली पसंद है क्योंकि पाठक सच्ची खबर चाहते हैं, विश्वसनीय खबर चाहते हैं, वे चाहते हैं कि अखबार उनकी समस्या के निदान के लिए लड़े, जनहित के मुद्दों को मजबूती से उठाये और यही काम तो प्रभात खबर करता है.


अगर झारखंड, बिहार और बंगाल में प्रभात खबर एक मजबूत और विश्वसनीय अखबार के तौर पर अपनी पहचान बना चुका है, तो अन्य राज्यों में भी भाषाई अखबार अपने-अपने हिसाब से, अपनी रणनीति के तहत कार्य कर शक्तिशाली होते जा रहे हैं. प्रभात खबर अपनी 40वीं वर्षगांठ मना रहा है. इतने लंबे समय तक मजबूती से वही अखबार खड़ा रह पाता है, आगे बढ़ पाता है जो पाठकों के करीब हो. प्रभात खबर इन्हीं कारणों से आज झारखंड, बिहार और बंगाल का सबसे विश्वसनीय और चर्चित अखबार बन चुका है. एक ऐसा अखबार, जो भले ही क्षेत्रीय अखबार है लेकिन इसमें छपी खबरों, अखबारों द्वारा चलाये गये सामाजिक आंदोलनों, किये गये सामाजिक कार्यों के बल पर यह राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित अखबार माना जाता है. यही तो एक क्षेत्रीय अखबार की ताकत है.

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