बढ़ती नौसैनिक क्षमता
पिछले पांच साल में भारतीय नौसेना के आधुनिकीकरण के बजट का दो-तिहाई से अधिक भाग स्थानीय आपूर्ति पर खर्च हुआ है.
नौसेना में देश में निर्मित दो युद्धपोतों के शामिल होने से भारत की सैन्य क्षमता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सूरत और उदयगिरी नामक दो युद्धपोतों को नौसेना को सौंपा है. ये युद्धपोत मिसाइलों को नष्ट करने की अत्याधुनिक क्षमता से लैस हैं. बीते तीन सालों में देश में बने तीन युद्धपोत नौसैनिक बेड़े में शामिल किये जा चुके हैं.
अलग-अलग परियोजनाओं के नौ युद्धपोत निर्माणाधीन हैं. जैसा कि रक्षा मंत्री ने रेखांकित किया है, इन स्वदेशी युद्धपोतों का निर्माण सामुद्रिक क्षमता को बढ़ाने के सरकार के दृढ़ संकल्प को इंगित करते हैं. सरकार अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ रक्षा में भी आत्मनिर्भरता की नीति पर अग्रसर है. युद्धपोत हों या अन्य साजो-सामान, हम विदेशी खरीद पर बहुत अधिक निर्भर हैं.
ऐसे प्रयासों से यह निर्भरता कम होगी तथा रक्षा आयात पर पड़नेवाले भू-राजनीतिक प्रभावों से भी बचा जा सकेगा. युद्धपोतों के निर्माण की प्रक्रिया जटिल होती है तथा इसमें व्यापक तकनीक और कौशल का समावेश होता है. जिस गति से युद्धपोत बनाये जा रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि हमारा पोत उद्योग समुचित रूप से सक्षम है. इस उद्योग के विस्तार से जहां रक्षा क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर होगा, वहीं मालवाहक जहाजों के उत्पादन को भी प्रोत्साहन मिलेगा.
‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत भारतीय नौसेना ने 2014 में ही भारतीय ठेकेदारों को अधिकांश ठेके दिया था. उस समय से अब तक नौसेना के सैन्य साजो-सामान की जरूरत का लगभग 90 फीसदी हिस्सा घरेलू उत्पादक मुहैया करा रहे हैं. पिछले पांच साल में नौसेना के आधुनिकीकरण के बजट का दो-तिहाई से अधिक भाग स्थानीय आपूर्ति पर खर्च हुआ है. नौसेना ने जिन 41 जहाजों और पनडुब्बियों का ऑर्डर दिया है, उनमें से 39 का निर्माण भारत में ही हो रहा है.
भारत वैश्विक आपूर्ति शृंखला में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए कोशिश कर रहा है. इसमें मालवाहक जहाजों और बंदरगाहों की बड़ी भूमिका होगी. युद्धपोतों और अन्य जहाजों का निर्माण देश में रोजगार के अवसर पैदा करने में उल्लेखनीय योगदान दे सकता है. ऐसे उद्योगों के साथ यह भी महत्वपूर्ण पहलू जुड़ा हुआ है कि इनसे छोटे व मझोले उद्यमों और सहायक उद्योगों का भी विकास होता है.
दूसरे देशों की सामुद्रिक आवश्यकताओं को पूरा करने की संभावना भी पैदा होती है. भारत की रक्षा और व्यावसायिक हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद तो मिलेगी ही. दो आक्रामक पड़ोसियों की चुनौती को देखते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र और अरब सागर में भारत की नौसैनिक क्षमता को बढ़ाना आवश्यक है.
ये क्षेत्र पूरी दुनिया के लिए अहम हैं और इसे सुरक्षित रखने में भारतीय नौसेना की बड़ी भूमिका है. बड़ी संख्या में जहाजों के शामिल होने से इस भूमिका को बेहतर ढंग से निभाने में मदद मिलेगी. मालवाहक जहाजों की सुरक्षा करने के साथ तस्करी और जासूसी रोकने की क्षमता भी बढ़ेगी. युद्धपोतों को बेड़े में शामिल करना निश्चित ही यह एक महत्वपूर्ण परिघटना है.