अनुसंधानकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने हाल में ‘विश्व साइबर अपराध सूचकांक’ तैयार किया है, जिसके अनुसार साइबर अपराध के मामले में भारत दुनिया में 10वें स्थान पर है. इस सूचकांक में 100 देशों को शामिल किया गया है. ऐसे अपराधों के मामले में रूस शीर्ष पर है और फिर यूक्रेन, चीन, अमेरिका, नाइजीरिया, रोमानिया और उत्तर कोरिया हैं. भारत में कई तरह के साइबर अपराध होते हैं. हाल के वर्षों में कॉल फॉरवर्डिंग के जरिये अपराध करने की घटनाओं में तेजी आयी है. कॉल फॉरवर्डिंग एक ऐसा फीचर है, जिसकी मदद से एक कोड डायल कर सेवा शुरू या बंद की जा सकती है. कॉल फॉरवर्डिंग के जरिये स्कैमर कॉल कर उपभोक्ता को कहता है कि हम आपकी टेलीकॉम प्रोवाइडर कंपनी से बोल रहे हैं. हमने नोटिस किया है कि आपके नंबर पर नेटवर्क की समस्या है.
इसे दूर करने के लिए आपको ‘स्टार 401 हैशटैग’ डायल करना होगा. इसके बाद उपभोक्ता को अनजान नंबर पर कॉल करने के लिए कहा जाता है. जैसे ही उपभोक्ता कॉल करता है, उसके सभी कॉल और मैसेज स्कैमर के पास पहुंच जाते हैं, जिसमें बैंक और क्रेडिट कार्ड से हुए लेन-देन के ओटीपी भी शामिल होते हैं. इनका इस्तेमाल स्कैमर उपभोक्ता के खाते से पैसे निकालने, सोशल मीडिया में एक्सेस करने और नया सिम जारी करवाने में करते हैं. ऐसे अपराधों को रोकने के लिए सरकार ने 15 अप्रैल से यूएसएसडी बेस्ड कॉल फॉरवर्डिंग की सेवा बंद कर दी है. उपभोक्ताओं को भी सतर्क रहने को कहा है.
विगत वर्षों में डिजिटलाइजेशन के साथ-साथ साइबर अपराध में तेज वृद्धि हुई है. सोशल मीडिया भी ठगी के साधन बन गये हैं, जहां फर्जी प्रोफाइल बनाकर ऐसा किया जा रहा है. गूगल सर्च इंजन पर लोग अपने हर प्रश्न का जवाब ढूंढने लगे हैं. ठग नामचीन भुगतान एप, जैसे- गूगल पे, फोन पे, पेटीएम आदि, के नाम से अपना नंबर इंटरनेट पर सहेज रहे हैं, जिसके कारण लोग हैकर्स के जाल में फंस जाते हैं. अब तो ब्राउजर एक्सटेंशन के डाउनलोडिंग के जरिये भी साइबर अपराध किये जा रहे हैं. यह काम वायरस के सहारे किया जाता है. सार्वजनिक चार्जर पोर्ट के माध्यम से भी मोबाइल एवं लैपटॉप संक्रमित हो जाते हैं. क्रोम, मोजिला आदि ब्राउजर के जरिये हुए ऑनलाइन लेन-देन ब्राउजर के सर्वर में सेव हो जाते हैं, जिन्हें सेटिंग में जाकर डिलीट करने की जरूरत होती है, लेकिन अमूमन लोग ऐसा नहीं करते हैं और इसका फायदा साइबर ठगों को मिल जाता है.
इसलिए बैंकिंग डिजिटल उत्पादों के उपयोग में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है. फिशिंग के तहत किसी बड़ी या नामचीन कंपनी या फिर यूजर की कंपनी की फर्जी बेवसाइट बनाकर, जिसका स्वरूप असली बेवसाइट जैसा होता है, उससे लुभावने मेल किये जाते हैं. मोबाइल का चलन बढ़ने के बाद हैकर्स एसएमएस या व्हाट्सएप के जरिये भी ऑफर वाले मैसेज भेजते हैं, जिसमें संक्रमित लिंक होता है. मैलवेयर कंप्यूटर या मोबाइल या टैब के सॉफ्टवेयर को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ यूजर की वित्तीय जानकारी चुरा लेता है. यह फर्जी ईमेल भी भेज सकता है और इसके जरिये ठगी के साथ-साथ संवेदनशील जानकारी अवांछित लोगों को बेची भी जा सकती है तथा किसी की सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल की जा सकती है.
आजकल साइबर अपराधी कॉल या मैसेज से लोगों को बिना कर्ज लिये ही कर्जदार बताकर वसूली कर रहे हैं. ऐसी ब्लैकमेलिंग छोटी राशि के लिए ज्यादा की जा रही है, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर लोग पुलिस में शिकायत नहीं करें. यूजर पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, आज सभी साइबर अपराध के शिकार बन रहे हैं. बैंक के डिजिटल उत्पाद साइबर अपराध का जरिया बन गये हैं. फिर भी, सजग, सतर्क और जागरूक रहकर डिजिटल उत्पादों से किये जा रहे साइबर अपराध से बचा जा सकता है. अगर लोग ब्राउजिंग सेशन के दौरान सतर्क रहें, वेबसाइट या मोबाइल या पब्लिक लैपटॉप या डेस्कटॉप पर कार्ड की जानकारी साझा नहीं करें, अनजान नंबर या ईमेल आईडी से आये अटैचमेंट को तुरंत डिलीट कर दें और ऑनलाइन लॉटरी, कैसीनो, गेमिंग, शॉपिंग या फ्री डाउनलोड वाले मैसेज की उपेक्षा करें, तो फिशिंग मेल या एसएमएस या व्हाट्सएप के जरिये फॉरवर्ड होने वाले संदेहास्पद लिंक के जाल से बचा जा सकता है.
मोबाइल एप से लोन लेना सूदखोर, महाजन, साहूकार से भी ज्यादा खतरनाक है. कई बार लोन रिकवरी एजेंट लोगों से सिर्फ पैसे ही नहीं ठगते हैं, समाज में उन्हें बदनाम भी कर देते हैं. सूदखोर, महाजन, साहूकार मोटे तौर पर गांव व कस्बे तक सीमित थे, पर लोन रिकवरी एजेंट की व्यापकता देश-काल से परे है. अधिकांश मोबाइल चीन में निर्मित हैं और उनका सर्वर भारत से बाहर होता है. इसी कारण अधिकांश रिकवरी एजेंट चीन, वियतनाम, थाईलैंड, फिलीपींस, दक्षिण अफ्रीका आदि से ठगी का कारोबार कर रहे हैं. इसलिए पुलिस में शिकायत करने के बावजूद ठगों को पकड़ना आसान नहीं है. यहां सावधानी ही बचाव है. लालच नहीं करें. मनोवैज्ञानिक दबाव में नहीं आयें. धमकी मिलने पर पुलिस की मदद लें. निडर बनें, तभी साइबर अपराध का शिकार बनने से बचा जा सकता है.