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वैश्विक बाजार में बढ़ती श्रीअन्न की उपयोगिता

मोटे अनाज के उत्पादक किसानों और व्यापारियों के लिए यह वर्ष अंतरराष्ट्रीय श्रीअन्न वर्ष घोषित होने से अति महत्वपूर्ण है. इसका एक कारण यह भी है कि देश में भी मोटे अनाज के प्रति आम आदमी की रुचि बढ़ रही है

श्रीअन्न के मामले में दुनिया में भारत अपना प्रभुत्व स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है. बीते वर्ष अप्रैल से नवंबर तक की अवधि में देश ने संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अमेरिका, जापान, जर्मनी, नेपाल, बांग्लादेश, मिस्र, ईरान और ओमान को 365.85 करोड़ रुपये मूल्य का 1,04,146 टन श्रीअन्न का निर्यात इस बात का साक्षी है कि संपन्न देशों को भी श्रीअन्न रास आने लगा है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन की मानें, तो भारत ने 2021-2022 के दौरान 642.8 करोड़ रुपये और 2020-2021 के दौरान 597.5 करोड़ रुपये कीमत के श्रीअन्न का निर्यात किया था.

भारत दुनिया में मोटे अनाज, यानी श्रीअन्न के उत्पादन में शीर्ष पर है और एशिया में श्रीअन्न उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 80 फीसदी से भी ज्यादा है. वैज्ञानिक दृष्टि से हमारे देश का मौसम मोटे अनाज की खेती के लिए सर्वथा अनुकूल है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि गेहूं व धान की अपेक्षा इसके उत्पादन में कम पानी की जरूरत पड़ती है. जलवायु परिवर्तन और मिट्टी की उर्वरा शक्ति के क्षीण होते जाने की स्थिति में मोटे अनाज के महत्व को नकारा नहीं जा सकता. बाजरा, कुटकी, कंगनी, जौ, लाल धान, दलहन, कुलथी, अरहर, मसूर, मलकोनी, अलसी, तिल, मड़ुआ, कोटो, सांवा, कोइनी आदि की फसलों के लिए खास मेहनत नहीं करनी पड़ती.

इस हेतु राज्यों को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है. इसके लिए बीते पांच सालों से बड़े पैमाने पर प्रयास भी किये जा रहे हैं. इस बाबत खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत 2018 से 14 राज्यों के 214 जिलों में पोषक अनाज यानी श्रीअन्न अभियान जारी है. हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्य भी श्रीअन्न का उत्पादन बढ़ाने हेतु अभियान चलाने की योजना बना रहे हैं.

इस श्रीअन्न वर्ष में श्रीअन्न के उत्पादन और खपत में तो वृद्धि के साथ इसके निर्यात में भी बढ़ोतरी की उम्मीद है. इस वर्ष के बजट में भी श्रीअन्न के उत्पादन को प्रोत्साहन देना सरकार की इसको बढ़ावा देने की मंशा ही दर्शाती है. इसके शोध और संवर्धन का दायित्व इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट रिसर्च, कृषि विश्वविद्यालय और यस बैंक को सौंपा गया है.

एपीडा ने तो इसकी खपत व कारोबार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से श्रीअन्न ब्रांड का निर्माण किया है व रेडी टू ईट और रेडी टू सर्व के अनुकूल श्रीअन्न पर आधारित स्टार्ट अप की शुरुआत की जा रही है, ताकि ज्वार-बाजरा, रागी और दूसरे मोटे अनाजों से बिस्कुट, नूडल्स, पास्ता, कुकीज, स्नैक्स, मिठाइयां, नाश्ता व सीरियल मिक्स आदि बनाकर वैश्विक बाजार में स्थापित होने में आसानी हो सके.

मोटे अनाज के उत्पादक किसानों और व्यापारियों के लिए यह वर्ष अंतरराष्ट्रीय श्रीअन्न वर्ष घोषित होने से अति महत्वपूर्ण है. इसका एक कारण यह भी है कि देश में भी मोटे अनाज के प्रति आम आदमी की रुचि बढ़ रही है. दूसरे देशों के साथ हमारे देश के जनमानस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथन से मोटे अनाज का महत्व बढ़ा है. जाहिर है, जब मांग बढ़ी, तो उसकी आपूर्ति की जिम्मेदारी भी भारत की होगी क्योंकि मोटे अनाज के उत्पादन में हमारा देश शीर्ष पर है.

भारत दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक भी है. श्रीअन्न का इतिहास लगभग 4500 ईसा पूर्व से भी पुराना है. कांस्य युग में भी मोटे अनाज को पोषक अन्न के रूप में प्रयोग किये जाने के साक्ष्य मिलते हैं. चाणक्य के अर्थशास्त्र में भी इसका उल्लेख मिलता है. यजुर्वेद में भी इसका उल्लेख किया गया है. कोरिया में इसके इस्तेमाल के प्रमाण 3500 से दो हजार ईसा पूर्व से मिलते हैं.

अब भारत का प्रयास है कि वह श्रीअन्न का वैश्विक केंद्र बने. इस हेतु कृषि मंत्रालय पहले से ही ज्वार-बाजरा, रागी, कुट्टी जैसे मोटे अनाजों को पोषक आहार घोषित कर चुका है. खाद्य और प्रसंस्करण एवं उद्योग मंत्रालय 2026-2027 तक बाजरा आधारित उत्पादों को प्रोत्साहित करने की दिशा में 800 करोड़ रुपये की योजना शुरू करने जा रहा है.

ऐसे उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय मेलों, बाजारों, व्यापार मेलों में भी प्रचारित करने हेतु सभी मंत्रालयों, राज्यों, किसानों व निर्यातकों की भूमिका के निर्धारण की योजना पर काम जारी है. यह पूरी कवायद बीते मार्च में दिल्ली में हुए सौ से अधिक देशों के मंत्रियों, मोटे अनाज के विज्ञानियों, शोधार्थियों और प्रतिनिधियों के दो दिवसीय सम्मेलन का नतीजा है. कुपोषण से लड़ने में श्रीअन्न की खासियत से सभी वाकिफ हैं.

श्रीअन्न की प्रतियां, यथा- बाजरा, जिसे पर्ल मिलेट कहते हैं, रागी, जिसे फिंगर मिलेट कहते हैं, कंगनी, जिसे फाक्सटेल कहते हैं, बारे, जिसे प्रोसो कहते हैं, ज्वार, जिसे सोरघुम कहते हैं, सामा, जिसे लिटिल मिलेट कहते हैं और कोको, जिसे अरका के नाम से जानते हैं, ये सब प्रोटीन, फाइबर, कैल्सियम और आयरन के सबसे बड़े लाभदायक स्रोत हैं. सबसे बड़ी बात है कि सुपरफूड के रूप में विख्यात मोटे अनाज की मोटापा, मधुमेह, रक्तचाप और दिल की बीमारियों को कम करने में अहम भूमिका है. यह भविष्य के गर्भ में है कि भारत श्रीअन्न के मसले पर वैश्विक आकांक्षाओं पर कितना खरा उतरता है.

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