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खाड़ी देशों के साथ मजबूत होते रिश्ते

India and Gulf countries : साल 2022 में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान अमीरात और भारत के बीच एक व्यापक व्यापार समझौता हुआ था, जिसके तहत अमीरात ने भारत में दस वर्षों में सौ अरब डॉलर के निवेश का वादा किया है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय निवेश समझौता भी है.

India and Gulf countries : अबू धाबी के क्राउन प्रिंस खालिद बिन मोहम्मद बिन जायेद अल नाहयान की भारत यात्रा कई मायनों में बहुत अहम है. उन्होंने पिछले साल क्राउन प्रिंस का दायित्व संभाला है तथा भविष्य में वे संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति भी हो सकते हैं. यह उनकी पहली भारत यात्रा है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर हुई है. इस दौरे में अनेक महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं. इसमें एक बड़ा समझौता परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को लेकर है. कुछ दिन पहले ही संयुक्त अरब अमीरात के पहले परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण कार्य पूरा हुआ है. यह अरब देशों में स्थापित होने वाला पहला ऐसा संयंत्र है. इस समझौते को इसलिए बहुत अहम माना जा रहा है क्योंकि इससे दोनों देशों के राजनीतिक और रणनीतिक संबंधों को भी मजबूती मिलने की उम्मीद है.

खाड़ी देशों के साथ तेल और गैस को लेकर उल्लेखनीय समझौते

इस दौरे में तेल और गैस को लेकर भी उल्लेखनीय समझौते हुए हैं, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से बेहद अहम हैं. अत्याधुनिक तकनीकों तथा क्रिटिकल मिनरल्स के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी है. निवेश की कुछ परियोजनाओं पर भी समझौता हुआ है. क्राउन प्रिंस शेख खालिद की इस यात्रा की उपलब्धियों को बीते कुछ समय में संयुक्त अरब अमीरात के साथ हुए समझौतों के साथ रख कर देखा जाना चाहिए. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में अपनी-अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं के इस्तेमाल पर सहमति बनी है. अमीरात भारत के सबसे बड़े निवेशक देशों में है.

भारत में दस वर्षों में सौ अरब डॉलर निवेश का वादा

साल 2022 में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान अमीरात और भारत के बीच एक व्यापक व्यापार समझौता हुआ था, जिसके तहत अमीरात ने भारत में दस वर्षों में सौ अरब डॉलर के निवेश का वादा किया है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय निवेश समझौता भी है. इन प्रयासों से द्विपक्षीय व्यापार को बड़ी गति मिली है. साल 2022 में यह व्यापार 72 अरब डॉलर का था, जो 2023 में बढ़कर 84 अरब डॉलर हो गया. उल्लेखनीय है कि संयुक्त अरब अमीरात भारत के लिए पहला ऐसा देश है, जिसके साथ व्यापार और निवेश दोनों के संबंध में समझौते हैं. विभिन्न खाड़ी देशों की तरह अमीरात में भी बहुत बड़ी संख्या में भारत के लोग काम करते हैं. अमीरात ने यह हमेशा रेखांकित किया है कि उसके विकास में भारतीयों का अग्रणी योगदान रहा है. यह बात भी बड़े दिनों से चल रही है कि भारत की डिजिटल भुगतान प्रणाली यूपीआइ को अमीरात में भी लागू किया जायेगा और वहां के स्थानीय एप के साथ उसे जोड़ा जायेगा. अपनी मुद्रा में कारोबार और यूपीआइ प्रणाली से वहां कार्यरत भारतीयों और भारतीय पर्यटकों को बहुत फायदा होगा तथा उन्हें भारत में अपनी कमाई भेजने में भी सहूलियत होगी.

अरब जगत में संयुक्त अरब अमीरात की बड़ी अहमियत


अरब जगत में संयुक्त अरब अमीरात की बड़ी अहमियत है. वह वैश्विक व्यापार का एक महत्वपूर्ण ट्रांजिट प्वाइंट है तथा उसका राजनीतिक प्रभाव भी है. उसके साथ भारत के गहराते संबंधों से यह इंगित होता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से पश्चिम एशिया में, भारत के प्रभाव में भी ठोस बढ़ोतरी हो रही है. बीते वर्षों में उस क्षेत्र को लेकर भारत ने बहुआयामी रणनीति अपनायी है, जिसके तहत सऊदी अरब के साथ संबंधों में बेहतरी आयी है. पिछले साल जी-20 शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की राजकीय यात्रा भी हुई थी. जब अगस्त 2019 में भारतीय संसद ने अनुच्छेद 370 को लेकर संशोधन किया था, तब पाकिस्तान ने सऊदी अरब से इसका विरोध करने का अनुरोध किया था, लेकिन उस निवेदन को सऊदी अरब ने ठुकरा दिया था. पश्चिम एशिया में संबंध बेहतर बनाने में भारत को सफलता मिली है, उससे न केवल उस क्षेत्र में उसके प्रभाव में बढ़ोतरी हुई है, बल्कि विश्व राजनीति में भी उसका महत्व बढ़ा है. कतर के साथ भी हमारा बड़ा ऊर्जा व्यापार है. कुछ समय पहले वहां गिरफ्तार भारतीयों को भी मुक्त कराने में सफलता मिली थी. कतर में भी भारतीय अप्रवासियों की बहुत बड़ी संख्या है. साथ ही, दोहा हवाई मार्ग का एक अहम पड़ाव है. बहरीन से भी सहयोग बढ़ रहा है.

विदेश मंत्री एस जयशंकर सऊदी अरब के दौरे पर

जब शेख खालिद भारत में थे, तब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर सऊदी अरब के दौरे पर थे. वहां वे खाड़ी देशों के विदेश मंत्रियों के साथ साझा बैठक के लिए गये थे. यह पहला अवसर है, जब खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों के साथ भारतीय विदेश मंत्री की संयुक्त बैठक हुई है. अब यह बैठक आगे नियमित रूप से होती रहेगी. यह भी पश्चिम एशिया से गहरे होते रिश्तों का एक उदाहरण है. खाड़ी देशों पर भारत की ऊर्जा निर्भरता है. हमने देखा है कि भू-राजनीतिक या अन्य कारणों से जब आपूर्ति बाधित होती है या तेल एवं गैस के दामों में वृद्धि होती है, तब भारत के लिए मुश्किल स्थिति पैदा हो जाती है. जैसा पहले कहा गया है, इन देशों में बड़ी संख्या में भारतीय काम करते हैं. ऊर्जा सुरक्षा और अप्रवासी भारतीयों के हितों की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि शीर्ष स्तर पर भारत का नियमित संपर्क एवं संवाद इन देशों के नेतृत्व के साथ रहे. खाड़ी देश व्यापार और निवेश को प्राथमिकता दे रहे हैं, ताकि वे अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता ला सकें. अभी तक उनकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार तेल और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधन रहे हैं. चूंकि अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए भारत को भी व्यापार और निवेश की आवश्यकता है, तो यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम खाड़ी देशों के साथ व्यापक सहयोग बढ़ाने पर ध्यान दें. भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति देख कर उन देशों को भी ऐसा लगता है कि भारत में निवेश लाभप्रद साबित हो सकता है.

वैश्विक राजनीति और कूटनीति का गहरा संबंध

संयुक्त अरब अमीरात समेत खाड़ी देशों से बढ़ते व्यापार और निवेश को देखते हुए यह आशा की जा सकती है कि इस संबंध में आगे भी वृद्धि होती रहेगी. आज के दौर में वैश्विक राजनीति और कूटनीति का गहरा संबंध व्यापार एवं अन्य आर्थिक गतिविधियों से है. चाहे फारस की खाड़ी हो, लाल सागर हो, स्वेज नहर हो, ऐसे समुद्री मार्ग भारत के आयात-निर्यात के लिए महत्वपूर्ण हैं. ये रास्ते निर्बाध रहें, इसके लिए भी जरूरी है कि पश्चिम एशियाई देशों से हमारे रिश्ते अच्छे रहें. हिंद महासागर में शांति और स्थिरता के लिए भारत भी प्रयासरत है. इसमें अरब के देश अहम योगदान दे सकते हैं. पश्चिम एशिया की हलचल वैश्विक परिस्थितियों पर बड़ा असर डालती है, इसलिए भी ये रिश्ते अहम हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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