बाइडेन को जवाब

हमारी सांस्कृतिक समझ का आधार ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा है. सदियों से लोग अन्य क्षेत्रों से आकर बसते रहे हैं.

By संपादकीय | May 5, 2024 10:39 PM

इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत और अमेरिका के परस्पर संबंध एवं सहयोग में निरंतर वृद्धि हो रही है, पर यह भी सच है कि बीच-बीच में अमेरिकी शासन की ओर से भारत के बारे आधारहीन और अनावश्यक बातें भी कही जाती हैं. कुछ दिन पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक भाषण में कह दिया भारत एक ‘जेनोफोबिक’ देश है और उसकी कमजोर अर्थव्यवस्था की यह एक वजह भी है. उन्होंने भारत के साथ-साथ चीन, रूस और जापान के बारे में भी यही बातें कहीं. ‘जेनोफोबिक’ ऐसे व्यक्ति, समूह या देश को कहा जाता है, जो दूसरे लोगों को पसंद नहीं करता है या उनके विरुद्ध वह पूर्वाग्रह से ग्रस्त होता है.

अमेरिकी राष्ट्रपति के इस बयान का सीधा जवाब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिया है. उन्होंने कहा है कि भारत ‘जेनोफोबिक’ देश तो नहीं ही है, वह बहुत उदार है और सभी समाजों के लोगों का स्वागत करता है. रही बात अर्थव्यवस्था की, तो तमाम चुनौतियों के बावजूद हम सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था हैं. भारत तमाम तरह की विविधताओं को एक सूत्र में पिरोने वाला देश रहा है. हमारी सांस्कृतिक समझ का आधार ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा है. सदियों से लोग अन्य क्षेत्रों से आकर बसते रहे हैं. देश में कार्यरत विदेशी लोगों की संख्या भी बढ़ी है तथा बड़ी संख्या में पर्यटक भी आ रहे हैं, जिनका स्वागत ‘अतिथि देवो भव’ के भाव से किया जाता है. अमेरिकी शासन को बाइडेन के अनर्गल आरोप के नकारात्मक प्रभाव का अहसास तुरंत हो गया.

बाइडेन प्रशासन ने एक तरह से सफाई देते हुए कहा है कि राष्ट्रपति का बयान एक सामान्य बात है और अमेरिका के मित्र राष्ट्र इसे समझते हैं. भले ही इस बयान को अनदेखा कर दिया जाए, लेकिन इस सच से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि इस तरह की बातें दबाव बनाने की रणनीति के तहत भी की जाती हैं. हाल के दिनों में अनेक बार अमेरिकी प्रशासन की ओर से बेमतलब बातें कही गयी हैं. पहले अमेरिका और कनाडा में हुई कुछ घटनाओं के लिए भारतीय एजेंसियों को जिम्मेदार माना गया. फिर भारत की आंतरिक प्रशासनिक एवं कानूनी प्रक्रिया पर सवाल उठाया गया तथा निष्पक्ष चुनाव की सलाह दी गयी. उसके बाद भारत में मानवाधिकार की स्थिति पर चिंता जतायी गयी.

अमेरिकी मीडिया का भी रवैया ऐसा ही है. भारत की नीति रही है कि वह दूसरे देशों के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी नहीं करता. लेकिन अनेक देश ऐसी मर्यादा का पालन नहीं करते. भारतीय अर्थव्यवस्था जिस प्रकार सुदृढ़ हो रही है तथा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत का सम्मान बढ़ रहा है, उससे कई देश असहज हैं. इसलिए वे दबाव बनाने के लिए पैंतरे कर रहे हैं.

Next Article

Exit mobile version