वैश्विक अर्थव्यवस्था में मजबूत होता भारत
भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है और देश में 100 से अधिक यूनिकार्न हैं. साथ ही जल्द ही भारत पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर दुनिया के लिए विकास का इंजन बन जाएगा.
डॉ जयंतीलाल भंडारी
अर्थशास्त्री
article@jlbhandari.com
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 अगस्त को दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स बिजनेस फोरम लीडर्स डायलॉग में कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में चुनौतियों और उथल-पुथल के दौर के बीच भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार द्वारा मिशन-मोड में किए जा रहे सुधारों से भारत में कारोबारी सुगमता में वृद्धि हुई है. भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है और देश में 100 से अधिक यूनिकार्न हैं. साथ ही जल्द ही भारत पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर दुनिया के लिए विकास का इंजन बन जाएगा. गौरतलब है कि 23 अगस्त को प्रकाशित एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस रिपोर्ट के मुताबिक इस समय लड़खडाती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भयावह काले बादल छाए हुए हैं. वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए 2023 में लगभग 2.5 प्रतिशत की वृद्धि दर संभावित की गई है. यह अगले वर्ष 2024 में और घटकर 2.4 फीसदी रह सकती है. यदि हम वैश्विक परिदृश्य को देखें तो पाते है कि पिछले वर्ष के दौरान तेजी से मौद्रिक नीति सख्त होने से वैश्विक आवास, बैंक ऋण और औद्योगिक क्षेत्र में कमजोरी आई है. स्पष्ट है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के हालात चुनौतीपूर्ण हैं. चीन, अमेरिका और जापान जैसी अर्थव्यवस्थाओं से भी चिंताजनक संदेश हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीन की अर्थव्यवस्था को एक ऐसे टाइम बम की संज्ञा दी है, जो कभी भी फट सकता है. दुनिया की वित्तीय एजेंसियां यह टिप्पणी कर रही है कि चार दशक से विकास कर रहे चीन के लिए अब अवसान का समय आ गया है. कोविड-19 की सुस्ती के बाद चीन की अर्थव्यवस्था के द्वारा रफ्तार पकड़ने की उम्मीद थी. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है.
चीन में सुस्त उपभोक्ता खर्च, निर्यात में गिरावट, बड़ी-बड़ी कंपनियों का दिवालियापन, युवाओं में बेरोजगारी से निराशा, बढ़ते सरकारी ऋण, घरेलू मांग में कमी, कारोबारी गतिविधियां का धीमी होना, निवेशकों के चेहरे पर निराशाएं, मांग की तुलना में अधिक उत्पादन, सामाजिक सुरक्षा की चिंता में अधिक बचत की प्रवृत्ति के कारण बाजार में खरीदी में कमी जैसी जटिल स्थितियों के बीच अब चीनी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के रास्ते सीमित हो गए हैं. जहां चीन में इस समय मुद्रा संकुचन (मनी डिफ्लेशन) की स्थिति है वहीं अमेरिका में मुद्रा स्फीति (मनी इंफ्लेनेशन) की स्थिति है. अमेरिका मार्च 2022 से अब तक 11 बार ब्याज दरों में इजाफा करने के बाद भी मुद्रास्फीति का सामना कर रहा है. वह असाधारण ऋण से भी गुजर रहा है. पिछले तीन वर्षों में उसके कर्ज में करीब 8 लाख करोड़ डॉलर का इजाफा भी हुआ. परिणामस्वरूप रेटिंग एजेंसी फिच ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग को एए प्लस से कम करके एएए कर दिया है. जापान में भी हालात अच्छे नहीं हैं. जापान में इसके लिए खाद्यान्न, ईंधन और टिकाऊ वस्तुओं की ऊंची कीमतें उत्तरदायी हैं. वहां मुद्रास्फीति बढ़ी है और डॉलर के मुकाबले येन काफी कमजोर हुआ है.
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वहीं, विभिन्न वैश्विक रिपोर्टों के मुताबिक वर्ष 2023 में भारत की अर्थव्यवस्था सबसे तेज गति वाली होगी. भारत की विकास दर 2023 में 5.9 फीसदी व 2024 में 6.1 फीसदी अनुमानित है. रिपोर्टों में कहा जा रहा था कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा रखने वाला भारत वर्ष 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर सामने आएगा. वैश्विक अर्थव्यवस्था की बढ़ी हुई अनिश्चितताओं के बीच भारत का मजबूत आर्थिक प्रदर्शन दुनिया में उसकी अहमियत बढ़ा रहा है. इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था के तेजी से आगे बढ़ाने में आर्थिक वित्तीय सुधारों के साथ बुनियादी ढांचे के विकास की अहम भूमिका है. भारत बौद्धिक संपदा, शोध और नवाचार की डगर पर आगे बढ़कर विभिन्न क्षेत्रों में विकास को अपनी मुठ्ठियों में कर रहा है. भारत के नवाचार दुनिया में सबसे प्रतियोगी, किफायती, टिकाऊ, सुरक्षित और बड़े स्तर पर लागू होने वाले समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं. कारोबार सुगमता के लिए नयी लॉजिस्टिक नीति, महत्वाकांक्षी गति-शक्ति योजना और नयी विदेश व्यापार नीति (एफडीपी) के द्वारा नये अध्याय लिखे जा रहे हैं. उद्योग-कारोबार को आसान बनाने के लिए 1500 पुराने कानूनों और 40 हजार अनावश्यक अनुपालन को समाप्त किए जाने की अहम भूमिका है. भारत में उद्योगों को आगे बढ़ाने के लिए चलाये गये विशेष अभियान मील का पत्थर बनते जा रहे हैं. यह भी भारत की बढ़ती हुई वैश्विक आर्थिक साख की सफलता है कि आरबीआइ ने जुलाई 2022 में डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए विदेशी व्यापार का लेन-देन रुपये में करने का प्रस्ताव किया था. अगस्त 2023 में संयुक्त अरब अमीरात (यूएइ) के साथ आयातित कच्चे तेल का भुगतान रुपए में करने की शुरुआत के बाद अफ्रीकी देशों सहित कई देशों ने रुपये में कारोबार के लिए सकारात्मक रूप दिखाया है.
यद्यपि दुनियाभर में भारत सबसे तेज और आकर्षक अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में रेखांकित हो रहा है. लेकिन हमें देश की नयी लॉजिस्टिक नीति 2022 और गति शक्ति योजना की अभूतपूर्व रणनीतियों से भारत को आर्थिक प्रतिस्पर्धी देश के रूप में तेजी से आगे बढ़ाना होगा. शोध और नवाचार पर व्यय बढाया जाना होगा. शिक्षा और कौशल उन्नयन पर उच्च निवेश करना होगा. दुनिया की सबसे अधिक युवा आबादी वाले भारत को बड़ी संख्या में युवाओं को डिजिटल कारोबार के दौर की और नयी तकनीकी योग्यताओं से सुसज्जित किया जाना होगा. जहां हमें भारत-अमेरिका के बीच निर्मित नयी साझेदारी का पूरा लाभ लेना होगा, वहीं दुनिया के विभिन्न देशों के साथ शीघ्रतापूर्वक मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को आकार देना होगा. हमें यह बात भी ध्यान में रखना है कि चीन की आर्थिक कमजोरी भी भारत के लिए चिंताजनक है. भारत के लिए चीन दूसरा सबसे बड़ा आयातक और चौथा सबसे बड़ा निर्यातक देश है. ऐसे में चीन की अर्थव्यवस्था पर सतर्क निगाहें जरूरी हैं. दुनिया की अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में जो चुनौतियों की तेज लहरें निर्मित हो रही हैं, उनके बीच आसानी से तैर कर दूर तक जाने के लिए, हमें निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटे को कम करने के उद्देश्य से रणनीतिक कदम उठाने होंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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