चीन को कड़ा संदेश देने की जरूरत
भारत की विदेश नीति द्वारा चीन को स्पष्ट तौर पर यह समझाने की कोशिश हो रही है कि भारत और छोटे देशों के खिलाफ वह जो हरकत कर रहा है, वह अब नहीं चलनेवाली है.
शशांक, पूर्व विदेश सचिव, भारत
shashank1944@yahoo.co.in
टोक्यो में अभी क्वाड देशों- भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों की जो बैठक हुई है, वह इस समूह की दूसरी बैठक है, लेकिन किसी सदस्य देश के यहां होनेवाली यह पहली बैठक है. इन चारों देशों के बीच पहली बैठक पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन के दौरान न्यूयाॅर्क में हुई थी. वह ऐसी बैठक थी, जहां इस सम्मेलन के उद्देश्य का पूरी तरह निर्णय नहीं हुआ था, लेकिन अभी जो दूसरी बैठक हुई है, उसमें उद्देश्य के बारे में बात हुई कि क्वाड समूह के देशों के बीच किस तरह का आपसी सहयोग होगा. कहा जा सकता है कि अब चारों देशों के आपसी संबंध तेजी से आगे बढ़ेंगे.
इस बैठक का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि कोविड का समय चल रहा है और पिछले कुछ समय से चारों देशों के बीच सामान्य तौर पर ऑनलाइन बातचीत होती रही है. इसके बावजूद चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने समय निकाला और टोक्यो में बैठक की, एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श किया. यहां एक बात यह भी महत्वपूर्ण है कि इस बैठक से पहले लगभग सभी सदस्य देशों के बीच एक-दूसरे के बंदरगाहों का प्रयोग करने, एक-दूसरे की सेनाओं को मदद देने, उन्हें सदस्य देशों के यहां जाने, वहां जाकर काम करने आदि को लेकर समझौते हो चुके हैं.
इस बैठक का उद्देश्य चीन को कड़ा संदेश देना है. चीन द्वारा गलवान और देपसांग में हमला करने के पहले तक भारत चीन के साथ व्यापार और मित्रता के संबंध बनाये रखना चाहता था, लेकिन उसकी हरकतों के बाद, भारत सावधानीपूर्वक कदम उठाना शुरू कर चुका है और दूसरे देशों के साथ अपने संबंध भी मजबूत करने में लग गया है. भारत कभी नहीं चाहता था कि चीन के साथ उसके संबंध खराब हों, पर चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों से बाज नहीं आया. चीन ने गलवान, लद्दाख में जो हरकतें की हैं या उसके पहले भारत की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के हितों के खिलाफ काम करना शुरू किया.
पीओके और गिलगिट, बाल्टिस्तान के इलाकों में अपना अधिकार जमाया, वहां सेना भेजी, भारत के हितों को हानि पहुंचे, इसके लिए उसने भारत के पड़ोसी देशों को भारत के विरुद्ध बरगलाना शुरू कर दिया. समुद्री मार्गों के रास्ते भी उसने हमें घेरने की कोशिश की. इसी क्रम में उसने हमारे पड़ोसी देशों के बंदरगाहों पर अपने व्यापारिक और सामरिक अड्डे बनाने आरंभ कर दिये. व्यापारिक और सामरिक दृष्टि से भी हिंद महासागर में भारत के हितों के विरुद्ध तेजी से काम करना शुरू कर दिया. इसी कारण भारत को यह दिखाने की जरूरत महसूस हुई कि हम अकेला नहीं हैं. भारत ने चीन को अपने दृढ़ निश्चय से भी परिचित करा दिया है कि अब वह अपनी ताकत भी बढ़ायेगा और उससे निबटेगा भी.
इसके अलावा, भारत ने एशिया और हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र के देशों के साथ भी अपने संबंध मजबूत करने शुरू कर दिये हैं, खासकर क्वाड के क्षेत्र में. भारत अब इस बात को समझ गया है कि चीन जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, उसमें वह एशिया के सभी देशों के विरुद्ध काम करेगा. ऐसे में चीन को उचित जवाब दिया जाना और उसे यह बताया जाना जरूरी है कि उसकी विस्तारवादी नीतियां अब नहीं चल सकती हैं.
दक्षिण चीन सागर में भी चीन की हरकतों से सभी वाकिफ हैं. कई बार उसने दूसरे देशों की नावों को क्षति पहुंचायी और उनके नाविकों व लोगों को बंदी बना लिया है. इन्हीं सब कारणों से फिलिपींस के साथ उसका झगड़ा अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण भी पहुंचा था, लेकिन चीन फिर भी नहीं सुधरा. इस इलाके में उसकी मनमानी लगातार बढ़ती जा रही है. वह इस क्षेत्र के पूरे द्वीप समूह पर कब्जा करता जा रहा है और वहां अपने सैन्य और व्यापारिक अड्डे बनाता जा रहा है.
इसी क्रम में वह यहां के देशों पर हावी होता जा रहा है, जिस पर लगाम जरूरी है. देखा जाए, तो टोक्यो में अपने भाषण के जरिये विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारतीय जनता के विचारों को ही जोरदार तरीके से सामने रखा, भले ही इसके लिए उन्होंने रणनीतिक और सौम्य लहजे का प्रयोग किया. इस कारण चीन पर काफी दबाव पड़ेगा. भारत की विदेश नीति द्वारा चीन को स्पष्ट तौर पर यह समझाने की कोशिश हो रही है कि भारत और छोटे देशों के खिलाफ वह जो हरकतें कर रहा है, वह अब नहीं चलनेवाली है. भारत उसकी विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है और उसे लेकर जो भी कदम उठाने होंगे वह उठायेगा.
एक ऐसे समय में, जबकि अमेरिका में चुनाव होने हैं और कोविड का संकट है, बैठक की इसलिए जरूरत थी, क्योंकि चीन बहुत तेजी से अपने कदम बढ़ाता जा रहा है. ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि अमेरिका के इसी प्रशासन के समय में चीन को कड़ा संदेश दिया जाये कि वह अपने कदमों को यहीं रोक ले, आगे न बढ़ाये. साथ ही यह भी सोचे कि उसके इस कदम से सभी देशों के साथ उसके संबंध खराब हो जायेंगे. यदि सभी देश एकजुट होकर चीन के खिलाफ खड़े हो गये तो उसे अपनी हरकतों के लिए जवाब देना होगा और यह काम इतना आसान नहीं होगा. क्वाड बैठक के बाद चीन ने जो जवाब दिया है, उससे ऐसा लगता है कि उसे संदेश मिल गया है.
तभी वह एक बार फिर से शांति और आर्थिक विकास की बातें करने लगा है. लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना है कि पहले भी शांति की बातें कहकर चीन हमारे साथ धोखा कर चुका है. भारत को चीन को जवाब देने के साथ ही, एशिया के छोटे और पड़ोसी देशों को भी साथ में लेकर चलना होगा. उनके साथ आर्थिक, सामरिक रूप से संबंधों को मजबूती देनी होगी, उनके यहां इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण भी करना होगा. यह बहुत जरूरी है कि हम अपने साथ इन देशों के बारे में भी सोचें. क्योंकि इस समय चीन को रोकना बहुत जरूरी है, ताकि वह दूसरे देशों पर अपनी नीतियां ना थोप सके.
(बातचीत पर आधारित)