चीन से सचेत रहना होगा भारत को
india-china-relations: भारत ने सैनिक और आर्थिक मोर्चे पर लंबा सफर तय कर लिया है, तो चीन इस अवधि में दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. ऐसे में सीधी सैनिक कार्रवाई की अपनी सीमाएं थीं. इसलिए विपक्षी दलों के उकसावों के बावजूद मोदी सरकार ने कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर चीन को घेरना शुरू किया.
India-China Relations : लद्दाख सीमा पर गश्ती को लेकर भारत और चीन के बीच सहमति बन तो गयी है, पर उस पर आंख मूंदकर भरोसा करना नासमझी होगी. अतीत में चीन के रवैये को देखते हुए सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी का यह कहना समीचीन ही है कि भरोसा बहाली में समय लगेगा. वैसे रूस-यूक्रेन तथा इस्राइल-हिजबुल्ला संघर्ष के संदर्भ में भारत और चीन के बीच हुए इस समझौते को बेहतर परिणति माना जाना चाहिए. जून 2020 में बिना हथियारों के ही भारतीय सैनिकों ने लाल सेना के भले ही दांत खट्टे कर दिये, पर विपक्षी दलों ने उस मौके को उत्तेजना की राजनीति के लिए एक मौके के रूप में लिया था.
महज एक साल पहले ही तमिलनाडु में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ प्रधानमंत्री मोदी की चर्चित मुलाकात का हवाला देते हुए विपक्षी दलों ने सरकार पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की थी. उनकी मंशा चीन के साथ युद्ध करने के लिए सरकार को उकसाना रहा. बेशक 1962 जैसी स्थिति नहीं रही. भारत ने सैनिक और आर्थिक मोर्चे पर लंबा सफर तय कर लिया है, तो चीन इस अवधि में दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. ऐसे में सीधी सैनिक कार्रवाई की अपनी सीमाएं थीं. इसलिए विपक्षी दलों के उकसावों के बावजूद मोदी सरकार ने कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर चीन को घेरना शुरू किया. साथ ही, सीमा पर चौकसी बढ़ायी गयी और सेना को कार्रवाई की छूट दी गयी.
चीन के खिलाफ भारत का सबसे पहला कदम यह रहा कि चीन के लिए सीधी उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इस बीच चीन को आर्थिक मंदी का भी सामना करना पड़ा है. चीन को लगता है कि अगर भारत के साथ उसके कारोबारी रिश्ते बढ़ेंगे, तभी वह आर्थिक मोर्चे पर आगे रह सकता है. इसके लिए सीधी उड़ानें बड़ा जरिया हो सकती हैं. इसलिए तनाव के बावजूद वह भारत पर गाहे-बगाहे सीधी उड़ान सेवा बहाल करने और उनकी संख्या बढ़ाने पर जोर देता रहा है. पर भारत ने इसकी लगातार उपेक्षा की. भारत ने चीन के लिए सख्त वीजा नियम भी लागू कर दिये. इसकी वजह से चीन के विशेष इंजीनियरों और तकनीशियनों की भारत में आवाजाही पर एक तरह से पाबंदी लग गयी, जिससे चीन की आर्थिक गतिविधियों में कमी आयी. इसके साथ ही भारत ने चीनी कंपनियों के निवेश पर भी कठोर नियम लागू कर दिये.
गलवान कांड के तुरंत बाद भारत सरकार ने पड़ोसी देशों की कंपनियों के भारतीय निवेश की जांच प्रक्रिया में पुनरीक्षण और सुरक्षा मंजूरी की एक अतिरिक्त शर्त जोड़ दी. एक तरह से पड़ोसी देशों की कंपनियों के लिए नियम सख्त कर दिये गये. इसका सबसे ज्यादा असर चीनी कंपनियों पर पड़ा. इसकी वजह से भारतीय बाजार में चीनी कंपनियों द्वारा किये जाने वाले अधिग्रहण और निवेश पर लगाम लग गयी तथा चीनी कंपनियों द्वारा प्रस्तावित अरबों डालर के निवेश की प्रक्रिया अटक गयी. इसका सीधा असर उनके कारोबार पर पड़ा और उन्हें आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
गलवान कांड के बाद भारत ने जो एक बड़ा फैसला लिया था, उसकी बड़ी चर्चा हुई थी. चीन की मोबाइल कंपनियों और एप्लिकेशनों की भारत में गलवान कांड के बाद बड़ी पहुंच बन गयी थी. उस घटना के तुरंत बाद भारत ने डाटा और गोपनीयता की शर्तों के उल्लंघन का हवाला देते हुए चीन के करीब 300 मोबाइल एप पर पाबंदी लगा दी थी. इसके बाद 2023 में मोदी सरकार ने चीन की स्मार्टफोन कंपनी विवो कम्युनिकेशन टेक्नॉलॉजी पर वीजा नियमों का उल्लंघन करने और 13 अरब डॉलर की धनराशि की हेराफेरी का आरोप लगाया था. इससे विवो के भारतीय बाजार पर बड़ा असर पड़ा. इसके साथ ही सरकार ने चीन की दूसरी बड़ी मोबाइल उत्पादक कंपनी शाओमी के खिलाफ भी कार्रवाई की. उस पर आरोप लगा कि उसने विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून का उल्लंघन किया है. जांच में यह आरोप सही पाया गया और सरकार ने कार्रवाई करते हुए उसकी भारत स्थित करीब 60 करोड़ डॉलर से अधिक की संपत्तियों को जब्त कर लिया. इससे भी चीन के मोबाइल कारोबार को भारत में बड़ा झटका लगा.
वैसे चीन को यहां तक लाने में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई बातचीत की बड़ी भूमिका रही है. चीनी विदेश मंत्री वहां की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के वरिष्ठ सदस्य हैं. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की खबर के मुताबिक, वांग यी का मानना है कि संघर्षशील दुनिया के बीच दो प्राचीन पूर्वी सभ्यताओं और उभरते विकासशील देशों के रूप में चीन एवं भारत को अपनी स्वतंत्रता पर मजबूती से खड़ा रहना चाहिए, पर दोनों के बीच एकता और सहयोग भी होना चाहिए. वांग यी ने ही चीन को यह सुझाव दिया कि दोनों पड़ोसी देशों को एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने से बचना चाहिए. माना जा रहा है कि भारत और चीन के बीच करीब तीन-चौथाई समस्याओं को खत्म कराने में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भी योगदान है. यूक्रेन युद्ध के बाद रूस चीन के काफी करीब आया है. हालांकि उसने एक बात जरूर की है कि उसने भारत-चीन के रिश्तों में आयी खटास के मद्देनजर कभी भी चीन का साथ नहीं दिया, बल्कि भारत से अपनी पुरानी दोस्ती को बनाये रखा.
गलवान कांड के बाद यह पहला मौका है, जब चीन भारत के सामने झुकता दिख रहा है. सीमा पर विभिन्न जगहों से अपनी सेना को पीछे ले जाना मामूली बात नहीं है. विदेश मंत्री एस जयशंकर भी मानते हैं कि चीन के साथ सीमा विवाद को करीब 75 फीसदी सुलझा लिया गया है. ब्रिक्स सम्मेलन इसका गवाह बना है. लेकिन इसके लिए भारत ने लंबी यात्रा की है. एक तरफ उसने जहां चीन को कूटनीतिक और आर्थिक रूप से घेरने की रणनीति पर काम किया है, वहीं कभी झुकने का भी संदेश नहीं दिया है. क्वाड की बढ़ती सक्रियता और दक्षिण चीन सागर में चीन के पड़ोसी देशों के साथ दोस्ती बढ़ाकर भी भारत ने चीन पर दबाव बनाया है. चीन की विकास दर अभी 4.8 प्रतिशत ही है और वैश्विक बाजार में उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए भी वह दबाव में है. शांति की ओर एक कदम बढ़ाने में चीनी विदेश मंत्री वांग यी की सैद्धांतिकी ने आधार का काम किया है. भारतीयों को इस समझौते से शांति की उम्मीद बेमानी नहीं है, पर भारत को सचेत रहना होगा. चीन की फितरत इसकी बड़ी वजह है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)