भारत-चीन संबंध में सुधार
India-China relations : दोनों देशों के संबंधों को फिर से पटरी पर लाने के लिए विक्रम मिसरी 26 व 27 जनवरी को चीन यात्रा पर थे. दोनों देशों की राजधानियों के बीच सीधी उड़ान सेवा बहाल करने, पत्रकारों और विचारकों के लिए वीजा जारी करने के साथ ही सीमा पार की नदियों से जुड़े आंकड़ों को साझा करने जैसे अनेक मुद्दों पर भी दोनों देशों के बीच सहमति बनी है.
India-China relations : लद्दाख में सैन्य तनाव कम होने से भारत को बड़ी सफलता मिली है. भारत-चीन ने अपने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार का निर्णय लिया है. असल में भारत-चीन द्वारा गत वर्ष एलएसी से सैनिकों की वापसी पर सहमति बनने के बाद से दोनों देशों के बीच लगातार अपने द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने की दिशा में उच्च स्तरीय बातचीत चल रही थी, जिसका सकारात्मक परिणाम अब जाकर सामने आया है.
सोमवार को विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि नयी दिल्ली और बीजिंग ने द्विपक्षीय आदान-प्रदान को बेहतर बनाने के लिए कई कदम उठाने का निर्णय लिया है. इनमें इस वर्ष गर्मियों में कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू करने जैसे कदम भी शामिल हैं. वर्ष 2020 में गलवान में भारतीय व चीन के सैनिकों के बीच हुए हिंसक संघर्ष के बाद से ही भारत-चीन संबंध अपने निचले स्तर पर पहुंच गये थे. कई दौर की उच्च स्तरीय बातचीत के बाद भी सीमा से सैनिकों को हटाने को लेकर आपसी सहमति नहीं बन पा रही थी.
विदित हो कि भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी के चीनी विदेश मंत्री वांग यी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के अंतरराष्ट्रीय विभाग के मंत्री लियू जियानचाओ से भेंट के बाद यह निर्णय सामने आया है. यह कदम 2025 में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर उठाया गया है. दोनों देशों के संबंधों को फिर से पटरी पर लाने के लिए विक्रम मिसरी 26 व 27 जनवरी को चीन यात्रा पर थे. दोनों देशों की राजधानियों के बीच सीधी उड़ान सेवा बहाल करने, पत्रकारों और विचारकों के लिए वीजा जारी करने के साथ ही सीमा पार की नदियों से जुड़े आंकड़ों को साझा करने जैसे अनेक मुद्दों पर भी दोनों देशों के बीच सहमति बनी है.
भारत-चीन संबंधों का सामान्य होना न केवल भारत के लिए बल्कि चीन के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत चीन का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार होने के साथ ही वैश्विक स्तर पर भी एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में आगे बढ़ रहा है. बिना शर्त विकासशील व गरीब देशों की समय-समय पर मदद से वैश्विक स्तर पर भारत की साख और विश्वसनीयता बढ़ी है. संभवत: इस कारण भी चीन अपना रुख बदलने पर बाध्य हुआ है. हालांकि चीन की विस्तारवादी नीतियों को देखते हुए भारत को पूरी तरह चौकन्ना रहने और चीन के हरेक कदम पर निगरानी रखने की आवश्यकता है.