अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की ऊंची उड़ान

Docking Technology In Space : इस ऐतिहासिक उपलब्धि को हासिल करने के साथ ही भारत अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को साथ जोड़ने की डॉकिंग प्रक्रिया में सक्षम देशों के विशिष्ट समूह में शामिल हो गया है. इस सफलता को हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है.

By डॉ निमिष कपूर | January 22, 2025 9:07 AM

Docking Technology In Space : डॉकिंग प्रौद्योगिकी ने भारत को वैश्विक रूप से अग्रणी देशों के संग खड़ा करने के साथ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में ऊंची उड़ान भरी है. इसरो के स्पैडेक्स मिशन ने 16 जनवरी, 2025 को ऐतिहासिक अंतरिक्ष डॉकिंग उपलब्धि हासिल कर ली, जो चंद्रयान-4 जैसे दीर्घकालिक कार्यक्रमों और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए महत्वपूर्ण है. यह मानवयुक्त गगनयान मिशन के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगा. इस परियोजना का नाम स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पैडेक्स) रखा गया है. मिशन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्वदेशी तकनीक को भारतीय डॉकिंग सिस्टम नाम दिया गया है.

इस ऐतिहासिक उपलब्धि को हासिल करने के साथ ही भारत अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को साथ जोड़ने की डॉकिंग प्रक्रिया में सक्षम देशों के विशिष्ट समूह में शामिल हो गया है. इस सफलता को हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है. इससे पूर्व दुनिया में केवल तीन देश- अमेरिका, रूस और चीन- ही अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में डॉक करने में सक्षम थे.
इस अभूतपूर्व मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष यानों या उपग्रहों को आपस में जोड़ने (डॉकिंग) और उन्हें अलग करने (अनडॉकिंग) में भारत की तकनीकी शक्ति प्रदर्शित करना था जो उपग्रह सेवा, अंतरिक्ष स्टेशन संचालन और अंतरग्रहीय अन्वेषण जैसी महत्वपूर्ण अंतरिक्ष क्षमताओं का मार्ग प्रशस्त करेगा.

स्पैडेक्स मिशन में अंतरिक्ष के लगभग शून्य में इसरो ने 28,800 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से परिक्रमा कर रहे दो अंतरिक्ष यानों, टार्गेट और चेजर को जोड़ने की अत्यंत जटिल और चुनौतीपूर्ण डॉकिंग प्रक्रिया को बेद सटीकता के साथ पूरा किया. अंतरिक्ष यानों ने स्वयं को 15 मीटर से तीन मीटर की दूरी तक सहजता से संयोजित किया और सटीकता के साथ डॉकिंग शुरू की, जिससे दोनों अंतरिक्ष यानों को सफलतापूर्वक आपस में जोड़ा गया. इसके बाद सुचारु रूप से वापसी प्रक्रिया पूरी हुई.

डॉकिंग के बाद दो उपग्रहों का एकीकृत नियंत्रण सफलतापूर्वक पूरा किया गया जो भारत की तकनीकी विशेषज्ञता दर्शाता है. डॉकिंग के बाद दोनों उपग्रह अब एक अंतरिक्ष यान के रूप में काम करेंगे. ये अंतरिक्ष यान प्रकृति में भी समान हैं और डॉकिंग के दौरान कोई भी अंतरिक्ष यान चेजर (सक्रिय अंतरिक्ष यान) के रूप में कार्य कर सकता है. ये सौर पैनल, लिथियम-आयन बैटरी और एक मजबूत पावर मैनेजमेंट प्रणाली से लैस हैं. एटीट्यूड और ऑर्बिट कंट्रोल सिस्टम (एओसीएस) में स्टार सेंसर, सन सेंसर, मैग्नेटोमीटर तथा रिएक्शन व्हील, मैग्नेटिक टॉर्कर और थ्रस्टर शामिल हैं.


स्पैडेक्स मिशन में शोध कार्यों के लिए 24 पेलोड भी अंतरिक्ष में भेजे गये हैं, जिनमें से 14 पेलोड इसरो की विभिन्न प्रयोगशालाओं से और 10 पेलोड विभिन्न विश्वविद्यालयों और स्टार्टअप्स से संबंधित हैं. इनमें से एक पेलोड यह शोध करेगा कि पौधे की कोशिकाएं अंतरिक्ष में कैसे बढ़ती हैं. इस शोध के तहत अंतरिक्ष और पृथ्वी पर एक ही समय में प्रयोग किया जायेगा. इस प्रयोग में पालक की कोशिकाओं को एलइडी लाइट और जेल के जरिये सूर्य का प्रकाश और पोषक तत्व जैसी अहम चीजें दी जायेंगी. एक कैमरा पौधे की कोशिका के रंग और वृद्धि को रिकॉर्ड करेगा. यदि कोशिका का रंग बदलता है तो प्रयोग असफल हो जायेगा. यह सुखद है कि स्पैडेक्स मिशन के साथ भेजे गये लोबिया के बीज में पत्तियां निकल आयी हैं.

इसरो द्वारा छह जनवरी को इसकी तस्वीर जारी की गयी है. प्रयोग के लिए लोबिया को इसलिए चुना गया, क्योंकि यह तेजी से अंकुरित होता है. इसमें सहनशीलता और पोषण भी ज्यादा होता है. लोबिया में अंकुरण से पालक पर होने वाले शोध के सफल होने की उम्मीदें बढ़ गयी हैं. इस तकनीक का उपयोग अंतरिक्ष में पौधों के विकास और जीवन चक्र पर प्रभाव को समझने के लिए किया जायेगा, जो भविष्य के लंबे अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं. इन प्रयोगों में सफलता मिलती है, तो अंतरिक्ष और पृथ्वी पर कृषि तकनीकों को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है. साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों की लंबी अंतरिक्ष यात्राओं, जैसे मंगल ग्रह मिशन के दौरान पौधे उगाने की संभावना और मजबूत होगी.


इस मिशन की सफलता इसरो के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है. वर्ष 2035 में जब भारत अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करेगा, तो इस तकनीक का उपयोग अंतरिक्ष में विभिन्न मॉड्यूल्स को जोड़ने के लिए किया जायेगा. भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए अलग-अलग कक्षीय प्लेटफॉर्मों को जोड़ने की जरूरत पड़ेगी, और यही तकनीक इसमें काम आयेगी. इसके अतिरिक्त, चंद्रयान-4 मिशन, जिसके जरिये चांद से मिट्टी के नमूने पृथ्वी पर लाने का लक्ष्य है, में भी यही डॉकिंग तकनीक इस्तेमाल होगी. वर्ष 2025 में व्योममित्र नामक महिला रोबोट गगनयान मिशन के लिए अंतरिक्ष यात्री जैसे कार्य करेगी. वर्ष 2026 में पहला मानवयुक्त गगनयान मिशन शुरू होगा, जिसमें यह अध्ययन उपयोगी साबित होगा. जब 2047 में चंद्रमा पर पहला भारतीय अंतरिक्ष यात्री उतरेगा, उस समय भी इस तकनीक की आवश्यकता पड़ेगी, क्योंकि अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने और वापस लाने के लिए डॉकिंग प्रक्रिया की जरूरत होगी.


इस मिशन के लिए भारत ने अपनी स्वयं की डॉकिंग मैकेनिज्म तैयार की. इसरो ने यह सुनिश्चित किया कि दोनों अंतरिक्ष यान बिना किसी समस्या के एक दूसरे से जुड़ सकें और फिर उन्हें अलग भी किया जा सके. यह तकनीकी स्वायत्तता भारत के अंतरिक्ष मिशनों को और भी सक्षम बनायेगी और भविष्य में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण योगदान करेगी. इसरो का अंतरिक्ष स्टेशन भविष्य में एक महत्वपूर्ण शोध और प्रयोगशाला केंद्र के रूप में कार्य करेगा. स्पैडेक्स मिशन के माध्यम से डॉकिंग तकनीक को परिष्कृत करने से यह सुनिश्चित होगा कि विभिन्न यानों के बीच सुरक्षा, डेटा और सामग्री का आदान-प्रदान आसानी से हो सके.

इसके अतिरिक्त, अंतरिक्ष स्टेशन पर लगातार संचालन के लिए आवश्यक उपकरणों और अन्य संसाधनों की आपूर्ति भी प्रभावी ढंग से की जा सकेगी. मिशन का उद्देश्य केवल तकनीकी परीक्षण नहीं है, बल्कि यह भी पता लगाना है कि इसरो के वैज्ञानिक भविष्य में अंतरिक्ष में दीर्घकालिक जीवन, अनुसंधान और प्रयोगों को किस तरह संचालित कर पायेंगे. इस तकनीक के माध्यम से भारतीय वैज्ञानिक अंतरिक्ष में अपने शोध और प्रयोगों को बेहतर तरीके से कर सकेंगे, और यह अंतरिक्ष स्टेशन को एक वास्तविक प्रयोगशाला में बदलने में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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