संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारी बहुमत से भारत का अस्थायी सदस्य चुना जाना एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक परिघटना है. बदलती विश्व व्यवस्था में 192 देशों के वैध मतों में से 184 मत हासिल करना यह इंगित करता है कि कोरोना संक्रमण से पैदा हुई परिस्थितियों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग और बहुपक्षीय सहकार को साकार करने में भारत की विशिष्ट भूमिका होगी. सात बार हमारे देश को इस शक्तिशाली मंच पर स्थान मिल चुका है. सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में और महासभा समेत अन्य इकाइयों में भारत की हमेशा से कोशिश रही है कि वैश्विक स्तर पर शांति और सहयोग का विस्तार होता रहे. लेकिन इस बार चुनौतियां बड़ी हैं.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने उचित ही रेखांकित किया है कि भारत ऐसे समय में सुरक्षा परिषद में प्रवेश कर रहा है, जब बहुपक्षीय विचार और व्यवहार में व्यापक सुधार अपेक्षित हैं, ताकि उनकी प्रासंगिकता बनी रहे. भारत लंबे समय से सुरक्षा परिषद की संरचना में संशोधन का आग्रह करता रहा है. वर्तमान में पांच देश- अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस- इसके स्थायी सदस्य हैं और उन्हें संयुक्त राष्ट्र या सुरक्षा परिषद के किसी भी निर्णय को रोक देने का विशेषाधिकार प्राप्त है. इसका परिणाम यह हुआ है कि ये देश अक्सर अपने हितों और स्वार्थों के अनुसार इस विशेषाधिकार का प्रयोग करते हैं. इससे विश्व में शांति स्थापित करने तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संतुलन साधने में अवरोध उत्पन्न होता है.
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने तथा उभरती अर्थव्यवस्थाओं में एक अग्रणी देश होने के नाते भारत स्थायी सदस्यता का ठोस दावेदार है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में सबसे अधिक योगदान देनेवाले देशों में शामिल होने तथा विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर निरंतर सकारात्मक भूमिका निभाने के बावजूद उसे उसका उचित स्थान नहीं मिल सका है. जैसा कि तिरूमूर्ति ने चिन्हित किया है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक दृष्टि कोरोना के बाद की दुनिया को गढ़ने में अहम तत्व होगी, सो भारत को मिली अस्थायी सदस्यता अपने प्रभाव के विस्तार का बड़ा अवसर बन सकती है. इस सदस्यता के लिए मिला व्यापक समर्थन भारत के बढ़ते महत्व को दर्शाता है.
बहुत सारे देश भारत की इस राय से सहमत हैं कि सुरक्षा परिषद का वर्तमान स्वरूप इक्कीसवीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता है और उसमें स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ायी जानी चाहिए. इस मंच से भारत इस आवाज को अब त्वरा से बुलंद कर सकता है तथा वैश्विक बेहतरी के लिए प्रधानमंत्री मोदी के पांच सूत्रों- सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति एवं समृद्धि- को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने प्रस्तुत कर सकता है. आतंक, हिंसा और वंचना से त्रस्त विश्व को साझा नेतृत्व की आवश्यकता है ताकि क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संतुलन और सहभागिता का वातावरण तैयार हो सके.