कोरोना से निबटने में बेहतर है भारत

भारत में कोरोना के खिलाफ जंग का यह तरीका काफी प्रभावी माना जा सकता है. जिस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन टेस्टिंग को ही एकमात्र समाधान बता रहा था, भारत सरकार ने लाॅकडाउन को ही अपना पहला हथियार बनाया.

By डॉ अश्विनी | September 1, 2020 2:38 AM
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डॉ. अश्विनी महाजन, एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय

ashwanimahajan@rediffmail.com

भारत में कोरोना के कारण हुए लाॅकडाउन को पांच महीने से ज्यादा हो चुके हैं. यह सही समय है जब हम कोरोना से निबटने में भारत के कार्य निष्पादन का मूल्यांकन करें. दुनिया में अभी तक ढाई करोड के लगभग लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं, जिसमें 8.35 लाख से ज्यादा की मौत हुई है. हालांकि बड़ी संख्या में लोग स्वस्थ भी हो रहे हैं. भारत में भी कोरोना संक्रमण से अभी तक लगभग 33.8 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हो चुके हैं और लगभग 61.6 हजार की मृत्यु भी हुई है. अमेरिका की जनसंख्या मात्र 33 करोड़ है, वहां 61 लाख लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं. ब्राजील की जनसंख्या मात्र 21.3 करोड़ है, वहां 37.6 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं.

भारत में संक्रमित लोगों की मृत्यु दर 1.83 प्रतिशत है, जबकि अमरीका में यह दर 3.1, ब्राजील में 3.2 और दक्षिण अफ्रीका में 2.1 प्रतिशत है. इटली में तो यह 13.7 प्रतिशत रही. कहा जा सकता है कि कोरोना से निबटने और इस कारण होनेवाली मृत्यु को कम करने में भारत काफी हद तक सफल रहा है. कोरोना का संक्रमण काफी तेजी से फैलता है. इससे बचने के लिए दुनिया के अधिकांश देशों ने लाॅकडाउन लागू किया. इससे बीमारी को फैलने से कुछ हद तक रोका जा सका.

भारत में कोरोना के खिलाफ जंग का यह तरीका काफी प्रभावी माना जा सकता है. जिस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन टेस्टिंग को ही एकमात्र समाधान बता रहा था, भारत सरकार ने लाॅकडाउन को ही अपना पहला हथियार बनाया. देश में जब पहली बार जनता कर्फ्यू की घोषणा हुई, तब कोरोना संक्रमितों की संख्या मात्र 360 थी. जब चीन समेत कुछ ही देशों में कोरोना का प्रभाव था, तभी अपने यहां विदेश से आनेवाले यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू हो गयी थी. लॉकडाउन लागू होने से पहले ही 15.5 लाख लोगों की स्क्रीनिंग हो चुकी थी और विदेशों से आने वाले यात्रियों को अनिवार्य रूप से कोरेंटिन करने का कार्य भी शुरू हो चुका था.

यह जानते हुए कि हमारे देश की स्वास्थ्य सुविधाएं अमरीका, यूरोप व अन्य विकसित देशों से कमतर हैं और सामुदायिक संक्रमण की स्थिति आने पर उसे संभाला नहीं जा सकेगा, भारत सरकार ने बड़े स्तर पर कोरेंटिन की सुविधा उपलब्ध करायी. ताकि विदेशों से आने वाले यात्रियों से संक्रमण न फैले. सरकार की सोच थी कि इस बीच जो समय मिलेगा, उसका उपयोग टेस्टिंग और इलाज के लिए सुविधाएं विकसित करने के लिए किया जायेगा. ऐसा हुआ भी. मार्च में, देश में कोरोना टेस्टिंग की सुविधा न के बराबर थी, आज देश में लगभग चार करोड़ कोरोना टेस्ट हो चुके हैं और प्रतिदिन आठ से दस लाख टेस्ट हो रहे हैं.

टेस्टिंग बढ़ने से कोरोना की वास्तविक स्थिति समझी जा सकती है. टेस्टिंग की गति बढ़ने के बावजूद पिछले 10 दिनों में कोरोना के नये संक्रमण का प्रतिशत दो से 2.5 प्रतिशत तक ही रहा है. एक दिन में जितने नये संक्रमण के मामले आ रहे हैं, लगभग उतने ही अथवा, उससे थोड़े कम लोग स्वस्थ भी हो रहे हैं. प्रधानमंत्री के अनुसार, कोरोना संक्रमितों की मृत्यु दर को एक प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा गया है. इस बाबत सफलता भी मिलती दिखायी दे रही है. 9 अगस्त, 2020 को जहां कोरोना मृत्यु दर 2.0 प्रतिशत थी, वह 27 अगस्त, 2020 तक घटकर 1.83 प्रतिशत पर आ गयी.

प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि प्रारंभिक तौर पर स्वास्थ्य सुविधाएं कम होने, सरकार के कुल व्यय में स्वास्थ्य सुविधाओं पर कम खर्च ओर कई राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं की लचर व्यवस्था के बावजूद, भारत में कोरोना से निबटने की रणनीति अन्य देशों की तुलना में क्यों बेहतर रही? कुछ लोगों का मानना है कि भारतीय लोगों में इस संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता अधिक है. भारतीय लोगों में प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होने के कई कारण हो सकते हैं. पहला, प्राकृतिक रूप से यहां के लोगों की संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता अधिक है.

दूसरा, कई वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि भारत में जन्म से ही बीसीजी का टीका लगाया जाता है, जिससे जीवनभर के लिए संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है. तीसरा, यहां पहले से ही विभिन्न प्रकार के संक्रमण मौजूद रहे हैं, और उनके खिलाफ लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है. चौथा, भारत में आयुर्वेदिक पद्धति के उपायों का खासा उपयोग हुआ है, जिस कारण लोगों में इस संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गयी. एक रिपोर्ट के अनुसार, एक क्वारंटाइन सेंटर में सभी को आयुर्वेदिक काढ़ा पिलाया गया. इससे वहां के सभी लोग स्वस्थ रहे. लेकिन जहां काढ़ा नहीं पिलाया गया, वहां कोरोना का संक्रमण अधिक देखा गया.

यही नहीं, भारत में हाइड्राॅक्सीक्लोरोक्वीन दवा का उपयोग भी बड़ी मात्रा में हुआ, जिस कारण न केवल संक्रमितों को ठीक किया जा सका, बल्कि स्वास्थ्यकर्मियों और अन्य कोरोना योद्धाओं में संक्रमण की संभावनाओं को भी कम किया जा सका. हालांकि, कई देशों में हाइड्राॅक्सीक्लोरोक्वीन के जरूरत से ज्यादा उपयोग के दुष्प्रभाव भी देखने को मिले हैं. स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव और तमाम मुश्किलों के बावजूद, भारत कोरोना से निबटने में शेष दुनिया से कहीं बेहतर स्थिति में रहा. इसका श्रेय देश की अधिकांश जागरूक जनता, कोरोना योद्धा, पुलिस बल और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मियों को जाता है. केंद्र और राज्य सरकारें भी इसके लिए प्रशंसा की पात्र हैं.

(ये लेखके के निजी िवचार हैं)

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