बौद्धिक संपदा के क्षेत्र में भारत की छलांग

Intellectual property : वर्ष 2023 में सबसे ज्यादा 16.40 लाख पेटेंट चीन ने पेश किये. जबकि अमेरिका 5,18,364 पेटेंट फाइलिंग ही करा पाया. इसके बाद जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और फिर भारत का स्थान है.

By प्रमोद भार्गव | December 6, 2024 12:24 PM

Intellectual property: पिछले पांच वर्षों के भीतर प्रस्तुत किये जाने वाले पेटेंट और औद्योगिक डिजाइनिंग फाइलिंग में भारत छलांग मारकर दुनिया के शीर्ष छह देशों में शामिल हो गया है. भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि है. विश्व बौद्धिक संपदा (डब्ल्यूआइपीओ) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में भारत द्वारा दाखिल किये गये पेटेंट की संख्या 64,480 थी. पेटेंट फाइलिंग में देश की वृद्धि दर 2022 की तुलना में 15.7 प्रतिशत थी. वर्ष 2023 में, दुनियाभर में 35 लाख से अधिक पेटेंट दाखिल किये गये. यह लगातार चौथा वर्ष था जब वैश्विक पेटेंट फाइलिंग में वृद्धि हुई.

वर्ष 2023 में सबसे ज्यादा 16.40 लाख पेटेंट चीन ने पेश किये. जबकि अमेरिका 5,18,364 पेटेंट फाइलिंग ही करा पाया. इसके बाद जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और फिर भारत का स्थान है. इस पेटेंट फाइलिंग की एक और विशेष बात रही कि सबसे ज्यादा पेटेंट एशियाई देशों द्वारा किये गये. वर्ष 2023 में वैश्विक पेटेंट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिजाइन फाइलिंग में एशिया की हिस्सेदारी क्रमशः 68.7 प्रतिशत, 66.7 प्रतिशत और 69 प्रतिशत रही है.


कोई भी व्यक्ति या कंपनी जब नयी दवा का उत्पाद या किसी उपकरण का आविष्कार करता है, तो उसे अपनी बौद्धिक संपदा बताते हुए पेटेंट करा लेता है. पश्चिमी देशों द्वारा अस्तित्व में लाया गया पेटेंट कानून, मूल रूप से भारत जैसे विकासशील देशों के पारंपरिक ज्ञान को हड़पने के लिए लाया गया है. क्योंकि यहां जैव विविधता के अकूत भंडार होने के साथ-साथ उनके नुस्खे मानव व पशुओं के स्वास्थ्य लाभ से भी जुड़े हैं. इन्हीं पारंपरिक नुस्खों का अध्ययन और उनमें मामूली फेरबदल कर उन्हें एक वैज्ञानिक शब्दावली दे दी जाती है और फिर पेटेंट के जरिये इस ज्ञान को हड़प इसके एकाधिकार चंद लोगों के सुपुर्द कर दिये जाते हैं.

यही वजह है कि वनस्पतियों से तैयार दवाओं की ब्रिकी करीब तीन हजार अरब डॉलर तक पहुंच गयी है. हर्बल या आयुर्वेद उत्पाद के नाम पर सबसे ज्यादा दोहन भारत की प्राकृतिक संपदा का हो रहा है. अब तक वनस्पतियों की जो जानकारी वैज्ञानिक हासिल कर पाये हैं, उनकी संख्या लगभग दो लाख, 50 हजार है. इनमें से 50 प्रतिशत उष्णकटिबंधीय वन-प्रांतरों में उपलब्ध हैं. भारत में 81 हजार वनस्पतियां और 47 हजार प्रजातियों के जीव-जंतुओं की पहचान सूचीबद्ध है. अकेले आयुर्वेद में पांच हजार से भी अधिक वनस्पतियों का गुण व दोषों के आधार पर मनुष्य जाति के लिये क्या महत्व है, विस्तार से विवरण है. हमारे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में जिन 84 लाख जीव-योनियों का विवरण है, उनमें 10 लाख वनस्पतियां और 52 लाख इतर जीव-योनियां बतायी गयी हैं. ब्रिटिश वैज्ञानिक रॉबर्ट एम ने जीव व वनस्पतियों की दुनिया में कुल 87 लाख प्रजातियां बतायी हैं.


विदेशी दवा कंपनियों की निगाहें इस हरे सोने के भंडार पर टिकी हैं. इसलिए 1970 में अमेरिकी पेटेंट कानून में नये संशोधन किये गये. विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि ‘नया पेटेंट कानून परंपरा में चले आ रहे देशी ज्ञान को महत्व व मान्यता नहीं देता. बल्कि जो जैव व सांस्कृतिक विविधता और उपचार की देशी प्रणालियां प्रचलन में हैं, उन्हें नकारता है.’ स्पष्ट है कि बड़ी कंपनियां देशी ज्ञान पर एकाधिकार प्राप्त कर समाज को ज्ञान और उसके उपयोग से वंचित करना चाहती हैं. इसी क्रम में सबसे पहले भारतीय पेड़ नीम के औषधीय गुणों का पेटेंट अमेरिका और जापान की कंपनियों ने कराया था.

तीन दिसंबर, 1985 को अमेरिकी कंपनी विकउड लिमिटेड को पेटेंट संख्या 45,56,562 के तहत नीम के कीटनाशक गुणों की मौलिक खोज के पहले दावे के आधार पर बौद्धिक संपदा का अधिकार दिया गया. इसके पहले सात मई, 1985 को जापान की कंपनी तरुमो कॉरपोरेशन को पेटेंट संख्या 45,15,785 के तहत नीम की छाल के तत्वों व उसके लाभ को नयी खोज मान बौद्धिक स्वत्व दिया गया था. इसके बाद तो पेटेंट का सिलसिला रफ्तार पकड़ता गया. हल्दी, करेला, जामुन, तुलसी, भिंडी, अनार, आमला, रीठा, अर्जुन, हरड़, अश्वगंधा, शरीफा, अदरक, कटहल, अरंड, सरसों, बासमती चावल, बैंगन और खरबूजा तक पेटेंट की जद में आ गये.


सबसे नया पेटेंट भारतीय खरबूजे का हुआ है. इसे पेटेंट संख्या इपी, 19,62,578 देकर इसके एकाधिकार अमेरिकी बीज कंपनी मोनसेंटो को दे दिया गया. भारतीय वैज्ञानिकों ने इस हरकत को बायो-पायरेसी कहा. हर भारतीय जानता है कि करेले और जामुन का उपयोग मधुमेह से मुक्ति के उपायों में शामिल है. किंतु नया आविष्कार जता अमेरिकी कंपनी क्रोमेक रिसर्च ने इनके पेटेंट को हासिल कर लिया है. इसी तरह केरल में पायी जाने वाली ‘वेचूर’ नस्ल की गायों के दूध में पाये जाने वाले तत्व ‘अल्फा लैक्टलबुमिन’ का पेटेंट इंग्लैंड के रोसलिन संस्थान ने करा लिया था.

इसी तरह भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बहुतायत में पैदा होने वाले बासमती चावल का पेटेंट अमेरिकी कंपनी राइसटेक ने हड़प लिया. हल्दी के औषधीय गुणों व उपचार से देश का हर व्यक्ति परिचित है. इसका भी पेटेंट अमेरिकी कंपनी ने करा लिया था, किंतु इसे चुनौती देकर भारत सरकार खारिज करा चुकी है. अतएव, इस परिप्रेक्ष्य में यह खुशी और गर्व की बात है कि भारत पेटेंट फाइलिंग की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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