15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शांति व सहकार भारत का संदेश

अपने विश्वस्त मित्र देश के राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि युद्ध को रोकना ही एकमात्र विकल्प है, वैश्विक कूटनीति परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप माना जा रहा है और यह आशा जतायी जा रही है कि इसके सकारात्मक परिणाम होंगे.

दुनिया की तस्वीर बदल पहले भी रही थी, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने इसकी गति तेज कर दी है. अवसर और चुनौती भारत के लिए भी है. अभी तक बड़े संघर्षों और समस्याओं को लेकर चंद देशों की राय महत्वपूर्ण मानी जाती थी या उनके हितों की चर्चा होती थी, लेकिन अब भारत की सोच और दांव-पेंच अहम बन चुके हैं. समरकंद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना संबोधन छोटा, किंतु मुद्दों पर केंद्रित रखा था.

इस सम्मेलन के दौरान जब प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत की, तो उन्होंने बेबाक सूझ सामने रखी. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह समय युद्ध का नहीं, बल्कि संरचनात्मक प्रयास का है. महामारी, खाद्य संकट, आर्थिक मुश्किलों तथा सबसे प्रमुख शांति व स्थिरता के लिए प्रयासरत होने की आवश्यकता उन्होंने रेखांकित की. भारतीय प्रधानमंत्री का दो-टूक संदेश दुनिया के कूटनीतिक मंचों पर चर्चा का विषय बन गया है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ्रांस के राष्ट्रपति मैकरां ने इसकी प्रशंसा की तथा अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने भी इसका समर्थन किया है. शांति की पहल और देशों के बीच सहकार बढ़ाना प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति का अहम हिस्सा है. उन्होंने 2016 में नेपाल यात्रा के दौरान कहा था कि दुनिया के समक्ष युद्ध के बजाय बुद्ध को अंगीकार करने का विकल्प है. तब वह संदेश चीन के लिए था, जो भारतीय उपमहाद्वीप में संकट पैदा करने की कोशिश में था. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच चीन ताइवान को लेकर आक्रामक हो रहा है.

दूसरी तरफ पश्चिमी देश यूक्रेन के जरिये युद्ध की आग में घी डालने में लगे हैं. आज दुनिया दो विपरीत खंडों में विभाजित होकर युद्ध की लपटों को हवा देने में जुटी हुई है. ऐसी स्थिति में अपने विश्वस्त मित्र देश के राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि युद्ध को रोकना ही एकमात्र विकल्प है, वैश्विक कूटनीति परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप माना जा रहा है और यह आशा जतायी जा रही है कि इसके सकारात्मक परिणाम होंगे.

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी का यह संदेश जितना रूस को संबोधित है, उतना ही पड़ोसी देश चीन तथा अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए भी महत्व रखता है. इस संदर्भ में समरकंद सम्मेलन के विभिन्न पहलुओं को देखा जाना भी जरूरी है. शंघाई सहयोग संगठन में भारत को सदस्यता रूस के कारण मिली थी. इसके बदले में चीन ने पाकिस्तान को भी सदस्य बनाया था. अब चीन ईरान को भी सदस्य बनाना चाहता है.

चीन की मंशा पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका, का विरोधी मंच बनाने की है. चीन क्वैड के विरोध में एक तंत्र तैयार बनाने का इरादा भी रखता है. चूंकि रूस भी इस मुहीम में चीन के साथ है, इसलिए परिस्थिति गंभीर बनती जा रही है. भारत के नजरिये से रूस और पाकिस्तान की वार्ता चिंता का कारण है, लेकिन यह उतना पेचीदा नहीं है, जितना इसकी चर्चा हो रही है.

विश्व राजनीति में मित्रता और तटस्थता समय पूरक होते हैं तथा वे राष्ट्रीय हित के अनुसार तय होते हैं. इसमें घरेलू राजनीति की भी भूमिका होती है. चूंकि समय के साथ भारत-अमेरिका संबंध एक नयी ऊंचाई पर पहुंच चुका है, वहीं रूस और चीन अमेरिका को शत्रु मान चुके है, इसलिए भी भारत और रूस के बीच एक दरार दिख रही है.

लेकिन यह दरार न स्थायी है और न ही गहरा. यह बात राष्ट्रपति पुतिन को भी मालूम है और रूस के साथ भारत अपना भरोसा बनाये हुए है. समस्या यहां से शुरू होती है. भारत ने शांति का संदेश तो दिया है, लेकिन भारत चीन को कैसे रोक पायेगा? वह भी ऐसे समय जब रूस चीन के अदना सहयोगी के रूप में तब्दील हो गया है. शीत युद्ध के दौरान पाकिस्तान और रूस नजदीक नहीं आये.

आज जब अफगानिस्तान का मसला भारत के लिए एक चुनौती है, तो रूस और पाकिस्तान की दोस्ती भारत के लिए टीस की तरह होगी, क्योंकि बिसात चीन के द्वारा तैयार होगा और रूस व पाकिस्तान मोहरे के रूप में इस्तेमाल होंगे. शंघाई सहयोग संगठन में अभी आठ सदस्य (चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान), चार पर्यवेक्षक (अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया) तथा छह संवाद सहयोगी (आर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की) हैं.

नयी विश्व व्यवस्था में भारत का मुख्य दुश्मन चीन है. इसलिए जरूरत चीन की धार कुंद करने की है. इसके लिए भारत का सबसे मजबूत आधार अमेरिका और पश्चिमी दुनिया है. साथ में पूर्वी एशिया के देश भी शामिल हैं. क्वैड इसका मंच है. प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकात नयी विश्व व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी. दोनों की व्यक्तिगत मित्रता भी परस्पर संबंधों के लिए अहम है. बातचीत का दायरा भी स्पष्ट था.

अमेरिकी विरोध के बावजूद भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्‍टम खरीद रहा है. हमारे रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, औद्योगिक तकनीकी और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों के विकास में रूस का बड़ा योगदान रहा है. वैश्विक राजनीति और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका के समक्ष रूस एक सकारात्मक संतुलन स्थापित करने में सहायता करता है.

विश्व राजनीति में परिवर्तन भारत के अनुकूल है क्योंकि भारत की वैश्विक दृष्टि अपने दम पर बनकर तैयार हुई है, जिसकी बागडोर एक मजबूत हाथ में है. आजादी के बाद से अभी तक भारत की विदेश नीति इतनी तेज और धारदार कभी नहीं रही. अन्य देशों को जोड़ने के साथ-साथ मध्यवर्ती ताकतों की टोली बनाने में भारत सफल रहा है, जो इस बात की वकालत करता है कि विश्व व्यवस्था बहुकेंद्रीय बननी चाहिए. इसके लिए रूस भी भारत के साथ है.

यही सोच भारत और रूस के संबंधों को बेहतर बनायेगी. रूस-पाकिस्तान संबंध कूटनीतिक बुलबुले की तरह है, जो जल्दी ही उड़ जायेगा. दो टूक सच्चाई यह है कि भारत का मजबूत आत्मनिर्भर आर्थिक ढांचा ही विश्व राजनीति में उसके लिए यथोचित जगह बनाने में कारगर होगा. उम्मीद भी है कि परिवर्तन भी उसी ढंग से होगा. रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणाम से भारत की क्षमता में कोई गिरावट नहीं होगी, जबकि चीन की स्थिति कमजोर होगी. प्रधानमंत्री मोदी सहयोग व सहकार बढ़ाने के साथ सच को अभिव्यक्त करने का साहस भी रखते हैं, इसे दुनिया ने फिर एक बार देखा है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें