तुर्किये में जो छह फरवरी को भारी तबाही हुई है, उसकी वजह भूकंप का एक झटका नहीं है. उस दिन देश के दक्षिणी इलाके में दो भारी झटके लगे थे, जिनकी तीव्रता 7.7 और 7.6 रही थी. उसके बाद लगभग 800 आफ्टरशॉक लगते रहे. इससे यह हुआ कि इमारतें गिरती चली गयीं और जान-माल का भारी नुकसान हुआ है. जो जानकारियां सामने आ रही हैं, उनसे पता चलता है कि तुर्किये में 50 हजार से ज्यादा मकान टूटे हैं. सीरिया में भी सैकड़ों इमारतें ध्वस्त हुई हैं.
सीरिया में जो भूकंप प्रभावित क्षेत्र हैं, उनमें से 40 फीसदी हिस्सा राष्ट्रपति बशर अल-असद के नियंत्रण में है तथा 60 प्रतिशत भाग पर विद्रोही समूहों का अधिकार है. इस कारण वहां से तबाही का पूरा आकलन हमें नहीं मिल पा रहा है. माना जा रहा है कि सीरिया में मरने वालों की संख्या लगभग छह हजार है. तुर्किये में मकान और अन्य इमारतें तो तबाह हुई ही हैं, साथ ही सड़कों और अस्पतालों को भी भारी नुकसान हुआ है.
हताये हवाई अड्डा पूरी तरह बर्बाद हो चुका है. उसे कामचलाऊ बना पाने में तीन दिन लग गये. ऐसे में राहत और बचाव में बड़ी मुश्किलें आ रही हैं. इस वजह से भी मृतकों की संख्या बहुत अधिक हो गयी है. आकलनों में बताया जा रहा है कि तुर्किये में 80 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है.
अब सवाल यह है कि क्या इस तबाही को रोका जा सकता है. हम भूकंप को तो नहीं रोक सकते हैं, लेकिन अगर ठीक से भूकंपरोधी इमारतों का निर्माण हुआ होता, तो नुकसान को बहुत कम किया जा सकता था. इस सबक को हम सभी को ध्यान रखना चाहिए. तुर्किये में आपदा से बचाव और राहत की जो एजेंसी बनायी गयी, वह एक अच्छी व्यवस्था है. किसी दौर में ऐसी एजेंसियों पर सेना का कब्जा रहता था और उससे जवाबदेही तलब कर पाना बेहद मुश्किल था.
लेकिन राष्ट्रपति एर्दोआं के सत्ता में आने के बाद इस तरह के विभागों में विशेषज्ञ और प्रशिक्षित लोगों को रखा गया है. नागरिकों की भागीदारी से बनी राहत और बचाव एजेंसी के लिए यह भूकंप एक बड़ी परीक्षा के रूप में आया है. इतनी बड़ी आफत में उनकी भूमिका ठीक रही है, पर आपदा इतनी गंभीर थी कि इसे संभालना उनके बस की बात नहीं थी. तुर्किये सरकार ने भी बिना कोई देरी किये दुनिया के सामने मदद की अपील कर दी. वर्तमान में वहां 70 देशों के आठ हजार से अधिक लोग पीड़ितों की मदद करने, मलबा हटाने और लोगों को बचाने की कोशिश में लगे हुए हैं. इसमें भारत की उल्लेखनीय भूमिका रही है.
तुर्किये की मदद के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो तत्परता दिखाई है, वह बहुत सराहनीय है. जैसे ही भीषण भूकंप की सूचना मिली, तत्काल उन्होंने संबद्ध मंत्रालयों और विभागों को हरसंभव मदद भेजने का निर्देश दे दिया. मुझे यह जानकारी नहीं है कि इस संबंध में तुर्किये सरकार से सीधे कोई निवेदन आया था या नहीं, पर प्रधानमंत्री मोदी ने सहायता मुहैया कराने के मामले में कोई देरी नहीं की. भारतीय सहायता प्रयासों को ‘ऑपरेशन दोस्त’ का नाम दिया गया है.
भारत की तत्परता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि आपदा के पांच-छह घंटे के भीतर ही भारत से पहला जहाज ततुर्किये के लिए रवाना हो गया. ‘ऑपरेशन दोस्त’ के तहत सेना के जवान, डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, बचाव दल, डॉग स्कवायड, फील्ड अस्पताल के साजो-सामान, दवाइयां, उपकरण आदि भेजे गये हैं. अनेक जहाज तुर्किये जा चुके हैं तथा भारत सरकार ने तुर्किये को भरोसा दिलाया है कि यह मदद जारी रहेगी. सीरिया को भी भारत ने तीन जहाजों से मदद भेजी है.
हालांकि भारत सरकार की ओर से कोई बयान नहीं आया है, लेकिन सीरिया में जो मदद संयुक्त राष्ट्र की ओर से भेजी जा रही है, उसमें भारत का भी अहम योगदान है. संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों में भारत ऐतिहासिक रूप से सहयोग करता रहा है. जहां सीधे मदद भेजी जा सकती है, जैसे- बशर अल-असद के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में, वहां भारत ने सीधे सहायता भी भेजी है.
उल्लेखनीय है कि भारत लंबे समय से दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आपदा और अन्य संकटों में मानवीय सहायता भेजता रहा है. लेकिन पहले तत्काल मदद नहीं भेजी जाती थी. उसमें देरी हुआ करती थी, लेकिन हाल के कुछ वर्षों में ऐसे प्रयासों में बहुत तत्परता देखी जा रही है. ऐसा हमने नेपाल और मालदीव में भी देखा, हाल में श्रीलंका में आर्थिक संकट के दौरान भी देखा. यहां यह बात भी हमें ध्यान में रखनी चाहिए कि भारत और तुर्किये के मौजूदा रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं.
अनेक मामलों में दोनों की राय अलग-अलग है. तुर्किये की पाकिस्तान से निकटता भी भारत के उसके संबंधों को प्रभावित करती है. चूंकि घरेलू राजनीति में भी ऐसे मामले संवेदनशील होते हैं, तो उन्हें बहुत जल्दी सुलझा पाना आसान नहीं होता, लेकिन जब ऐसा संकट आया, तो भारत ने अन्य आयामों को परे रखते हुए सहयोग का हाथ बढ़ा दिया. भारत ने जो मदद की है, वह कोई सांकेतिक सहयोग नहीं है.
सात जहाज गये हैं, ढाई सौ लोगों का दल है, फील्ड अस्पताल है, डॉग स्कवायड है. और, आगे भी हर तरह की मदद का आश्वासन दिया गया है. हाल के समय में किसी दूसरे देश में यह भारत का ऐसा सबसे बड़ा ऑपरेशन है. जिस प्रकार वैश्विक मंच पर भारत का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, इस तरह की बड़ी पहल होनी भी चाहिए. इससे दुनिया में यह संकेत जायेगा कि भारत बड़ी जिम्मेदारियां लेने के लिए तैयार है. मोदी सरकार की इस पहल ने भारत के प्रभाव को पड़ोस या एशिया से आगे मध्य-पूर्व और यूरोप तक पहुंचा दिया है.
यह भूकंप ऐसे समय में आया है, जब मई में वहां चुनाव होने वाले हैं. अब यह चुनाव एक महीने या कुछ और समय के लिए टालना पड़ सकता है. राष्ट्रपति एर्दोआं के पास चुनाव को स्थगित करने और नयी तारीखों के निर्णय का अधिकार नहीं है. इस तरह का कोई भी फैसला संसद ही ले सकती है. चुनाव जब भी हों, पर इस आपदा ने राष्ट्रपति एर्दोआं के लिए बड़ी चुनौती तो पैदा कर ही दी है. चुनाव की पूरी राजनीति ही इस आपदा के कारण बदल जायेगी.
नतीजा जो भी हो, भारत के आगे बढ़कर मदद करने से वहां के लोगों और नेताओं में भारत के प्रति नजरिया बदलेगा. यह होने भी लगा है. तुर्किये के मंत्रियों, राजनयिकों और सामाजिक संगठनों ने भारत के प्रति आभार जताया है. मीडिया में हम देख रहे हैं कि वहां लोग भारतीय बचाव दल के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रहे हैं.