16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सूर्य के व्यवस्थित अध्ययन के लिए तैयार भारत

आदित्य एल-1 के जरिये भारत पहली बार व्यवस्थित तरीके से सूर्य का अध्ययन कर सकता है. इससे पहले तक ऐसे किसी भी अध्ययन के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था

तपन मिश्र

पूर्व इसरो वैज्ञानिक

delhi@prabhatkhabar.in

अंतरिक्ष विज्ञान अभी स्पेस इंडस्ट्री में बदलता जा रहा है. ऐसे में इसरो अब पृथ्वी से बाहर के अभियानों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. इसी कड़ी में अभी चंद्रयान-3 का अभियान हुआ, फिर आदित्य एल-1 का नंबर है, और बाद के लिए मंगल मिशन जैसे अभियानों की तैयारी चल रही है. चांद पर खोज के लिए जारी चंद्रयान अभियान के बाद, दो सितंबर को सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य एल-1 को भेजा जायेगा. दरअसल, सूर्य पर होने वाली गतिविधियों का मौसम पर बहुत प्रभाव पड़ता है.

उससे अंतरिक्ष में काम कर रहे सैटेलाइट भी प्रभावित हो सकते हैं. सूर्य पर जब बड़ा विस्फोट होता है, तो उससे बहुत तेज हवा निकलती है जिसे सौर तूफान या सौर आंधी कहा जाता है. सूर्य से तब अल्फा कण निकलते हैं जिनकी गति 600 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है. हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि वह तूफान हर बार पृथ्वी की ओर ही आयेगा.

मगर इस तूफान के पृथ्वी की ओर आने की सूरत में पहले से पता चल जाने पर इसकी चेतावनी देने के साथ, सैटेलाइटों को बचाने के लिए जरूरी कदम उठाये जा सकते हैं. इसका पता लगाने के लिए एक सेंसर भेजना होगा. पृथ्वी और सूर्य के बीच स्थापित इस सेंसर को पृथ्वी की ही भांति 365 दिन में चक्कर काटना होगा, ताकि वह सूर्य की लगातार निगरानी करता रह सके. पृथ्वी और सूर्य के बीच जिस प्वाइंट पर यह सेंसर रखा जा सकता है, उसे लैग्रेंज या लैग्रेंजियन प्वाइंट या एल-1 कहा जाता है.

धरती से दूर जाने पर गुरुत्वाकर्षण एक सीमा के बाद घटता जाता है और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बढ़ता जाता है. एक जगह पर धरती और सूर्य की ग्रैविटी बराबर हो जाती है, और वहां यह लगभग शून्य हो जाती है. इस जगह को लैग्रेंजियन प्वाइंट कहा जाता है. यह पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है. आदित्य-एल1 इसी प्वाइंट पर जायेगा. उस जगह जाकर यह एल प्वाइंट की 365 दिन परिक्रमा के लिए एक छोटा ऑरबिट भी बनायेगा.

सूर्य की बाहरी सतह का तापमान भी अरबों डिग्री सेंटीग्रेड होता है. हम इस गर्मी से बच जाते हैं क्योंकि लगभग 30 किलोमीटर का वायुमंडल इस गर्मी को सोख लेता है. जब सौर तूफान आयेगा या इलेक्ट्रॉन निकलेंगे, तो उससे एक चुंबकीय क्षेत्र भी निर्मित होगा. आदित्य इलेक्ट्रॉन का प्रवाह और चुंबकीय क्षेत्र, दोनों का अध्ययन करेगा. हालांकि, सौर तूफान के धरती तक आने में काफी समय लगता है क्योंकि सूर्य हमसे नौ करोड़ किलोमीटर दूर है.

इस दूरी को 600 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से तय करने में भी पांच-छह दिन लग जायेंगे. वहीं धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर स्थित आदित्य, सौर तूफान की चेतावनी उसके धरती पर पहुंचने के कुछ घंटे पहले दे देगा. आदित्य सूर्य की लगातार निगरानी करता रहेगा और खास तौर पर जब सौर गतिविधियां बढ़ने लगेंगी, तो वह हमें सौर तूफान के आने पर सतर्क कर देगा. सौर तूफानों के आने का एक चक्र होता है जो 11 वर्षों का होता है.

इसे डाल्टन साइकिल कहा जाता है, जो असल में आठ से 13 सालों के बीच का होता है, मगर इसे 11 साल का कहा जाता है. अगला सौर तूफान 2025-26 में आ सकता है. लेकिन इस सौर चक्र के अलावा, एक दूसरा सौर चक्र भी होता है जिसे मॉन्डर साइकिल कहा जाता है. यह चक्र 200-300 साल में आता है. इसमें सौर गतिविधियां घट जाती हैं और 100 साल तक यही स्थिति रहती है. इससे ठंड बढ़ जाती है क्योंकि सूर्य की सतह का तापमान लगभग सात प्रतिशत घट जाता है, और इससे धरती का तापमान भी घट जाता है.

धरती का तापमान यदि दो प्रतिशत भी कम होता है तो वह काफी घट जायेगा. इसे मिनी आइस एज या छोटा हिम युग कहा जाता है. इस चक्र से व्यापक स्तर पर जलवायु परिवर्तन हो सकता है. ऐसा एक चक्र वर्ष 1450 के आस-पास आया था. तब यूरोप में इतनी बर्फ पड़ी कि खेती-बाड़ी बंद हो गयी. तब वहां के लोगों ने अमेरिका जाना शुरू किया. इसके बाद अगला मॉन्डर साइकिल 1750 के समय आया, जिससे यूरोप में फिर से ठंड बढ़ गयी. तब तक यूरोप में औद्योगिक क्रांति भी शुरू हो गयी थी और उन्हें कच्चे माल की जरूरत थी.

ऐसे में यूरोप से ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत का रुख किया और यहां से कपास और नील जैसी चीजें इंग्लैंड जाने लगीं. वर्ष 2030 से एक बार फिर से मॉन्डर चक्र शुरू हो सकता है. ऐसे में आदित्य एल-1 बिल्कुल सही समय पर शुरू हुआ मिशन है. यह पहले 2025-26 के सौर तूफान का पता लगायेगा और आगे जाकर 2030 में मॉन्डर साइकिल का भी पता लगा सकता है.

भारत के अलावा अमेरिका ने भी सूर्य का अध्ययन करने की कोशिश की है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी इएसए के साथ मिलकर 1995 में सोहो मिशन के तहत लैग्रेंजियन प्वाइंट पर यान भेजा था. इसके बाद नासा ने 2018 में एक और अभियान शुरू किया था जिसका नाम पार्कर सोलर मिशन था.

वह बहुत महत्वपूर्ण अभियान था जिसमें पार्कर ने सूर्य की सतह के बिल्कुल नजदीक जाकर अध्ययन किया था, यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी. अमेरिका के अलावा रूस भी सूर्य के अध्ययन के लिए अभियान चला रहा है. आदित्य एल-1 के जरिये भारत पहली बार व्यवस्थित तरीके से सूर्य का अध्ययन कर सकता है. इससे पहले तक ऐसे किसी भी अध्ययन के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था.

लेकिन, दूसरे देश पहले अपने अध्ययन और उपयोग कर लेते हैं, और उसके बाद बची हुई हड्डी के समान सूचनाएं दूसरों के साथ साझा करते हैं. हम ऐसा कह सकते हैं कि पहले हम सेकेंड हैंड साइंस के आधार पर प्रयोग कर रहे थे जिसमें हमारे पास डेटा आठ से दस साल बाद पहुंचते थे. चंद्रयान-3 से भारत को पहली बार फर्स्ट हैंड डेटा और जानकारियां मिलेंगी. यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है.

यहां ध्यान रखना जरूरी है कि आदित्य एल-1 कोई सरकारी अभियान नहीं है. यह वैज्ञानिकों का एक साझा अभियान है. इसरो ने सैटेलाइट बनाया है, मगर इस पर लगे पेलोड इसरो के अलावा फिजिकल रिसर्च लेबोरेट्री, आयुका और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने बनाये हैं. यह पहली बार हो रहा है जब भारत अपने अंतरिक्ष अभियान के लिए सारे उपकरण खुद बना रहा है, जो बहुत बड़ा परिवर्तन है. आगे चलकर और भी लैब बनेंगे, और वे भी उपग्रह बनायेंगे और अपने मिशन चलायेंगे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

(बातचीत पर आधारित)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें