विश्व बैंक की रिपोर्ट खारिज करे भारत
इस महीने जारी विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट 2024 में आर्थिक शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए विश्व बैंक ने भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम, दक्षिण अफ्रीका जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बारे में नकारात्मक टिप्पणी की है.
world bank report: रिपोर्ट का कहना है कि भारत को अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय के एक-चौथाई स्तर तक पहुंचने में 75 साल लगेंगे, यानी एक तरह से भारत के 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था बनने के संकल्प का मजाक उड़ाने की कोशिश की गयी है. विश्व बैंक का दावा है कि यह रिपोर्ट 108 मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के आंकड़ों पर आधारित है, जिनमें दुनिया की 75 प्रतिशत आबादी रहती है और जो सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत उत्पन्न करते हैं. इस रिपोर्ट ने भारत और इंडोनेशिया की औद्योगिक नीति की आलोचना करते हुए कहा है कि बहुत अधिक विकास से तेजी से अमीर बनने के बजाय उन्हें लंबी अवधि के लिए धीमी, पर निरंतर वृद्धि का लक्ष्य रखना चाहिए. यह सुझाव दिया गया है कि मध्यम आय वाले देशों को घरेलू प्रौद्योगिकी विकास का मोह छोड़ना चाहिए और अन्य देशों, विशेष रूप से विकसित देशों और उनकी कंपनियों, द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिए क्योंकि स्वयं की प्रौद्योगिकी विकसित करने का प्रयास संसाधनों की बर्बादी होगा. भारत को आगाह किया गया है कि वह अपनी तकनीक विकसित करने की कोशिश न करे, जैसा मलेशिया और इंडोनेशिया ने किया है.
हैरानी की बात यह है कि भारत की सेमीकंडक्टर नीति और रक्षा आत्मनिर्भरता नीति की भी आलोचना की गयी है. ‘द इकोनॉमिस्ट’ लिखता है कि भारत द्वारा 509 रक्षा उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने के बाद भारत दुनिया के शीर्ष 25 रक्षा निर्यातकों की सूची से बाहर हो गया है. रिपोर्ट में यह कहने की कोशिश की गयी है कि भारत में सरकारी संरक्षण और नयी (विदेशी) फर्मों के प्रवेश पर पाबंदी से कुशल फर्म भी कुशल नहीं रह पायेंगी. रिपोर्ट कहती है कि जहां एक औसत अमेरिकी फर्म 40 साल में आकार में सात गुना बढ़ जाती है, वहीं भारत में यह केवल दोगुनी होती है.
ऐसा लगता है कि विश्व बैंक इस बात से नाराज है कि भारत सरकार ने टेस्ला इलेक्ट्रिक कार कंपनी की शर्तों को खारिज कर दिया है और आयात शुल्क में पूरी छूट देने से इनकार कर दिया है. रिपोर्ट के लेखकों को शायद यह बात पता नहीं है कि भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग का दुनिया में अपना एक अलग स्थान है, जिसके कारण देश में ऑटोमोबाइल कंपनियों ने बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्माण शुरू कर दिया है.
भारत ऑनलाइन लेन-देन (यूपीआइ) में तेजी से विकास कर रहा है, जिसे खुद इस रिपोर्ट ने भी स्वीकार किया है. यूपीआई को कई देश अपनाने के लिए उत्सुक हैं. चूंकि भारत ने यह तकनीक विकसित कर ली है, इसलिए वह स्विफ्ट जैसी अपनी भुगतान प्रणाली बना सकता है. भारत ने मित्र देशों से रुपये में तेल खरीदने जैसे लेन-देन करना शुरू कर दिया है, जो अमेरिका और यूरोप के देशों को पसंद नहीं है.
भारत में इस तकनीक के विकसित होने के बाद वीजा और मास्टर कार्ड जैसी कंपनियां बाजार से लगभग बाहर हो गयी हैं. अंतरिक्ष क्षेत्र एक और उदाहरण है, जहां भारत ने अपनी स्वदेशी तकनीक विकसित कर पीएसएलवी और चंद्रयान जैसी परियोजनाओं को सफलतापूर्वक लॉन्च किया. चंद्रयान बनाकर भारत चंद्रमा के अंधेरे हिस्से में पहुंचने वाला पहला देश बन गया. जिस लक्ष्य के लिए अमेरिका को 166 अरब डॉलर खर्च करने पड़े, भारतीय वैज्ञानिकों ने उसे महज 615 करोड़ रुपये में हासिल कर लिया. विश्व बैंक को समझना होगा कि पिछले पांच वर्षों में भारत का रक्षा निर्यात कई गुना बढ़ गया है. जब भारत ने इन देशों से अंतरिक्ष क्षेत्र में तकनीक मांगी थी, तो इसे सिरे से खारिज कर दिया गया था.
रक्षा क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका को लेकर विश्व बैंक का चिंतित होना स्वाभाविक है, क्योंकि इससे विकसित देशों के रक्षा बाजार अब सिकुड़ रहे हैं. विश्व बैंक यह क्यों भूल जाता है कि इन सभी कथित ‘गलतियों’ के बावजूद भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है, जबकि विकसित देश भयंकर मुद्रास्फीति और संकुचन या ठहराव की स्थिति से गुजर रहे हैं. अधिकतर यूरोपीय देश कर्ज के बोझ से भी दबे हुए हैं, जबकि भारत भुगतान संतुलन में घाटे से बाहर आ रहा है. रुपये में पहले से बेहतर स्थिरता है, बुनियादी ढांचे में लगातार सुधार हो रहा है, बौद्धिक संपदा में निरंतर प्रगति हो रही है और पहले की तुलना में कई गुना अधिक पेटेंट दिये जा रहे हैं. केंद्रीय बजट में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एक लाख करोड़ रुपये का कोष बनाया गया है. बहुआयामी गरीबी में अभूतपूर्व कमी आयी है और बेघरों को घर दिये जा रहे हैं. सरकारी सहायता, बिजली, पानी, शौचालय, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था गरीबों के जीवन में बदलाव ला रही है. इन सबके लिए संयुक्त राष्ट्र की यूएनडीपी जैसी संस्थाओं द्वारा भारत की प्रशंसा की जा रही है.
विश्व बैंक को यह अवश्य पता होना चाहिए कि वर्तमान में क्रय शक्ति समता के आधार पर भारत की प्रति व्यक्ति आय 10,000 अमेरिकी डॉलर से ऊपर पहुंच रही है, जो निश्चित रूप से अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय का 10 प्रतिशत से अधिक है. इसलिए उच्च आय वाला देश बनने के भारत के संकल्प का मजाक उड़ाना उचित नहीं है. कई आलोचकों का मानना है कि यदि विश्व बैंक भारत के विकास के मार्ग की आलोचना कर रहा है, तो निश्चित रूप से भारत सही मार्ग पर है. अतीत में भी विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा विकसित देशों के इशारे पर कई शर्तें लगाकर भारत की राह बाधित करने की कोशिश की गयी थी. रिपोर्ट के लेखकों को ‘मध्यम आय जाल’ के नाम पर अपने तर्कों को सही साबित करना है. उन्हें पता होना चाहिए कि आत्मनिर्भर भारत की जो रणनीति अपनायी जा रही है, वह विश्व बैंक के निरर्थक सिद्धांतों पर आधारित नहीं है, बल्कि यह अतीत और वैश्वीकरण के अंधे रास्ते से मिली सीखों का परिणाम है, जिसने घरेलू उद्योग को ध्वस्त कर दिया है. विश्व बैंक की रिपोर्ट वास्तव में एक मनगढ़ंत लेख है, जिसमें तर्क और जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है. भारत को ऐसी रिपोर्टों को न केवल खारिज करना चाहिए, बल्कि इस पर विरोध भी दर्ज कराना चाहिए और विश्व बैंक को अपने विशेष दर्जे का दुरुपयोग न करने का सुझाव भी देना चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)