कम प्रभाव पड़ेगा अर्थव्यवस्था पर

सरकारी कोशिशों के साथ सामाजिक सहकार ने महामारी की चुनौती के बरक्स दूसरा मोर्चा खोल दिया है. ऐसे प्रयासों का आधार सकारात्मक सोच और हौसले का होना ही है.

By सतीश सिंह | April 27, 2021 7:55 AM
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जैसे जैसे कोरोना विकराल रूप लेता जा रहा है, आम जन को लग रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था फिर से एक अनिश्चित परिदृश्य की ओर आगे बढ़ रही है. गौरतलब है कि मार्च, 2020 के अंतिम सप्ताह में देशभर में पूर्ण तालाबंदी लगानी पड़ी थी, जिसके कारण वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 प्रतिशत का संकुचन आया था. लेकिन तीसरी तिमाही के आते-आते आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो गयीं और चौथी तिमाही में आर्थिक स्थिति लगभग सामान्य हो गयी थी.

इस वजह से वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी में सिर्फ 7.7 प्रतिशत संकुचन आने का अनुमान लगाया गया. इतना ही नहीं, आर्थिक सर्वे में वित्त वर्ष 2021-22 में 11 प्रतिशत की दर से विकास होने का अनुमान लगाया गया है. इसका ठोस आधार सरकार, अर्थशास्त्रियों एवं देशी व वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के पास था, जैसे- वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का रिकॉर्ड संग्रह होना, अन्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की वसूली में सुधार आना, कामगारों का काम पर लौटना, मांग एवं आपूर्ति में तेजी आना, रोजगार सृजन बढ़ना, बिजली व ईंधन की खपत में वृद्धि होना आदि.

इस वर्ष मार्च से फैले महामारी के दूसरे चरण में मरने वालों की संख्या बहुत ही ज्यादा है. संक्रमितों की संख्या रोजाना तीन लाख से ऊपर पहुंच रही है. इसे काबू में आने को लेकर किसी तरह का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है. मौजूदा स्थिति में अर्थव्यवस्था में फिर से संकुचन आने की आशंका जतायी जा रही है, लेकिन मुझे लगता है कि इस बार पिछले साल जैसी स्थिति खराब नहीं होगी क्योंकि देशव्यापी तालाबंदी के आसार कम हैं.

फिलहाल, 11 राज्यों में कोरोना का प्रकोप सबसे ज्यादा है. सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र में अभी भी पूर्ण तालाबंदी नहीं लगी है, लेकिन कड़ाई ज्यादा है. इसी वजह से संक्रमण में कुछ कमी आ रही है. कल-कारखानों में आंशिक रूप से काम हो रहा है. महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात आदि राज्यों से कुछ प्रवासी मजदूर तालाबंदी के डर से अपने गांव जरूर लौटे हैं या लौट रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या अभी भी कुछेक लाख है.

उद्योग केंद्रित राज्यों, जैसे- महाराष्ट्र और गुजरात में कोरोना का आतंक ज्यादा है, लेकिन अन्य राज्यों में इसका प्रकोप कम है. इस वजह से वहां आर्थिक गतिविधियां जारी हैं. महामारी से निश्चित ही विकास दर पर कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, लेकिन यह ज्यादा नुकसानदायक नहीं होगा. शायद इसी वजह से इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च ने 2021-22 के लिये अपने संशोधित अनुमान को 10.4 प्रतिशत से कम कर 10.1 प्रतिशत किया है. केयर रेटिंग ने भी अपने अनुमान को 10.7-10.9 प्रतिशत से कम कर 10.2 प्रतिशत किया है.

ये मामूली कटौती हैं. सबसे महत्वपूर्ण है कि इस बार आम जन तौर-तरीकों से परिचित हैं. सरकार ने अब 18 साल से अधिक उम्र के वयस्कों को टीका लगाने की अनुमति दे दी है. मांग और आपूर्ति में सामंजस्य कायम करने के लिये सरकार ने स्पुतनिक टीका को भी मंजूरी दे दी है. इस टीका की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी एक खुराक से लोग कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से बच सकेंगे. अभी कोविशील्ड और कोवैक्सीन की दो खुराकें दी जा रही हैं.

डॉक्टरों के अनुसार, उपलब्ध टीकों की बचाव क्षमता 80-90 प्रतिशत के बीच है. इनके साइड इफेक्ट न्यून हैं. इनकी मदद से भारत में कोरोना संक्रमण के बढ़ते कदमों को निश्चित रूप से रोका जा सकता है. इसलिए लोगों को आगे बढ़कर टीका लगवाना चाहिए. दवा बनाने वाली कंपनी जायडस ने दावा किया है कि वीराफिन दवा कोरोना मरीजों को ठीक करने में कामयाब रही है. इस दवा के इस्तेमाल की अनुमति भारत के ड्रग्स नियामक ने दे दी है. जल्द ही यह भारतीय बाजारों में मिल सकेगी. इस दवा के आने से रेमडेसीविर पर से दबाव कम होगा और इसकी कालाबाजारी पर भी लगाम लगेगा.

कृषि क्षेत्र पर महामारी का प्रभाव न्यून पड़ा है. राज्यों के बीच परिवहन की आवाजाही चालू है. इसलिए, उम्मीद है कि कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन पिछले साल से बेहतर रहेगा. किसान किसी भी राज्य में जाकर अपने फसलों को बेच सकेंगे. इधर, स्काइमैट और भारतीय मौसम विभाग (आइएमडी) ने इस साल मानसून के सामान्य रहने का अनुमान लगाया है. यह अर्थव्यवस्था के लिये अच्छी खबर है. मानसून के सामान्य रहने से खरीफ और रबी की फसलें अच्छी होंगी, जिससे खाद्य महंगाई में तो कमी आयेगी ही, साथ ही अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी.

आज नेताओं को जनता के सामने नजीर पेश करनी चाहिए. वे देश और राज्य का नेतृत्व करते हैं और उनके पीछे लोग चलते हैं. पांच राज्यों में हो रहे चुनाव में नेताओं ने जिस तरह कोरोना नियमों को तोड़ा है, उसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम है. इसी तरह बड़े स्तर पर धार्मिक और सामाजिक आयोजनों की अनुमति देना भी बड़ी भूल साबित हुई है. इस साल कोरोना तबाही ज्यादा जरूर मचा रहा है, लेकिन यह अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से तबाह नहीं कर सकेगा क्योंकि हमारे पास टीका भी है, दवाई भी है और जागरूकता भी है. समझदारी और समन्वय से काम करने पर पूर्ण तालाबंदी की नौबत नहीं आयेगी और आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा.

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