प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले कुछ समय से लगातार भारत के विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य पर जोर दे रहे हैं. उन्होंने पिछले वर्ष भी और इस वर्ष भी लाल किले से स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में कहा था कि 2047 में आजादी के 100 वर्ष पूरा होने तक भारत का तिरंगा विकसित भारत का तिरंगा होना चाहिए. पिछले कुछ समय में भारत ने अपनी आर्थिक शक्ति का परिचय दिया है और आर्थिक महाशक्तियों को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. इसके बाद से ऐसा कहा जाने लगा है कि वह दिन दूर नहीं जब भारत जापान, चीन और अमेरिका के और करीब पहुंच जायेगा. रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने अपने ताजा अनुमान में कहा है कि भारत 2030 तक 7.3 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ जापान को पीछे छोड़ एशिया की दूसरी सबसे बड़ी और दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है.
इन परिस्थितियों में ऐसा लगता है कि आर्थिक तरक्की के पैमाने पर भारत का अच्छा प्रदर्शन जारी रहेगा. लेकिन, भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने भर से क्या भारत विकसित राष्ट्र बन जायेगा? यह सवाल लगातार लोगों के मन में घुमड़ रहा है. इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है कि भारत ने अच्छी खासी प्रगति की है. पर यह भी कटु सत्य है कि अभी भी देश की बड़ी आबादी तक न तो विकास के लाभ पहुंच सके हैं, न ही वह विकास में योगदान कर पा रही है. इस चुनौती की चर्चा होती रही है और शायद सरकार को भी इसका अहसास है कि विकसित देश का लक्ष्य सबकी भागीदारी के बिना पूर्ण नहीं हो सकता. इस संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी की विजयादशमी पर दिल्ली में रामलीला के दौरान कही गयी बातें विशेष महत्व रखती हैं. उन्होंने कहा है कि भारत को एक ऐसा विकसित देश होना चाहिए, जो आत्मनिर्भर होने के साथ सभी को उनके सपने साकार करने का समान अधिकार देता हो.
उनकी यह टिप्पणी हर उस देशवासी को भरोसा देती है, जिसे लगता है कि विकसित भारत कुछ खास लोगों का भारत होगा. प्रधानमंत्री ने पिछले सप्ताह ग्वालियर में भी एक कार्यक्रम में कहा था कि सरकार एक ऐसा माहौल बनाना चाहती है, जिसमें अवसरों की कमी न हो. प्रधानमंत्री ने वहां कहा था कि भारत गरीबी भी दूर करेगा और विकसित भी बनेगा. भारत के विकसित देश बनने के सफर की सफलता के लिए उस आबादी का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, जो विकास की गाड़ी पर सवार नहीं हो पा रही. ऐसी आबादी की भागीदारी से ही विकास के इंजन की गति तेज होगी.