देश में लग्जरी सामानों की बिक्री इतनी तेजी से बढ़ी है कि दुनियाभर में भारत की चर्चा है. साल 2023 में एक अभूतपूर्व घटना हुई कि कम कीमत वाले उत्पादों से कहीं ज्यादा प्रीमियम प्रॉडक्ट की बिक्री हुई. अंतरराष्ट्रीय निवेश बैंकिंग फर्म गोल्डमैन सैक्स ने ‘समृद्ध भारत का उदय’ नामक अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि महंगे उत्पाद बनाने वाली कंपनियां सामान्य किस्म के सामान बनाने वाली कंपनियों की तुलना में तेजी से बढ़ रही हैं. कई प्रॉडक्ट के मामले में तो बढ़ोतरी 50 फीसदी से भी ज्यादा रही. इस अभूतपूर्व तेजी का क्या कारण हो सकता है? इस सवाल का जवाब अमीरों के बारे में लिखने वाली विदेशी पत्रिका फोर्ब्स ने दिया है. इसका बड़ा कारण यह है कि संभावित ग्राहकों की मानसिकता में जबरदस्त बदलाव हुआ है. भारत के तेज आर्थिक विकास ने एक ऐसे वर्ग को जन्म दिया है, जिसके पास पैसा है और उसे खर्च का दिल भी है. यह कारोबारियों, उद्यमियों, मोटी सैलरी वाले एग्जीक्यूटिव, स्टार्ट-अप और धनाढ्य लोगों की दूसरी पीढ़ी है, जो प्रीमियम प्रॉडक्ट खरीदने से हिचकती नहीं है. यह मूलतः युवा वर्ग है, जो 30 से 40 साल उम्र का है और जिसकी महत्वाकांक्षाएं आकाश छू रही हैं. यह वैसा वर्ग है, जिसमें अपने सपनों को देखने के बजाय पूरा करने की चाहत है. इसका एक उदाहरण है कि दुनिया की सबसे स्टाइलिश कार लैंबोरिजिनी की बिक्री भारत में पिछले साल से बढ़ती जा रही है.
बचत शब्द इन ग्राहकों के शब्दकोश में नहीं है. यही वही कारण है कि महंगे मकानों की अचानक मांग बढ़ गयी है. मुंबई ही नहीं, गुड़गांव में भी पांच करोड़ से दस करोड़ रुपये के अपार्टमेंट की बिक्री बढ़ी है और बिल्डर ऐसे मकान बनाने में तेजी दिखा रहे हैं. महंगे स्मार्टफोन भी खूब बिक रहे हैं. पिछले दिनों तीन स्मार्टफोन कंपनियों ने सवा-सवा लाख रुपये कीमत वाले स्मार्टफोन लॉन्च किये, जिनकी बिक्री भी धड़ल्ले से हो रही है. साल 2023 में 50 हजार रुपये से ज्यादा की कीमत वाले स्मार्टफोन की बिक्री कम दाम वाले फोन से ज्यादा बढ़ी है. त्योहारों के पहले हफ्ते में डेढ़ लाख आई-फोन बिक गये थे, जो एक रिकॉर्ड है. दरअसल कोविड महामारी के दौरान लोग घरों में बंद हो गये थे और चारों ओर निराशा का माहौल था. लेकिन उसके बाद एक विस्फोट सा हुआ. बाजार-दुकान जब खुले, तो वहां लोगों की भीड़ जुटने लगी और एक नये पैसे वाला अपेक्षाकृत युवा वर्ग पारंपरिक मानसिकता को त्याग कर नये आक्रामक अंदाज में उतरा. उसने अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए खर्च करना शुरू किया. इसका लाभ उत्पादकों ने भी उठाया और उन्होंने इन उत्पादों की बेहतर ढंग से मार्केटिंग की. उन्होंने अपने उत्पादों के नये-नये मॉडल सीधे भारत में पेश किये, जिससे ये ग्राहक खिंचे चले आये.
जिन लोगों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट भाषण देखा-सुना होगा, उन्हें याद होगा कि वे भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में उल्लेखनीय बढ़ोतरी के लिए अन्य कारणों के अलावा घरेलू खपत को भी श्रेय दे रही थीं. उनका कहना था कि घरेलू खपत बढ़ने से अर्थव्यवस्था भी ऊपर जा रही है. भारत की अर्थव्यवस्था निर्यात पर आधारित नहीं है और यहां जितनी खपत बढ़ती है, उतनी ही उसमें तेजी भी आती है क्योंकि उससे उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. अब देश में महंगे सामानों की बढ़ती बिक्री का ट्रेंड है, तो इससे अर्थव्यवस्था को यह लाभ होगा कि बड़े पैमाने पर धन का प्रवाह बाजार में होगा. यह पूंजी के रूप में कारोबार को बढ़ावा देगा. सामानों-कारों की बढ़ी हुई बिक्री से सरकार को ज्यादा टैक्स मिलेगा. लेकिन सवाल फिर भी है कि कम दाम के सामानों के उत्पादन का वॉल्यूम बहुत ज्यादा है, तो फिर उन पर असर पड़ेगा. इससे रोजगार में कमी आयेगी. जरूरी है कि एक संतुलन बना रहे. देश को इस समय रोजगार की जरूरत है, जो उत्पादन बढ़ने से ही मिलेगा. मांग में बढ़ोतरी तभी होगी, जब निचला तबका अधिक खरीद करेगा. प्रीमियम या लग्जरी उत्पादों की बिक्री बढ़ने का अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है. यह हो सकता है कि लग्जरी कारों के उत्पादन में वृद्धि से उन कंपनियों का लाभ बढ़े और उनकी पूंजी भी, जिसका उपयोग वे उत्पादन बढ़ाने में कर सकते हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में महंगाई बढ़ी है, जिससे उत्पादों की मांग में पर्याप्त बढ़ोतरी नहीं हो पायी है. सच तो यह है कि यह अभी तक पूर्व कोविड स्तर तक नहीं पहुंच पायी है. उस समय जो खपत थी, वह अभी नहीं लौटी है. यह चिंता का विषय है. प्यू रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 13.40 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं और उनकी कमाई खाने-पीने में ही खर्च हो जाती है. वे कुछ अतिरिक्त खर्च करने की स्थिति में नहीं होते हैं. भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मांग की कमी साफ दिख रही है और यह चिंताजनक मसला है, क्योंकि कारखानों के पहिये तेज रफ्तार से चलें, इसके लिए जरूरी है कि कुल मांग सिर्फ एक ही दिशा से न हो, बल्कि हर तरफ से हो. शहरों के अलावा गांवों से भी मांग आनी चाहिए. इससे ही अर्थव्यवस्था में तेजी बनी रहेगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)