भारत की बड़ी छलांग
ड्रोन, अंतरिक्ष एवं भू-स्थानिक मानचित्रण जैसे अनेक उभरते हुए क्षेत्रों के पुनर्विनियमन से डब्ल्यूसीआई में भारत का प्रदर्शन सुधरा रहा है.
बेहतर आर्थिक प्रदर्शन के चलते 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मकता में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज हुआ है. स्विटजरलैंड स्थिति इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट डेवलपमेंट द्वारा जारी विश्व प्रतिस्पर्धा सूचकांक (डब्ल्यूसीआई) में भारत ने छह स्थानों की बड़ी छलांग लगायी है. भारत 43वें स्थान से अब 37वें स्थान पर आ गया है. यह एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज बढ़त है. वैश्विक अध्ययन में शामिल 63 देशों में डेनमार्क पहले, स्विटजरलैंड दूसरे और सिंगापुर तीसरे स्थान पर रहा. भारत की घरेलू आर्थिकी में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, व्यापार दक्षता के प्रमुख मानक श्रम बाजार और प्रबंधन व व्यापारिक दृष्टिकोण में बदलाव आया है, जिससे प्रतिस्पर्धा सूचकांक में भारत का प्रदर्शन बेहतर हुआ है. मोदी सरकार द्वारा पूर्वप्रभावी करों के संदर्भ में बड़े सुधारों से व्यापारिक समुदाय का विश्वास बहाल हुआ है.
विशेषज्ञों का भी मानना है कि ड्रोन, अंतरिक्ष एवं भू-स्थानिक मानचित्रण जैसे अनेक उभरते हुए क्षेत्रों के पुनर्विनियमन से डब्ल्यूसीआई में भारत का प्रदर्शन सुधरा रहा है. जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक मुहिम में भी भारत अग्रिम पंक्ति में है और 2070 तक नेट-जीरो कार्बन का लक्ष्य तय किया है. भारत पर्यावरण प्रौद्योगिकी में भी निरंतर प्रगति कर रहा है. व्यापार के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के पांच कारक- कुशल कार्यबल, लागत प्रतिस्पर्धा, अर्थव्यवस्था की गतिशीलता, उच्च शैक्षणिक स्तर तथा खुला एवं सकारात्मक दृष्टिकोण, आकर्षण के केंद्र हैं. हालांकि, दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को कोविड-19 के साथ-साथ मुद्रास्फीति के दबाव और यूक्रेन पर रूसी हमले से उत्पन्न आर्थिक मुश्किलों का भी सामना करना है. वहीं भारत के सामने व्यापार बाधाओं, ऊर्जा सुरक्षा, महामारी के बाद उच्चतर जीडीपी विकास दर को बरकरार रखने की चुनौती है. साथ ही, कौशल विकास, नयी नौकरियों के सृजन और बुनियादी ढांचे के विकास हेतु संसाधनों के लिए प्रयत्न करना है.
डब्ल्यूसीसी के मुख्य अर्थशास्त्री क्रिस्टोस कैबोलिस का कहना है कि ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं पर महंगाई का दबाव बना हुआ है. इस साल व्यापार जगत को महंगाई के साथ-साथ भूराजनीतिक संघर्ष और आपूर्ति श्रृंखला की अड़चनों का सामना करना है. मुक्त बाजार व्यवस्था के सामने आंतरिक और बाह्य दोनों प्रतिस्पर्धा होती है. बीते तीन दशकों में टेलीकम्युनिकेशन, एविएशन, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल्स आदि क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा ने भारतीय बाजार को मजबूत बनाया है.
हालांकि, पावर, पोर्ट, माइनिंग जैसे अनेक क्षेत्रों में अभी पर्याप्त प्रतिस्पर्धा नहीं है. नीतियों और मानकों के स्तर पर सतत सुधार जरूरी है, ताकि उद्यमों के लिए बेहतर माहौल बने. अनेक देशों में विधिवत राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा नीति है. ओइसीडी के मुताबिक, प्रभावी प्रतिस्पर्धा नीति से अर्थव्यवस्था में दो से तीन प्रतिशत तक की वृद्धि संभव है. भारत सरकार ने अनेक सुविचारित पहलें की हैं, लेकिन उसे संस्थागत और बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने की आवश्यकता है, तभी वैश्विक सूचकांकों में भारत निरंतर आगे बढ़ता रहेगा.