महंगाई अभी भी चिंता की वजह
रेपो दर में 0.40 प्रतिशत, आठ जून को 0.50 प्रतिशत, अगस्त में 0.50 प्रतिशत, सितंबर में 0.50 प्रतिशत, दिसंबर में 0.35 प्रतिशत और अब आठ फरवरी, 2023 को 0.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गयी
महंगाई में आंशिक कमी के बावजूद मौद्रिक समीक्षा में भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि की है. उपभोक्ता मूल्य पर आधारित महंगाई दर दिसंबर में घटकर 5.72 प्रतिशत रह गयी, जो नवंबर में 5.88 प्रतिशत थी. अक्तूबर में यह 6.77 प्रतिशत और सितंबर में 7.41 प्रतिशत रही थी. अभी यह रिजर्व बैंक द्वारा तय महंगाई दर की ऊपरी सीमा छह प्रतिशत से नीचे है.
केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई भी दिसंबर में घटकर 4.95 प्रतिशत पर आ गयी. उल्लेखनीय है कि मई में यह 15.88 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी थी. रिजर्व बैंक अमूमन अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की नीतियों का अनुसरण करता है.
अमेरिका में नवंबर में महंगाई दर 7.1 प्रतिशत रही, जबकि मई में यह 8.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गयी थी. चूंकि अमेरिका में महंगाई की ऊपरी सहनशीलता सीमा दो प्रतिशत है, इसलिए वहां महंगाई को बेकाबू माना जा रहा है. इसी कारण फेडरल रिजर्व ने हाल में फिर से नीतिगत दर में 25 आधार अंकों की वृद्धि की है, जिससे नीतिगत दर 4.50 से बढ़कर 4.75 प्रतिशत हो गयी है. फेडरल रिजर्व बैंक ने अब तक नीतिगत दरों में 450 आधार अंकों की वृद्धि की है.
बैंक ऑफ कनाडा ने भी विगत दिनों नीतिगत दर में वृद्धि की है, जिससे यह 4.5 प्रतिशत हो गयी है. यह बैंक इस दर में 12 महीने से कम समय में आठ बार वृद्धि कर चुका है. ब्रिटेन के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर में वहां उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 11.1 प्रतिशत हो गयी, जो 1981 के बाद सबसे अधिक है. हाल में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने नीतिगत दर में 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी की, जिससे यह चार प्रतिशत हो गयी है.
यह 2008 के बाद सर्वाधिक है. उल्लेखनीय है कि यह बैंक महंगाई पर काबू करने के लिए बीते महीनों में नीतिगत दर में 10 बार इजाफा कर चुका है. भारतीय रिजर्व बैंक ने मई, 2022 से रेपो दर बढ़ाना शुरू किया था. उस वक्त यह चार प्रतिशत थी. तीन मई को रेपो दर में 0.40 प्रतिशत, आठ जून को 0.50 प्रतिशत, अगस्त में 0.50 प्रतिशत, सितंबर में 0.50 प्रतिशत, दिसंबर में 0.35 प्रतिशत और अब आठ फरवरी, 2023 को 0.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गयी, जिससे यह 6.50 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गयी है.
रेपो दर में बढ़ोतरी से बैंक ऋण दर में इजाफा होना लाजिमी है, जिससे कर्जदारों को अधिक किस्त एवं ब्याज का भुगतान करना होगा. मसलन, अगर किसी ने 20 साल के लिए 7.90 प्रतिशत की ब्याज दर से 30 लाख रुपये का आवास ऋण लिया है, तो ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की बढ़त से उसे 467 रुपये की अधिक मासिक किस्त के हिसाब से 20 साल में 1.13 लाख रुपये अधिक भुगतान करना होगा.
महंगाई रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित छह प्रतिशत की अधिकतम दर से जरूर नीचे आ गयी है, लेकिन केंद्रीय बैंक अभी भी महंगाई को सबसे बड़ा खतरा मान रहा है. वैसे भारत अभी भी महंगाई और विकास के मोर्चे पर दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर स्थिति में है. पर रेपो दर को ज्यादा बढ़ाने से विकास का मार्ग अवरुद्ध हो सकता है क्योंकि उधारी लागत बढ़ने से ऋण की मांग कम हो सकती है,
जिससे आर्थिक गतिविधियां धीमी हो सकती हैं और विकास की गति में कमी आ सकती है. बहरहाल, रेपो दर में वृद्धि से बैंक ऋण जरूरत को पूरी करने के लिए छोटे निवेशकों से जमा लेने की तरफ ध्यान दे रहे हैं और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए उन्हें जमा ब्याज दरों में इजाफा करना पड़ रहा है. कुछ बैंक बॉन्ड के जरिये भी जमा आकर्षित कर रहे हैं. वैसे इससे बैंकों के मुनाफे में कमी आ सकती है.
रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट के अनुसार, 16 दिसंबर को समाप्त पखवाड़े में जमा में वृद्धि की दर पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 9.4 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि पिछले पखवाड़े की तुलना में यह 9.9 प्रतिशत अधिक है. सोलह दिसंबर को समाप्त पखवाड़े में बैंकिंग व्यवस्था में समग्र जमा 173.53 लाख करोड़ रहा है, जो इसके पहले के पखवाड़े में 175.24 लाख करोड़ रुपये रहा था, वहीं 16 दिसंबर को समाप्त पखवाड़े में बैंकिंग व्यवस्था से कर्ज की मांग 17.4 प्रतिशत बढ़ी है.
जमा और उधारी के बीच ज्यादा अंतर होने से बैंकों को तरलता के जोखिम का सामना करना पड़ सकता है. कहा जा सकता है कि महंगी ऋण दर होने से सूक्ष्म, लघु, मझोले और बड़े उद्योग के प्रोमोटर ऋण लेने से परहेज कर सकते हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ सकती हैं. यह बैंक और अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है. लिहाजा, 2023 में विकास दर की गति को बढ़ाने, अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और बैंकों की सेहत ठीक रखने के लिए केंद्रीय बैंक को आगामी मौद्रिक समीक्षाओं में रेपो दर बढ़ाने से परहेज करना चाहिए.