धरती के बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न हो रही चुनौतियों ने मनुष्यता के सामने बेहद गंभीर संकट उपस्थित कर दिया है. इससे निपटने के लिए जो प्रयास भारत में हो रहे हैं, वे वैश्विक समुदाय को दिशा दे रहे हैं. स्वच्छ ऊर्जा, प्रदूषण नियंत्रण, जल संरक्षण, कृषि एवं उद्योग में नवाचार आदि के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. इसी क्रम में भारतीय मौसम विभाग ने एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए हर प्रांत के लिए गर्मी के मौसम के जोखिम के बारे में एक वार्षिक आकलन प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है.
यह आकलन हर वर्ष मार्च और जून के बीच होगा. इन्हीं महीनों में देश के कई हिस्सों में तापमान बहुत बढ़ जाता है. बीते कुछ वर्षों में तो औसत गर्मी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में लू और प्रचंड गर्मी का प्रबंधन बहुत आवश्यक हो गया है ताकि लोगों को बचाने के साथ-साथ खेती एवं अन्य आर्थिक गतिविधियों पर होने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके. गर्मी के मौसम के इस विश्लेषण में अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान, आर्द्रता, वायु गति, लू की अवधि आदि कारकों का संज्ञान लिया जायेगा.
चूंकि यह आकलन हर राज्य के लिए होगा, इसलिए उपाय का निर्धारण करने में आसानी होगी. गर्मी की चुनौती कितनी विकट है, इसका अनुमान कुछ तथ्यों से लगाया जा सकता है. हाल में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के 14 राज्यों- बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश- में 2050 तक प्राकृतिक आपदाओं का संकट बहुत अधिक बढ़ जायेगा.
वर्ष 2000-2004 और 2017-2021 के बीच अत्यधिक गर्मी से होने वाली मौतों की तादाद में 55 प्रतिशत की चिंताजनक वृद्धि हुई है. अधिकतर कामकाजी लोग जिन परिस्थितियों में काम करते हैं, उनमें गर्मी से बचाव के उपाय कम होते हैं. इससे स्वास्थ्य के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भारी क्षति होती है. अध्ययन इंगित करते हैं कि 2021 में गर्मी के कहर ने 167.2 अरब कार्य घंटों का नुकसान हुआ था, जिससे सकल घरेलू उत्पादन को 5.4 प्रतिशत का झटका लगा था.
विशेषज्ञों की राय है कि 2050 तक अत्यधिक गर्म दिन और रात की संख्या में दो से चार गुना बढ़ोतरी हो सकती है. जलवायु परिवर्तन के कारण 1901 और 2018 के बीच हमारे देश में औसत तापमान में 0.7 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है. हमारे देश में मौसम का नियमित अध्ययन पहले से हो रहा है, पर राज्यवार विश्लेषण से समाधान के प्रयासों को बड़ा आधार मिलेगा.