अफगान अस्थिरता और भारत की चिंता

Instability in Afghanistan : तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के पुनरुत्थान ने, जो अफगान तालिबान के साथ वैचारिक संबंध साझा करता है, पाकिस्तान को हिंसा की लहर में धकेल दिया है. पाकिस्तान का दावा है कि यह हिंसा अफगानिस्तान की धरती से हो रही है. अब इस्लामाबाद काबुल पर उस टीटीपी को शरण देने का आरोप लगा रहा है, जिसने पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने हमले बढ़ा दिये हैं.

By आनंद कुमार | December 27, 2024 7:25 AM

Instability in Afghanistan : पाकिस्तान की लंबे समय से रणनीतिक गहराई की खोज ने अफगानिस्तान में रणनीतिक लाभ देने के बजाय उसकी सुरक्षा चुनौतियां बढ़ा दी हैं. ऐतिहासिक रूप से, इस्लामाबाद ने काबुल में अपना प्रभाव कायम रखने के लिए ही अफगान तालिबान का समर्थन किया, भले ही 9/11 के हमलों के बाद उसने अफ-पाक क्षेत्र में आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी नेतृत्व वाले ‘वॉर ऑन टेरर’ में भाग लिया था. पाकिस्तान में सक्रिय क्वेटा शूरा ने तालिबान विद्रोह को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. आतंकवाद-रोधी प्रयासों का समर्थन करने का दावा करते हुए पाकिस्तान ने दरअसल गुप्त रूप से तालिबान को मदद दी. नतीजा, 2021 में तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता में वापस लौट आये. लेकिन यह विजय पाकिस्तान के लिए महंगी साबित हुई.

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के पुनरुत्थान ने, जो अफगान तालिबान के साथ वैचारिक संबंध साझा करता है, पाकिस्तान को हिंसा की लहर में धकेल दिया है. पाकिस्तान का दावा है कि यह हिंसा अफगानिस्तान की धरती से हो रही है. अब इस्लामाबाद काबुल पर उस टीटीपी को शरण देने का आरोप लगा रहा है, जिसने पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने हमले बढ़ा दिये हैं. इन बढ़ती तनावपूर्ण स्थितियों ने पाकिस्तान-अफगानिस्तान संबंधों को और खराब कर दिया है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता ही खतरे में पड़ गयी है. गौर से देखें, तो इस्लामाबाद और काबुल के बीच के रिश्ते आरोप-प्रत्यारोप और सुलह के असफल प्रयासों से भरे हुए हैं.

हाल के उच्च-स्तरीय संवाद, जैसे कि पाकिस्तान के अफगानिस्तान में विशेष प्रतिनिधि मोहम्मद सादिक और अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी व गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी के बीच हुई बैठकें, तनाव कम करने का कमोबेश संकेत देती हैं. दोनों पक्षों ने सहयोग मजबूत करने और साझा चुनौतियों का कूटनीतिक समाधान तलाशने पर भी सहमति जतायी है. लेकिन ये प्रयास सीमा पर झड़पों और आरोपों के बीच हो रहे हैं.

पाकिस्तान का आरोप यह है कि टीटीपी के लड़ाके अफगान शरणस्थलों से उसके खिलाफ हमले करते हैं, जबकि काबुल इसे लगातार नकारता है. दूसरी ओर, अफगानिस्तान पाकिस्तान की एकतरफा सैन्य कार्रवाइयों, जैसे सीमा पार हवाई हमलों, को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है. हाल ही में पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में किये गये हवाई हमले इन बढ़ते शत्रुतापूर्ण संबंधों के ही उदाहरण हैं. एक तरफ इसलामाबाद ने इन कार्रवाइयों को टीटीपी के ठिकानों को निशाना बनाने के रूप में सही ठहराया है, लेकिन अफगान अधिकारियों ने यह दावा किया है कि इन हमलों में 46 नागरिक मारे गये. यह भी कहा गया कि अधिकांश पीड़ित वजीरिस्तान क्षेत्र के शरणार्थी थे.


पाकिस्तान-अफगान सीमा पर यह तनाव नया नहीं है. इस वर्ष मार्च में भी पाकिस्तानी हवाई हमलों में कुछ अफगान नागरिक मारे गये थे. झड़प की ताजा घटनाओं ने दोनों देशों के बीच बयानबाजी और तनाव को और बढ़ा दिया है. काबुल ने पाकिस्तान पर आक्रामकता का आरोप लगाया है, जबकि इस्लामाबाद अफगान क्षेत्र में टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा है. वर्ष 2021 में अफगान तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता में लौटने से टीटीपी को प्रोत्साहन मिला है. इसी कारण उसने पाकिस्तान पर अपने हमले तेज कर दिये हैं, जिनमें हाल ही में 16 सैनिकों की जान लेने वाला हमला भी शामिल है. पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने 2024 के शुरुआती 10 महीनों में 1,500 से अधिक हिंसक घटनाओं की रिपोर्ट की, जिनमें 924 से अधिक लोगों की मौत हुई है.

अफगान तालिबान के लिए टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई करना मुश्किल है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 6,500 टीटीपी लड़ाके अफगानिस्तान में मौजूद हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अफगान तालिबान टीटीपी को आतंकवादी संगठन नहीं मानता, जिससे पाकिस्तान के लिए अपनी सीमाओं को सुरक्षित करना और अधिक जटिल हो गया है. अफगानिस्तान के प्रति पाकिस्तान के दृष्टिकोण की आलोचना उसकी अस्थिरता और प्रतिक्रियात्मक उपायों के लिए की जाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान द्वारा किये जाने वाले सीमा पार हवाई हमले काबुल को और अधिक अलग-थलग कर सकते हैं. ये हमले भले ही टीटीपी के ठिकानों को समाप्त करने के उद्देश्य से किये गये हों, पर इनसे अफगान जनता और नेतृत्व के बीच पाकिस्तान विरोधी भावना भड़क रही है.


इससे दक्षिण एशिया की स्थिरता को गंभीर खतरा हैं. पाकिस्तान तालिबान के प्रति अपने ऐतिहासिक समर्थन के परिणामों से जूझ रहा है, वहीं अफगानिस्तान बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करते हुए अपनी संप्रभुता की रक्षा कर रहा है. अफ-पाक क्षेत्र में बढ़ती हिंसा भारत के लिए गहन चिंता का विषय है. पिछले एक वर्ष में कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि देखी गयी है. रिपोर्टों के अनुसार, आतंकवादियों ने अमेरिकी सेना द्वारा छोड़े गये आधुनिक हथियारों का उपयोग किया है. हालांकि भारतीय सुरक्षा बलों ने स्थिति को सफलतापूर्वक संभाला है, पर आधुनिक हथियारों की मौजूदगी ने आतंकवादी समूहों का मनोबल बढ़ाया है. यह हिंसक परिदृश्य भविष्य के लिए गंभीर सुरक्षा चिंताएं पैदा करता है. यह आशंका बनी हुई है कि कुछ आतंकवादी समूह पाकिस्तान के भीतर भारी नुकसान पहुंचाने के बाद अपने अभियानों को विस्तार देने का प्रयास करें.

ऐसा आशंकित परिदृश्य उभरे, इससे पहले ही भारत को अफ-पाक क्षेत्र की बिगड़ती सुरक्षा स्थिति पर करीब से नजर रखनी होगी. जहां तक पाकिस्तान की बात है, तो आतंकवाद को अपनी विदेश नीति के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की दीर्घकालिक रणनीति का खामियाजा अब उसे ही भुगतना पड़ रहा है. जब तक पाकिस्तान इस नजरिये का परित्याग नहीं कर देता, वह हिंसा और अस्थिरता के जाल में फंसा रहेगा. यही नहीं, यह अस्थिरता पड़ोसी देशों में फैलने की आशंका भी है, जिससे पूरे दक्षिण एशिया की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है. भारत को इस संकट का असर को कम करने के लिए सक्रिय रवैया अपनाना चाहिए, जिनमें खुफिया जानकारी जुटाने, सीमा सुरक्षा को मजबूत करने और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है. इस चुनौतीपूर्ण समय में, एक सुविचारित और दीर्घकालिक दृष्टिकोण ही क्षेत्रीय शांति और स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है.
(ये लेखक के अपने विचार हैं.)

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