केंद्र सरकार ने देश के लगभग साढ़े छह लाख गांवों को सूचना प्रौद्योगिकी का लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है. सरकार ने भारत के छह लाख 40 हजार गांवों को भारत नेट सेवा से जोड़ने के लिए लगभग एक लाख 40 हजार करोड़ रुपये आवंटित किये हैं. पिछले आठ महीने में देश के विभिन्न हिस्सों में 60 हजार गांवों में एक पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था.
इसकी सफलता को देखते हुए अब इसके विस्तार का फैसला किया गया है. देश में अभी लगभग ढाई लाख ग्राम पंचायत हैं, जिनके तहत कई गांव आते हैं. अभी तक लगभग दो लाख ग्राम पंचायतों को इस योजना से जोड़ा जा चुका है. भारत नेट को दुनिया की सबसे बड़ी ग्रामीण ब्रॉडबैंड सेवाओं में गिना जाता है. इस योजना की शुरुआत वर्ष 2011 में हुई थी और इसका नाम नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क था. वर्ष 2015 में इसका नाम बदलकर भारत नेट कर दिया गया.
योजना का उद्देश्य ‘लास्ट माइल कनेक्टिविटी’ को सुनिश्चित करना है. यानी, देश का कोई भी हिस्सा इंटरनेट की पहुंच से दूर ना रहे. योजना के तहत वाई-फाई या ब्रॉडबैंड या फाइबर नेटवर्क के माध्यम से स्कूलों, अस्पतालों, डाकघरों, पुलिस थानों, आंगनवाड़ी केंद्रों, पंचायतों आदि तक इंटरनेट सुविधा पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है. गांवों और दूरदराज के इलाकों में शहरों के ही जैसी आधुनिक और हाई-स्पीड इंटरनेट सुविधा का प्रसार करने से वहां ई-स्वास्थ्य, ई-शिक्षा और ई-गवर्नेंस से जुड़े कार्यक्रमों को निर्बाध तरीके से चलाया जा सकेगा,
लेकिन भारत नेट को लेकर पिछले कुछ वर्षों में चिंताएं भी प्रकट की गयी हैं. परियोजना की रफ्तार पर सवाल उठते रहे हैं. कहा जाता रहा है यह बार-बार अपने लक्ष्य को समय पर पूरा करने से चूक जा रही है और इस वजह से लागत बढ़ती जा रही है. इन्हीं चिंताओं के बीच, पिछले वर्ष भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड का बीएसएनएल में विलय का फैसला किया गया था. बीबीएनएल को भारत नेट परियोजना को लागू करने के लिए गठित किया गया था, जबकि बीएसएनएल देश की अग्रणी टेलीकॉम सेवा प्रदाता कंपनी रही है.
भारत नेट की प्रगति में देरी की एक और वजह पीपीपी मॉडल यानी पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल को भी बताया जाता है. परियोजना के कुछ हिस्से इस मॉडल पर चलाये जा रहे हैं, पर खबरें आती रही हैं कि निजी कंपनियां परियोजना में बहुत दिलचस्पी नहीं ले रही हैं, लेकिन गांवों को इंटरनेट से जोड़ने से केवल गांवों का ही भला नहीं होगा. भारत के समग्र, सतत और समावेशी विकास के लिए यह जरूरी है, जिसके लिए प्रयास जारी रहने चाहिए.