निवेश वृद्धि की आशा
बीते वर्षों के सुधार, अर्थव्यवस्था में उत्साहजनक वृद्धि तथा बढ़ते निर्यात ने वैश्विक निवेशकों का ध्यान भारत की ओर खींचा है. वे भी भारतीय विकास की यात्रा में सहभागी होना चाहते हैं.
वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचलों के कारण वर्तमान वित्त वर्ष की पहली तिमाही में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में छह प्रतिशत की गिरावट के बावजूद आशा जतायी जा रही है कि इस वर्ष निवेश का आंकड़ा 100 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंच जायेगा. उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2021-22 में 83.6 अरब डॉलर की विदेशी पूंजी भारत में निवेशित हुई थी, जो अब तक का सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार यह निवेश 101 देशों से आया था.
इसका अर्थ यह है कि कई देशों के निवेशक भारत को एक विश्वस्त निवेश गंतव्य के रूप में देख रहे हैं. कोरोना महामारी तथा भू-राजनीतिक कारकों ने आपूर्ति शृंखला पर जो नकारात्मक असर डाला है, उससे कई उद्योग चीन के अलावा अन्य देशों का रुख कर रहे हैं, जिनमें भारत भी है. भारत एक बड़ा बाजार तो पहले से ही है, लेकिन आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के तहत आर्थिक विकास की दिशा में एक नया आयाम जोड़ा गया है.
इसके तहत भारतीय बाजार के लिए तो निर्माण और उत्पादन करना ही है, अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए भी गुणवत्तापूर्ण उत्पाद तैयार करने हैं. भारत सरकार ने पिछले साल निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अन्य योजनाओं के साथ उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन योजना भी शुरू की है. इसके अंतर्गत गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए सरकार की ओर से सहयोग मुहैया कराया जा रहा है. इस प्रक्रिया में अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित वस्तुएं और मशीनरी भी शामिल हैं.
पिछले वित्त वर्ष में रिकॉर्ड निर्यात भी हुआ था, जिसके इस वर्ष 500 अरब डॉलर पहुंचने की उम्मीद है. बीते वर्षों के सुधार, अर्थव्यवस्था में उत्साहजनक वृद्धि तथा बढ़ते निर्यात ने वैश्विक निवेशकों का ध्यान भारत की ओर खींचा है. वे भी भारतीय विकास की यात्रा में सहभागी होना चाहते हैं. आज भारत में रिजर्व बैंक या भारत सरकार से बिना किसी स्वीकृति या मामूली आवेदन से लगभग सभी क्षेत्रों में विदेशी निवेश किया जा सकता है.
कुछ ही क्षेत्र ऐसे हैं, जहां विशेष अनुमति की आवश्यकता पड़ती है. कुछ देशों से आने वाले निवेश पर भी यह नियम लागू होता है. ऐसा वित्तीय और राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण किया जाता है, पर आम तौर पर ऐसी बाधा नहीं है. जाहिर है कि निवेशकों को अनावश्यक भागदौड़ से तो छुटकारा मिलता ही है, उनके खर्च में भी कमी आ जाती है. निवेशक चूंकि अपनी पूंजी लगाता है, तो वह सबसे पहले नियमों और कराधान में पारदर्शिता एवं स्थायित्व को लेकर निश्चिंत होना चाहता है.