समृद्धि के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश जरूरी

यह केंद्रीय बजट महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट है. यह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का सातवां बजट होगा. उल्लेखनीय है कि करदाताओं का एक रुपया भी संसद की मंजूरी के बिना खर्च नहीं किया जा सकता है. बजट की तैयारी के दौरान कई समूहों से विचार-विमर्श किया गया है.

By अजीत रानाडे | July 23, 2024 7:53 AM
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दुनिया उथल-पुथल से गुजर रही है. रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे साल में है और इसके अंत की कोई संभावना नहीं दिखती. गाजा में आठ महीने से चल रहे इस्राइली हमले में लगभग 40 हजार लोग मारे जा चुके हैं. अमेरिका में संभावित राष्ट्रपति की हत्या का प्रयास हुआ. ब्रिटेन में लेबर पार्टी 15 साल के अंतराल के बाद कंजर्वेटिव पार्टी को हराकर सत्ता में आयी है. अभी दुनिया ने अब तक का सबसे बड़ा आइटी आउटेज भी देखा. माइक्रोसॉफ्ट आउटेज से चीन पर असर नहीं पड़ा और भारत पर भी मामूली प्रभाव पड़ा.

इस तथ्य में भी कुछ महीन भू-राजनीतिक संदेश हो सकते हैं. वैश्विक आर्थिक संदर्भ यह है कि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अभी भी मुद्रास्फीति से जूझ रही हैं तथा मुद्रा उपलब्धता बढ़ाने और ब्याज दर घटाने के उद्योग जगत की मांग के बावजूद दरें अधिक बनी हुई हैं. इस कारण औद्योगिक और आवासीय निवेश उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा है, जितना रोजगार के लिए आवश्यक है. बेरोजगारी की चिंताओं से प्रवासी-विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं, जिसका फायदा अमेरिका में ट्रंप तथा यूरोप में धुर-दक्षिणपंथी दलों को हो रहा है. इससे संरक्षणवादी भावनाओं को भी बल मिल रहा है. भारत समेत हर जगह स्टॉक मार्केट में उछाल जारी है, पर हमें इस संबंध में सतर्क भी रहना चाहिए.

इस वैश्विक परिदृश्य में भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है. बीते चार वर्षों में औसत सालाना वृद्धि दर लगभग 7.5 प्रतिशत है, मुद्रास्फीति चार से पांच प्रतिशत के दायरे में है, निर्यात में बढ़ोतरी हो रही है, विदेशी मुद्रा भंडार अच्छी स्थिति में है तथा वित्तीय घाटा अनुपात में लगातार कमी हो रही है. बैंकिंग सेक्टर भी बहुत बढ़िया प्रदर्शन कर रहा है. यह केंद्रीय बजट महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट है. यह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का सातवां बजट होगा. उल्लेखनीय है कि करदाताओं का एक रुपया भी संसद की मंजूरी के बिना खर्च नहीं किया जा सकता है. बजट की तैयारी के दौरान कई समूहों से विचार-विमर्श किया गया है. लोकसभा में एनडीए को बहुमत है, पर अकेले भाजपा को नहीं.

ऐसे में बजट पर गठबंधन राजनीति की खींचतान का असर दिख सकता है. अब बजट में ऐसे मद बहुत अधिक होते हैं, जिन पर खर्च अनिवार्य होता है. इनमें ब्याज भुगतान (यह सबसे बड़ा हिस्सा है), अनुदान, वेतन, पेंशन और अन्य राजस्व खर्च मद शामिल हैं. धीरे-धीरे कई साल से बजट घोषणाओं से अचरज पैदा करने वाले तत्व बहुत कम होते गये हैं. फिर भी इस बजट में कुछ फ्रीबीज और अतिरिक्त कल्याण खर्च के लिए आवंटन जरूर होगा.

भले यह बजट आगामी सात महीनों के लिए ही होगा, पर यह आगामी वर्षों के लिए आर्थिक दृष्टि और रणनीति को अभिव्यक्त करने का एक अवसर भी होगा. यह पहली बार होगा, जब केंद्र सरकार का कुल खर्च 50 ट्रिलियन रुपये से अधिक हो जायेगा. सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के अनुपात में यह लगभग 15 प्रतिशत होगा. इस साल रिजर्व बैंक ने भारत सरकार को दो ट्रिलियन रुपये का बड़ा लाभांश दिया, जिससे वित्तीय घाटे को कम करने में मदद मिलेगी. यह बड़ा ‘मुनाफा’ विदेशी मुद्रा के ठोस प्रबंधन तथा सरकार के कर्ज प्रबंधन के बेहतर होने का नतीजा है. अगले साल भी ऐसा होगा, यह मानकर नहीं चला जा सकता है.

रिजर्व बैंक का लाभांश अन्य कमियों की कुछ भरपाई करता है, जो निजीकरण और विनिवेश नॉन-टैक्स राजस्व में आती हैं. आयकर संग्रहण में बढ़ोतरी की दर जीडीपी वृद्धि दर की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रही है, जो बेहतर अर्थव्यवस्था का संकेत है. अब देखना है कि क्या वित्त मंत्री कुछ राहत देती हैं और कम से कम व्यक्तिगत आयकर दरों को कमतर कॉर्पोरेट टैक्स दरों के समानांतर लाती हैं. भारत के आयकर में एक विशेष विसंगति है. एक ओर इसमें सात लाख रुपये तक पूरी छूट है, लेकिन दूसरी ओर 15 लाख रुपये से अधिक की आमदनी पर पूर्ण दर से कर लिया जाता है, जिसमें अतिरिक्त सेस को जोड़ दें, तो दर 39 प्रतिशत हो जाती है. इस संदर्भ में एक बड़े सुधार की आवश्यकता है, जिसमें मामूली दर पर आयकर की शुरुआत, उदाहरण के लिए, चार लाख रुपये की आय से होनी चाहिए तथा उच्चतम दर केवल 50 या 75 लाख रुपये की आय पर लागू होनी चाहिए.

वित्त मंत्री को पता है कि व्यापक आर्थिक परिदृश्य के अच्छे होने के नीचे चिंताजनक स्थितियां भी हैं. उपभोक्ता खर्च में वृद्धि की गति बहुत कम है और नये संयंत्रों एवं विस्तार में निजी निवेश में भी स्थगन है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था संघर्षरत है. ताजा नेशनल सैंपल सर्वे में जो पारिवारिक उपभोग के आंकड़े आये हैं, उन्हें तीन डॉलर प्रतिदिन के थोड़ा अधिक गरीबी रेखा के आधार पर देखें, तो भारत में ग्रामीण गरीबी 25 प्रतिशत जा पहुंची है. इसका अर्थ है कि बहुत से परिवार आधिकारिक गरीबी रेखा से बस थोड़ा ही ऊपर हैं. केवल कल्याणकारी खर्च से उनकी बेहतरी नहीं होगी, रोजगार के अवसर भी पैदा करने होंगे. शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश दीर्घकालिक समृद्धि का सबसे अहम आधार है. देखते हैं कि वित्त मंत्री सीतारमण के बजट भाषण में दीर्घकालिक एवं समावेशी विकास के क्या-क्या सूत्र हैं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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