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गांव को आत्मनिर्भर बनाना जरूरी

प्रधानमंत्री ने भारत को दुनिया की सफलतम अर्थव्यवस्था बनाने का जो सपना देखा है, वह गांवों के विकास के बगैर संभव नहीं है.

नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण, ग्रामीण विकास, पंचायतीराज मंत्री

delhi@prabhatkhabar.in

आज जब पूरी दुनिया कोरोना के विपरीत प्रभावों से जूझ रही है, तब हमारा देश इस संकट से सफलतापूर्वक निपट रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल कोरोना पर नियंत्रण के लिए तकनीकी साधनों और परीक्षण व उपचार की व्यवस्थागत तैयारियों को अंजाम दिया, बल्कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भारत के गांवों पर यकीन दिखाया. प्रधानमंत्री ने कोरोना की आरंभिक अवधि में ही कहा था कि कोरोना संकट ने हमें आत्मनिर्भर बनने का एक रास्ता दिखाया है. महात्मा गांधी ने अपने ग्राम स्वराज में गांव के विकास का जो खाका खींचा था, पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चिंतन में आत्मनिर्भरता की जो तस्वीर थी, उसका मर्म हमें प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत में दिखायी देता है. ऐसा भारत, जहां गांव अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आत्मनिर्भर बने. गांव से तहसील, तहसील से जिला और फिर राज्य व देश आत्मनिर्भर बनें.

एक मनीषी का कथन है कि अपने संकटों का हल हमें अपने अतीत, अपने विद्वानों के कहन और ग्रंथों में बसे ज्ञान में खोजना चाहिए. अपनी पुस्तक ‘भारतीय अर्थनीति- विकास की एक दिशा’ में आत्मनिर्भरता का जिक्र करते हुए पं. उपाध्याय कहते हैं कि हमारा आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना आवश्यक है. यदि हमारे यहां आवश्यकताओं की पूर्ति विदेशी सहायता पर निर्भर रही, तो वह अवश्य ही हमारे ऊपर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से बंधनकारक होगी. इस महामारी में, जब देश में सभी आर्थिक गतिविधियां लगभग दो महीने बंद रही, तब उन्हें खड़ा करने के लिए केवल आर्थिक प्रोत्साहन देना ही काफी नहीं था, बल्कि कच्चे माल की उपलब्धता से लेकर वस्तुओं के विक्रय और उनके उत्पादन शृंखला की प्रत्येक कड़ी तक परिश्रम का उचित मूल्य पहुंच जाना आवश्यक था. विकास का संतुलित मार्ग भी यही है कि हर पायदान पर मौजूद व्यक्ति को उसका वाजिब हक मिले.

गांवों की अर्थव्यवस्था को शक्ति देने के लिए तय किया गया था कि ग्रामीण विकास मंत्रालय इस वर्ष ग्रामीण भारत के विकास एवं ग्रामीणों के कल्याण पर लगभग दो लाख करोड़ रुपया व्यय करेगा. इसमें से अब तक एक लाख पांच हजार करोड़ रुपये की राशि राज्यों को जारी की जा चुकी है. लॉकडाउन के बीच अपने रोजगार से हाथ धो बैठे मजूदर जब गांव पहुंचे, तब उनके सामने रोजगार का संकट आ खड़ा हुआ. ऐसे में इन श्रमिकों की आर्थिक समस्याओं को दूर करने और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री ने गरीब कल्याण रोजगार अभियान आरंभ किया. इसके तहत छह राज्यों के 116 जिलों के प्रवासी श्रमिकों को काम दिया गया. इसके लिए 50 हजार करोड़ रुपये का इंतजाम किया गया था.

गरीब कल्याण रोजगार अभियान में कुल 25 करोड़ 75 लाख 68 हजार 175 श्रम दिवसों का रोजगार सृजित किया गया. इसमें कुल 21 हजार 549.32 करोड़ रुपये व्यय हुए. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन और अर्थ तंत्र की सुदृढ़ता के लिए मनरेगा को माध्यम बनाया गया. वर्तमान वित्तीय वर्ष में 192.97 करोड़ श्रम दिवस के रोजगार का सृजन, 9.93 करोड़ लोगों को जॉब ऑफर देना और राज्यों को 58,960.52 करोड़ की राशि जारी की गयी है. इतना ही नहीं, 1 अप्रैल, 2020 से मनरेगा की मजदूरी दर औसतन 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये कर दी गयी है. मनरेगा के तहत वर्ष 2020-21 के लिए 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है.

मनरेगा आवंटन 61,650 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,01,500 करोड़ रुपये कर दिया गया है. गांवों के विकास में सबसे बड़ा प्रश्न संसाधनों की उपलब्धता का होता है. गांवों की कनेक्टिविटी सुधारने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना वरदान बनी है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना फेज-3 के तहत 82 हजार 500 करोड़ रुपये की लागत से 1,25,000 किलोमीटर सड़क निर्मित करने का लक्ष्य है. इस योजना के तहत देश में अब तक 26000 किलो मीटर सड़क निर्माण के कार्य स्वीकृत किये जा चुके हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के अंतर्गत कुल 2.95 करोड़ आवास निर्मित करने का लक्ष्य है. अब तक 2.21 करोड़ आवास राज्यों को आवंटित किये जा चुके हैं. लगभग एक करोड़ से ज्यादा आवास बन चुके हैं.

योजना के क्रियान्वयन के लिए राज्यों के पास अब तक कुल 1,60,555.29 करोड़ रुपये की धनराशि उपलब्ध है. वर्ष 2022 तक सभी आवासहीनों को आवास उपलब्ध कराने का संकल्प है. कुल 20.65 प्रधानमंत्री महिला जनधन खाताधारकों को तीन माह के लिए 500 रुपये प्रतिमाह की अनुग्रह राशि प्रदान की गयी. इस योजना पर कुल 31,000 करोड़ रुपये व्यय किये गये. वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं एवं दिव्यांगों के लिए दो किश्तों में कुल 1000 रुपये की सहायता जारी की गयी. इसके लिए 2,815 करोड़ रुपये खर्च किये गये. 2.82 करोड़ बुजुर्गों, विधवाओं एवं दिव्यांग इससे लाभान्वित हुए.

मिशन अंत्योदय की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 76 प्रतिशत ग्राम पंचायतों में आंतरिक सड़कों का निर्माण पूरा किया जा चुका है. अभी तक लगभग 1.40 लाख ग्राम पंचायत ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी से जुड़ चुके हैं. ग्रामीण विकास की इस अवधारणा में पंचायती राज मंत्रालय की महती भूमिका है. देश में स्थानीय शासन की व्यवस्था को सशक्त करने, गांव तक सुराज पहुंचाने और शासन व्यवस्था की शक्ति का विकेंद्रीकरण करने के उद्देश्य से पंचायती राज प्रणाली लागू की गयी है. भारत में 2 लाख 69 हजार 347 ग्राम पंचायतें, 6 हजार 717 ब्लॉक पंचायत तथा 654 जिला पंचायतें हैं.

पंद्रहवें वित्त आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2020-21 के लिए पंचायती राज के सभी स्तरों में ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए 60,750 करोड़ रुपये के अनुदान की सिफारिश की है, जिसमें 50 प्रतिशत अबद्ध (अनटाइड) और 50 प्रतिशत बद्ध (टाइड) हैं. अबद्ध एवं बद्ध अनुदान की पहली किस्त के रूप में 30,375 करोड़ रुपये जारी कर दिये गये हैं.प्रधानमंत्री ने भारत को दुनिया की सफलतम अर्थव्यवस्था बनाने का जो सपना देखा है, वह गांवों के विकास के बगैर संभव नहीं है. हम अपनी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण और शहरी भारत के बीच पैदा हुई विकास की खाई को अपने ही संसाधनों से पाटने में सफल हो रहे हैं.

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