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आइटी पेशेवर और मूनलाइटिंग

कनीय और नये कर्मचारियों को कम वेतन के साथ दबाव में नियत कार्यावधि से ज्यादा काम करना पड़ता है. कई कंपनियां अपने कर्मचारियों से वर्षों तक एक ही तरह के काम कराती हैं, जो उबानेवाला होता है.

सूचना तकनीक (आइटी) क्षेत्र में मूनलाइटिंग पर बहस जारी है. मूनलाइटिंग के मसले पर बड़े उद्योगपति पक्ष और विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, हाल में इंफोसिस, विप्रो सहित कई बड़ी भारतीय आइटी कंपनियों ने मूनलाइटिंग के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए मूनलाइटिंग में शामिल सैकड़ों कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है. आइबीएम और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अधिकतर वैश्विक कंपनियों ने भी मूनलाइटिंग को नकारात्मक ही बताया है.

हालांकि प्रसिद्ध भारतीय तकनीकी संस्था टेकमहिंद्रा के सीइओ सीपी गुरनानी ने मूनलाइटिंग का समर्थन करते हुए इसे सकारात्मक बताया है. ऐसी परिस्थिति में मूनलाइटिंग का एक तर्कसंगत विश्लेषण आवश्यक हो जाता है. नियमित व्यावसायिक घंटों के बाद दूसरी नौकरी करना मूनलाइटिंग के रूप में जाना जाता है. इसमें एक पेशेवर आम तौर पर शाम या रात में दूसरी कंपनी के लिए काम करता है. मूनलाइटिंग नयी अवधारणा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में सदियों से व्याप्त है.

किसी सरकारी या निजी अस्पताल में काम करने वाले चिकित्सक अपने आवास या प्राइवेट क्लीनिक पर भी मरीज देखते हैं. शिक्षक विद्यालय के समय के बाद अपने घर पर ट्यूशन देते हैं या फिर एक सफाईकर्मी अपने मुख्य कार्यालय में सफाई के उपरांत दूसरी संस्थाओं में भी सफाई का काम करता है. विभिन्न पेशेवर आजकल अपनी नियमित नौकरियों के अलावा गायन, अभिनय, संगीत, रंगमंच, सोशल मीडिया सहित अन्य रचनात्मक गतिविधियों में भी संलिप्त देखे जाते हैं. ये सभी मूनलाइटिंग के उदाहरण हैं और इन्हें कोई गलत नहीं मानता. फिर आइटी क्षेत्र में ही मूनलाइटिंग को क्यों गलत माना जाए?

मूनलाइटिंग के साथ नियोक्ता के लिए निष्ठा और नैतिकता की बहस भी जोरों पर है, लेकिन अधिकतर नियोक्ता कर्मचारियों के हित के बजाय व्यापार लाभ को ज्यादा महत्व देते हैं. उदाहरण के तौर पर, बैजूस ने 12 अक्तूबर को एक ही दिन 25 सौ से ज्यादा कर्मचारियों की सामूहिक छंटनी कंपनी को वर्ष के अंत तक लाभदायक बनाने के नाम पर कर दिया. हमारे देश के बड़े एडटेक स्टार्टअप, जहां पिछले वर्ष ज्यादा वेतन वृद्धि देकर प्रतिभा अधिग्रहण की होड़ लगी थी, में इस वर्ष सामूहिक छंटनी की होड़ लगी है.

भारत ही नहीं, पूरे विश्व के आइटी पेशेवर छंटनी से जूझ रहे हैं. बीते 17 अक्तूबर को ही माइक्रोसॉफ्ट ने एक हजार से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी की है. ओरेकल और इंटेल ने भी 12 अक्तूबर को सैकड़ों कर्मचारियों की छंटनी की है. चाहे वैश्विक आपदा हो या फिर आर्थिक मंदी, सबसे पहले आइटी पेशेवरों को ही नौकरी से निकाला जाता है. वर्ष 1990 के दशक में विश्व इतिहास की दूसरी सबसे बड़ी छंटनी में कंप्यूटर निर्माता आईबीएम ने लागत में कटौती के नाम पर 60 हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था.

प्रसिद्ध आइटी कंपनी एचपी 2008 और 2009 में दो बार क्रमशः 24600 और 27000 कर्मचारियों की सामूहिक छंटनी कर चुकी है. कोविड महामारी के शुरुआती दौर में ही लाखों आइटी पेशेवरों को नौकरी से निकाल दिया गया था. जब कंपनियां अपने व्यावसायिक लाभ को निष्ठा और नैतिकता के ऊपर प्राथमिकता दे सकती हैं, तो कर्मचारियों से भी निष्ठा की उम्मीद करना तर्कसंगत नहीं है. हालांकि कई ऐसी सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां भी हैं, जिनके लिए कर्मचारियों का हित महत्वपूर्ण होता है.

वैसी कंपनियों में मूनलाइटिंग करने वाले कर्मचारियों का अनुपात नगण्य है, साथ ही बहुत कम कर्मचारी नौकरी छोड़ कर जाते हैं. उदाहरण के लिए, हमारे देश की सबसे बड़ी आइटी कंपनी टीसीएस में सबसे कम एट्रिशन दर है और उसके कर्मचारी बहुत कम मूनलाइटिंग करते हैं. तथ्यों के अनुसार वैश्विक कंपनियों में एडोबी सबसे ज्यादा कर्मचारियों के हित का ख्याल रखती है, इसलिए उसके कर्मचारी आम तौर पर मूनलाइटिंग करते हुए नहीं पाये गये हैं. मतलब साफ है, निष्ठा पारस्परिक होती है, जो कंपनी अपने सहयोगियों के लिए निष्ठा रखेगी, उसके कर्मचारी भी कंपनी के प्रति निष्ठा रखेंगे.

बढ़ती महंगाई में बुनियादी आवश्यकताओं की बढ़ती लागत के कारण जीवन शैली बनाये रखने के लिए कई बार मूनलाइटिंग करना पड़ता है. अनिश्चित माहौल में मूनलाइटिंग आय के दूसरे स्रोत के रूप में सहारा प्रदान करता है. यथार्थ में ज्यादा पैसा कमाने के अलावा मूनलाइटिंग के कई और महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं. बहुत लोगों ने कोविड महामारी के कारण लगाये गये लॉकडाउन के कारण बोरियत से बचने के लिए अतिरिक्त काम करना शुरू कर दिया था.

कई पेशेवर अपने कौशल को बढ़ाने के लिए समवर्ती रोजगार पकड़ लेते है, जिससे उनकी दक्षता मनचाहे क्षेत्र में बढ़े. लिंक्डइन द्वारा 2018 में संचालित एक अध्ययन के अनुसार, कौशल विकास के अवसरों की कमी तथा नौकरी से असंतुष्टि के कारण लोग नौकरी में बदलाव या अंशकालिक काम की तलाश करने लगते हैं. कई कंपनियों में कनीय या नये भर्ती युवा कर्मचारियों और प्रबंधक जैसे वरीय कर्मचारियों के साथ अलग व्यवहार किया जाता है.

कनीय और नये कर्मचारियों को कम वेतन के साथ दबाव में नियत कार्यावधि से ज्यादा काम करना पड़ता है. कई कंपनियां अपने कर्मचारियों से वर्षों तक एक ही तरह के काम कराती हैं, जो उबानेवाला होता है. यही नहीं, कर्मचारियों के महत्वपूर्ण प्रयासों को भी सराहना नहीं मिलती. ऐसे में कर्मचारी अलग-थलग महसूस कर ऐसा काम ढूंढने लगते हैं, जहां उनके कार्य और योगदान को पहचान मिले. युवावस्था में पेशेवरों में अच्छा करने की तमन्ना ज्यादा होती है, जैसे कई युवाओं में स्वयं के उद्यम के लिए नया जोश रहता है. चूंकि स्टार्टअप विफलता दर अधिक है, इसलिए मूनलाइटिंग से मुख्य नौकरी से आय बंद होने की स्थिति में एक विकल्प बना रहता है.

आइटी कंपनियों को कर्मचारियों को जोड़ कर रखने के लिये परंपरागत मानव संसाधन तरीकों से हट कर नये पारस्परिक तरीकों को ईजाद करना होगा, जिससे कर्मचारी निष्ठा के साथ जुड़े रहें. अधिकतर बड़ी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की दक्षता बढ़ाने वाले कई कार्यक्रमों की शुरुआत तो कर दी है, अब सामान्य कार्य-समय के बाद मूनलाइटिंग की अनुमति प्रदान करने का वक्त आ गया है. हाल में भारत सरकार के आइटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने भविष्य का काम करने का तरीका बता कर मूनलाइटिंग का समर्थन किया है. निश्चित तौर पर आइटी क्षेत्र में मूनलाइटिंग समय की मांग है, जिसे लागू करने से कंपनियों के साथ आम पेशेवरों को भी फायदा होगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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