कश्मीर में ध्वस्त हो आतंकियों का नेटवर्क

सरकार गठन में उमर अब्दुल्ला ने संतुलन बनाने की कोशिश की है और जम्मू क्षेत्र से मंत्रिमंडल में कई मंत्री शामिल किये गये हैं. कुछ ऐसे मंत्री भी हैं, जिनकी पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भाजपा से संबद्ध रही है.

By डॉ अमित सिंह | October 22, 2024 6:00 AM

कश्मीर के सोनमर्ग के नजदीक श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक सुरंग निर्माण की जगह पर रविवार को हुए आतंकी हमले में सात लोगों की मौत बेहद दुखद है. ऐसा पहली बार हुआ है, जब आतंकियों ने किसी बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना की जगह को निशाना बनाया है. उससे पहले एक अन्य घटना में एक कामगार की हत्या भी हुई है. जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का इतिहास कई दशक पुराना है, लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370 में संशोधन करने और मोदी सरकार द्वारा कड़ा रवैया अपनाये जाने से आतंकवाद को बहुत हद तक नियंत्रित किया गया है. उल्लेखनीय है कि दो बार नियंत्रण रेखा के पार भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकी गिरोहों को भारी झटका दिया है. इन कारणों से पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकी समूहों में बड़ी बेचैनी रही है.

हमने देखा है कि कुछ समय पहले जब घाटी में उनके नेटवर्क को लगभग समाप्त कर दिया गया और चौकसी पुख्ता कर दी गयी, तो उन्होंने जम्मू क्षेत्र में हमलों का सिलसिला शुरू कर दिया. भारतीय सुरक्षाबलों ने कड़ाई से इन चुनौतियों का मुकाबला किया है और अभी भी जम्मू क्षेत्र में आतंकियों के सफाये की कोशिश जारी है. ऐसे में लगता है कि आतंकवादी कश्मीर में भी कायराना हमलों को अंजाम देने की रणनीति अपना रहे हैं.

हाल में जम्मू-कश्मीर में संपन्न हुए लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने उत्साहपूर्ण भागीदारी की है. अभी वहां नयी सरकार का गठन भी हुआ है. इससे भी आतंकी समूहों और उनके पाकिस्तानी प्रायोजकों की छाती पर सांप लोट रहे हैं. वे घाटी में फिर से दहशत का माहौल बनाकर लोगों के भरोसे को डगमगाने की फिराक में हैं. उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में जो नेशनल कॉन्फ्रेंस की नयी सरकार बनी है, उसे जनता का भारी समर्थन प्राप्त है. जम्मू क्षेत्र में भाजपा को अच्छी-खासी सीटें हासिल हुई हैं.

सरकार गठन में उमर अब्दुल्ला ने संतुलन बनाने की कोशिश की है और जम्मू क्षेत्र से मंत्रिमंडल में कई मंत्री शामिल किये गये हैं. कुछ ऐसे मंत्री भी हैं, जिनकी पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भाजपा से संबद्ध रही है. बार-बार उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि घाटी से विस्थापित कश्मीरी पंडितों की वापसी हो तथा उस क्षेत्र में विकास को गति दी जाए. हालांकि चुनाव के दौरान उन्होंने कहा था कि वे पूर्ण राज्य के दर्जे के साथ विशेष राज्य की स्थिति बहाल करने की कोशिश करेंगे, पर कैबिनेट की पहली बैठक में केवल पूर्ण राज्य का दर्जा देने के प्रस्ताव को ही पारित किया गया है. वे यह भी चाहते हैं कि केंद्र सरकार के साथ अच्छे संबंध रखते हुए प्रदेश की भलाई और बेहतरी के काम किये जाएं. उन्होंने अनेक कार्यक्रमों के लिए मोदी सरकार की प्रशंसा भी की है.

ऐसे में मेरा मानना है कि वर्तमान स्थिति को आतंकी अपने गले के नीचे नहीं उतार पा रहे हैं. वे चाहते हैं कि घाटी में अस्थिरता का वातावरण बने, इसीलिए आतंकी हमलों का सहारा लिया जा रहा है. रविवार का हमला निश्चित रूप से एक बड़ा हमला है और यह सोच-समझ कर किया गया है. ऐसे हमले आगे न हों और आतंकियों का मनोबल न बढ़े, इसके लिए उनके ठिकानों एवं नेटवर्क को निशाना बनाना जरूरी हो गया है. यदि आवश्यक हो, तो सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाइयों पर भी विचार किया जाना चाहिए. पहले हुए ऐसे स्ट्राइक के बाद आतंकियों की क्षमता में बड़ी कमी आयी थी. बीते कुछ समय में पाकिस्तान के भीतर अनेक आतंकी सरगनाओं की हत्या अज्ञात लोगों ने की है. इससे भी उनके गिरोहों को झटका लगा है. अतीत के अनुभवों और दुनिया के विभिन्न उदाहरणों को सामने रखते हुए सुरक्षा एजेंसियों को अपनी रणनीति की समीक्षा कर नये सिरे से कार्रवाइयों पर विचार करना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है. इसमें देरी करने से आतंकियों को दहशत फैलाने के लिए ज्यादा वक्त मिल सकता है. जम्मू-कश्मीर के सभी दुश्मन गिरोहों को निशाने पर लेने की जरूरत है.

दिल्ली में हुए विस्फोट के बारे में भी संदेह जताया जा रहा है कि इसके पीछे भारत-विरोधी आतंकी समूहों का हाथ हो सकता है. हमने देखा है कि पश्चिमी देशों से अपनी गतिविधियां चला रहे खालिस्तानी समूह भारत को धमकियां देते रहते हैं. इसी प्रकार विमानों में बम की झूठी धमकियों से देश को परेशान करने की कोशिश हो रही है. इस परिदृश्य में आतंकवाद के विरुद्ध निष्ठुर होकर कार्रवाई होनी चाहिए. बीते दिनों भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान की यात्रा की और वहां के विदेश मंत्री से उनकी अनौपचारिक बातचीत हुई. यह यात्रा शंघाई सहयोग संगठन की सालाना बैठक के संदर्भ में थी. दोनों विदेश मंत्रियों की बातचीत से ऐसी उम्मीदों को बल मिला है कि भारत और पाकिस्तान के संबंधों में सुधार का दौर शुरू हो सकता है. हालांकि यह उम्मीद रखते हुए यह भी कहा जाना चाहिए कि पाकिस्तान में ऐसे समूह हैं, जो दोनों देशों के संबंधों को सामान्य नहीं होने देना चाहते हैं. आतंकी समूह बिल्कुल नहीं चाहते हैं कि दोनों देशों में बातचीत हो, व्यापार बढ़े और लोगों के बीच संपर्क बने. इसके अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं.

जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मित्रता का संदेश लेकर बस से लाहौर गये थे, तब ऐसा लगा था कि द्विपक्षीय संबंधों का एक सकारात्मक अध्याय प्रारंभ होगा. लेकिन उसके बाद कारगिल में घुसपैठ कर पाकिस्तानी सेना ने युद्ध की स्थिति पैदा कर दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब काबुल से लौटते हुए अचानक पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर पहुंच गये थे, तब भी ऐसी आशाओं को बल मिला था कि अतीत की घटनाओं को पीछे छोड़ दोनों देश भविष्य की ओर सकारात्मकता से बढ़ेंगे. लेकिन उस यात्रा के बाद पठानकोट में बड़ा आतंकी हमला हो गया. अब जयशंकर की यात्रा से उम्मीद बंधी है, तो रविवार की घटना हो गयी. पाकिस्तान में जो भारत विरोधी शक्तियां हैं, जो शांति की विरोधी हैं, वे संबंधों में सुधार की भी विरोधी हैं. मुझे लगता है कि परस्पर संबंधों को तनावपूर्ण बनाये रखने के लिए भी आतंकी हमलों जैसे तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है. इसीलिए आतंक की कमर तोड़नी बहुत जरूरी है. यह बार-बार कहा जाता रहा है कि आतंकवाद को समर्थन और प्रोत्साहन देने का खामियाजा पाकिस्तान और वहां के लोगों को भी भुगतना पड़ता है. अगर पाकिस्तान अमन-चैन और विकास का आकांक्षी है, तो आतंकवाद के विरुद्ध उसे भारत का पुरजोर सहयोग करना चाहिए. यह दोनों देशों और दक्षिण एशिया के लिए सकारात्मक होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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