स्टेशनों पर जन औषधि
स्टेशनों पर जन औषधि केंद्रों के खुलने से यात्रियों, स्टेशनों पर रोजगार-धंधा करने वालों तथा वहां जाने वाले अनेक दूसरे लोगों को भी बड़ी सुविधा मिलेगी.
केंद्र सरकार का देश के रेलवे स्टेशनों पर जन औषधि केंद्रों को खोलने का फैसला हर लिहाज से एक सराहनीय पहल है. आम लोगों को सस्ती कीमत पर दवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना 2008 में शुरू की गयी थी, लेकिन यह एक वास्तविकता है कि अब भी अधिकतर लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं है. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि ये केंद्र उस तरह से नजर नहीं आते जिस तरह से दवा बेचने वाले मेडिकल स्टोर या केमिस्ट या फार्मेसी.
रेलवे स्टेशनों पर जन औषधि केंद्र खोले जाने से एक साथ कई तरह के लाभ होंगे. सबसे पहले तो रेलवे स्टेशनों पर दवाओं की उपलब्धता होगी. भारत में स्टेशनों पर खाने-पीने के सामान, पत्र-पत्रिकाएं तथा कुछ अन्य सामानों के स्टोर तो मिल जाते हैं, लेकिन दवाएं खरीदने के लिए स्टेशन से बाहर जाना पड़ता है. ऐसे में स्टेशनों पर जन औषधि केंद्रों के खुलने से यात्रियों, स्टेशनों पर रोजगार-धंधा करने वालों तथा वहां जाने वाले अनेक दूसरे लोगों को भी बड़ी सुविधा मिलेगी. भारतीय रेलों से प्रतिदिन लगभग ढाई करोड़ लोग यात्रा करते हैं.
साथ ही, करोड़ों लोगों का स्टेशनों पर आना-जाना होता है. स्टेशनों पर जन औषधि केंद्रों के खुलने से रोजगार के भी नये अवसर पैदा होंगे. हालांकि, प्रथम चरण में देश के 21 राज्यों के 50 स्टेशनों पर ऐसे केंद्र खोले जाएंगे. भारत में अभी छोटे-बड़े स्टेशनों समेत 7300 से ज्यादा रेलवे स्टेशन हैं. इससे समझा जा सकता है कि स्टेशनों पर जन औषधि केंद्रों के विस्तार की संभावनाएं कितनी बड़ी हैं.
रेलवे स्टेशनों पर ऐसे केंद्रों के खोलने का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि इन्हें लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ेगी. कोई भी योजना कामयाब तभी हो सकती है जब लोगों को उसकी जानकारी हो तथा वह इनके फायदों को समझ सकें और कमियों को बता सकें. पीएमबीजेपी योजना पिछले 15 साल से चल रही है और अभी तक देशभर में 9,400 से ज्यादा जन औषधि केंद्र खोले जा चुके हैं.
केंद्र सरकार ने इस साल के अंत तक इनकी संख्या बढ़ा कर 10,000 तक करने का लक्ष्य रखा है. इससे पहले जून में सरकार ने गांवों या पंचायतों में स्थित प्राथमिक कृषि ऋण समितियों या पैक्स में जन औषधि केंद्र खोलने की घोषणा की थी. इन केंद्रों पर बिकने वाली जेनरिक दवाएं बड़ी कंपनियों की दवाओं जैसी ही प्रभावी होती हैं, लेकिन वे बड़े ब्रांडों वाली दवाओं से 50% से लेकर 80% तक सस्ती होती हैं. अभी रोजाना औसतन 12 लाख लोग जन औषधि केंद्रों से दवाएं खरीदते हैं.