विश्व सिनेमा के इतिहास में सबसे ज्यादा चर्चित और महत्वपूर्ण फिल्मकारों में शुमार ज्यां लुक गोदार ने 91 साल की उम्र में बीमारियों से तंग आकर स्विट्जरलैंड में इच्छा मृत्यु का वरण कर लिया. दुनिया के यदि किसी एक फिल्मकार की कही गयी बातों को सबसे ज्यादा दोहराया गया, तो वह गोदार ही थे. उनके ये सुप्रसिद्ध कथन हर पीढ़ी के फिल्मकारों को प्रेरित करते रहे हैं कि ‘फिल्म का आरंभ, मध्य और अंत होना चाहिए,
पर जरूरी नहीं कि यह इसी क्रम में हो’ या ‘सिनेमा न तो सत्य है, न गल्प, बल्कि यह कुछ कुछ इन दोनों के बीच की चीज है’ या फिर ‘यदि आप फिल्म बनाना चाहते हैं, तो आपके पास एक लड़की और एक बंदूक होनी चाहिए.’ उन्होंने न सिर्फ फिल्म संपादन में ‘जंप कट’ को प्रमुखता दी, बल्कि पारंपरिक पटकथाओं (आरंभ, मध्य और अंत) को भी बदल दिया. अपनी हर फिल्म में उन्होंने खुद को ही कला में बदल दिया. उन्हें खूब व्यावसायिक सफलता भी मिली. हालांकि उनकी बाद की फिल्मों को समझने के लिए दर्शकों को काफी मशक्कत करनी पड़ी.
गोदार फ्रेंच न्यू वेव सिनेमा के प्रमुख प्रवर्तक रहे हैं. अपनी पहली फिल्म ब्रेथलेस (1959) से लेकर आखिरी फिल्म इमेज बुक (2018) तक इस मेधावी फिल्मकार ने दुनियाभर में तहलका मचाये रखा और सिनेमा के मायने बदल दिये. उन्हें बेहिसाब शोहरत और इज्जत मिली. लोग फिल्में बनाते हैं, गोदार ने सिनेमा बनाया. उनकी आखिरी तीन फिल्में- फिल्म सोशलिज्म (2010), गुडबाय टू लैंग्वेज (2014) और इमेज बुक (2018)- ‘भाषा त्रयी’ कही जाती हैं,
जिनमें उन्होंने सिनेमा की अपनी सैद्धांतिकी पेश करते हुए कहा था कि सिनेमा में भाषा या संवाद के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह दृश्य माध्यम है. वर्ष 2018 के कान फिल्म समारोह में इमेज बुक के लिए गोदार को स्पेशल पॉम डि ओर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था तथा उनके सम्मान में उनकी फिल्म पियरो द मैड मैन के चुंबन दृश्य को समारोह का मुख्य पोस्टर बनाया गया था.
इसके दो साल पहले भी समारोह का पोस्टर उनकी फिल्म कंटेंप्ट से प्रेरित था. फिल्म इमेज बुक कला और सिनेमा की बेमिसाल जुगलबंदी है. इसमें न कोई कहानी है, न संवाद और न कोई अभिनेता. यह एक विलक्षण वीडियो आलेख है. कान के ग्रैंड थियेटर लूमिएर में फिल्म के प्रदर्शन के दूसरे दिन उन्होंने अपने सिनेमैटोग्राफर फाबरिक अरानो के फोन पर प्रेस कांफ्रेंस में सवालों के जवाब दिये. गोदार 13 साल बाद प्रेस से मुखातिब हुए थे.
तब उन्होंने घोषणा की थी कि जब तक उनके हाथ-पांव और आंखें सही सलामत हैं, वे फिल्में बनाते रहेंगे. तब किसे पता था कि यह उनका आखिरी प्रेस वक्तव्य साबित होगा. उन्होंने तब यह भी कहा था कि यूरोप को रूस के बारे में नरमी बरतनी चाहिए और अरब देशों के प्रति उदार नजरिया रखना चाहिए. उन्होंने सिनेमा के भविष्य के बारे में कहा कि ‘दस साल बाद सारे थियेटर मेरी फिल्में दिखायेंगे और गंभीर सिनेमा का लोकप्रिय दौर लौटेगा.’
ज्यां लुक गोदार हमेशा से हॉलीवुड और मुख्यधारा सिनेमा के खिलाफ रहे. वे दुनिया के अकेले ऐसे फिल्मकार हैं, जिन पर सबसे ज्यादा लिखा गया है. उन्हें जब 2010 में ऑनरेरी ऑस्कर सम्मान देने की घोषणा हुई, तो वे सम्मान लेने नहीं गये. उन्होंने 1968 में छात्र आंदोलन के पक्ष में कान फिल्म समारोह को बंद करा दिया था.
उनकी आखिरी फिल्म इमेज बुक एक तरह से सिनेमा में उनकी इसी प्रतिरोधी चेतना की अभिव्यक्ति है तथा उनकी पिछली फिल्मों- फिल्म सोशलिज्म और गुडबाय टू लैंग्वेज- का विस्तार है, जिनमें केवल दृश्यों के कोलाज हैं. इमेज बुक में एक तरह से उन्होंने आज की दुनिया का दिल दहलाने वाला आईना दिखाया है.
पचास और साठ के दशक की फिल्मों से लेकर न्यूजरील वीडियो तक, दुनियाभर मे छपी खबरों के कोलाज और मानव सभ्यता पर मंडराते खतरों से जुड़े चित्र- सब हजारों कहानियां बयान कर रहे हैं. एक पूरा खंड उनके वीडियो महाकाव्य सिनेमा का इतिहास से लिया गया है, जिसे बनाने में उन्होंने दस साल (1988-1998) लगाये थे.
यह आज के संसार की क्लाइडोस्कोपिक यात्रा है, जो कई खंडों में चलती है, मसलन- वन रीमेक, सेंट पीट्सबर्ग, अरब, युद्ध, औरतें, शब्द आदि. इस्लामिक स्टेट के वीडियो हैं, तो सामूहिक नरसंहार की क्लिपिंग भी है. एक दृश्य में कुत्तों की तरह रेंगते नंगे स्त्री-पुरुष हैं, तो कहीं औरतों की योनि में गोली मारते सैनिक हैं.
एक जगह वे बताते है कि प्रेम के इजहार में सदियों से मर्द झूठ बोलते आ रहे हैं और हमारी सभ्यता साझा हत्याओं पर आधारित है. एक बहस में गोदार ने कहा था कि यदि लोग अब उनकी फिल्में पसंद नहीं करते हैं, तो उनकी सोच में गड़बड़ है, फिल्मों में नहीं. आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जब तक सिनेमा रहेगा, गोदार प्रासंगिक बने रहेंगे.