जिजीविषा का प्रतीक है नववर्ष

केवल कैलेंडर की तारीख बदलना नव वर्ष नहीं. केवल बारह महीने बीत जाना वर्ष की विदाई नहीं. इसके लिए अंतर्दृष्टि और कालपथ पर पदचाप दर्ज करना आवश्यक है. नयी संभावना, नयी दृष्टि, संघर्ष और लालित्य का प्रवेश ही नव वर्ष है. नव वर्ष केवल नये समय का पर्व नहीं.

By प्रो परिचय दास | January 1, 2021 7:48 AM
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प्रो परिचय दास, अध्यक्ष, हिंदी विभाग नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय

parichaydaspoet@gmail.com

केवल कैलेंडर की तारीख बदलना नव वर्ष नहीं. केवल बारह महीने बीत जाना वर्ष की विदाई नहीं. इसके लिए अंतर्दृष्टि और कालपथ पर पदचाप दर्ज करना आवश्यक है. नयी संभावना, नयी दृष्टि, संघर्ष और लालित्य का प्रवेश ही नव वर्ष है. नव वर्ष केवल नये समय का पर्व नहीं. वह जिजीविषा, सामूहिकता, वैभव, समृद्धि की कामना, संकल्प, नूतनता के उन्मेष का भी प्रकटीकरण है. विषाद की छाया के विरुद्ध नवता का उद्घोष. वास्तव में विगत समय व वर्ष हमसे हमारा आकलन चाहता है. नया वर्ष उजाले के बिंब की रूपहली मछली की तरह हमारे मन की संरचना में छलक उठता है. नव वर्ष का पक्ष आवश्यक रूप से विगत वर्ष का अगला चरण है.

यह खट्टा, मीठा, तीखा, कई स्वादों से संपृक्त है. नये वर्ष व विगत वर्ष का संधि बिंदु हमें कई बार एकांत मनन की सुविधा देता है. नव वर्ष हमें भविष्य के दृश्य से परिचित कराने की ओर ले जाता है. हमारी दृष्टि में संसार युग्मों से सृजित है: परंपरा व आधुनिकता, स्थिर व जंगम इत्यादि. नये समय का अर्थ आत्मा के रंग में नये सृजन के संकल्प के रूप में जुड़ा हुआ है.

प्रभु वर्ग चाहे जितना ताम-झाम कर ले, सामान्य व्यक्ति अपने भविष्य को निर्धारित करने के लिए अधिक संवेदनशील होता है, इस संधि-बिंदु पर. यह अलग बात है कि व्यवस्था की शीत ऋतु में परिवर्तन की ऊष्मा की प्रेरणा सामान्य आदमी को मिल ही जाती है. दुख, विषाद, पैसे की कमी, रोजगार का वज्र संकट: इसके बावजूद यदि नव वर्ष परंपरा से हमें नये दुष्चक्रों को भेदने के लिए आलोकित करता है, ऊष्मा देता है, तो यही उसकी महिमा है.

काल अनंत है, और प्रवाहमान भी. उसके किसी खंड में हम जीते हैं. हमारी स्मृतियां और आकांक्षाएं समय सापेक्ष हैं, और समय को अतिक्रमित करने वाली भी. जो आकांक्षाएं सावधि होती हैं, उनकी अपनी सीमाएं हैं. मनुष्य है कि सीमाएं तोड़ता है. वह ससीम से असीम की ओर बढ़ता है. यही उसके व्यक्तित्व का घनत्व है. वह व्यक्ति से समष्टि की ओर बढ़ता है. वह निजता के साथ-साथ पंक्तिबद्ध भी होता है. आज विश्व के अनेक परिवर्तन पंक्तिबद्धता और समूहवाची होने के परिणाम हैं. इसका अर्थ यह नहीं कि व्यक्तित्व की आंतरिकता के महत्व कम हुए हैं. सच तो यह है कि बढ़ते शोरगुल और आक्रामक माहौल में निजता की प्रतिष्ठा की अर्थवत्ता और बढ़ी ही है.

नव वर्ष में परिवर्तन की कामना के साथ व्यक्तित्व की निजता को एक साथ संबल मिलना अभीष्ट है. आज व्यक्तित्व ही विलोपित हो रहा है. व्यक्तित्वहीन व्यक्तित्व. साहित्य, कलाएं, नवाचार, आंदोलन आदि व्यक्तित्वहीनता के इसी आवरण को उतारते हैं: मूर्त या अमूर्त रूप में. नव वर्ष सालभर की प्रतीक्षा के बाद आता है. यह धीरज स्मृतियों में संपुंजित होता है. विगत का हर क्षण गंध और रोशनी की तरह या कभी-कभी अंधकार की तरह हमारे मन में अस्तित्व के हिस्से रूप में लगते हैं.

जो बेहतर होता है, वह उजास की तरह होता है. उजास की दृष्टि हमारे अनुभव में मिल जाती है तथा समकालीनता का दृश्यांकन करती है. हमारे लोक समाजों में भूत-भविष्य का लेखा-जोखा एक आवेग जैसा है, जिसमें अनगढ़ता और आदिम ऊष्मा है. हम अपने ज्योति-पुंज के रूप के रूप में नव वर्ष को लेते हैं, जो हमें आलोकित कर दे. प्रस्तुत वर्ष परिवर्तन का वर्ष है.

प्रत्येक क्षण वैसे तो बदलाव ही लाता है, लेकिन यहां ‘परिवर्तन’ का बृहत् अर्थ है. यहां अर्थ है: मानवीय सरोकारों का दृष्टिबोध बदलना, व्यवस्था से जनता का मोहभंग होना, सड़े-गले पक्षों पर प्रहार, नस्ल, वर्ण, पंथ, भाषा, क्षेत्र के अतिवाद से मुक्ति. यह नहीं चलेगा कि एक ओर टेंट में रोज बच्चे मर रहे हैं और दूसरी ओर स्तरहीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर नजरें मटकायी जा रही हैं. अब यह देखना होगा कि कृति का कौन सा विखंडन या विश्लेषण अथवा उपपाठों की तलाश राजनीतिक तौर पर सही या गैर-सही है.

नयी सांस्कृतिक चेतना से नव वर्ष का प्रारंभ ही अभीष्ट है. यह देश में नयी व्यवस्थागत बहस, बदलाव लाये- यह कामना है. डिबेट और डिस्कोर्स हो, न कि डिनाउंसिंग और डिबंकिंग, क्योंकि इससे संवाद की स्थिति समाप्त हो जाती है. वर्तमान समय संवाद बढ़ाने का है, न कि अलगीकृत होने का. यद्यपि सूचना के महाअंबार में अलग होते जाते व्यक्तित्वों व समाजों का प्राधान्य बढ़ रहा है.

ईमानदारी और सादगी की आवश्यकता है, लेकिन इसकी पैकेजिंग हो रही है. इसे राजनीति में ‘इस्तेमाल’ किया जा रहा है. ‘इस्तेमाल होने’ व ‘जीने’ में फर्क को नव वर्ष का आधार बनाना जरूरी है. ‘होने’ व ‘प्रचारित’ करने के बीच की क्षीण रेखा को देखें. व्यक्ति के अभ्यंतर व समूह के संघर्ष नव वर्ष को नयी आभा के रूप में बदल सकते हैं. इसे संकल्प के अवसर, प्रसन्नता, एकजुटता, समानता, नवाचार के प्रतीक के रूप में ले सकते हैं.

केवल कैलेंडर की तारीख बदलना नव वर्ष नहीं. केवल बारह महीने बीत जाना वर्ष की विदाई नहीं. इसके लिए अंतर्दृष्टि और कालपथ पर पदचाप दर्ज करना आवश्यक है. नयी संभावना, नयी दृष्टि, संघर्ष और लालित्य का प्रवेश ही नव वर्ष है. नया वर्ष अंतहीनता को एक ठौर देता है. हमारी स्मृति, आशा, लगाव, भविष्यकामिता के आलोड़न के विविध स्पंदन नये वर्ष के आधारबिंदु हैं.

Posted by : Pritish Sahay

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