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बाइडेन के लड़खड़ाने से बढ़ी अनिश्चितता

बाइडेन और उनके प्रचार तंत्र को आशा है कि सितंबर में होने वाली दूसरी बहस में वे बेहतर प्रदर्शन कर इस बहस के नुकसान की भरपाई कर सकते हैं और जीत सकते हैं.

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रपति जो बाइडेन और पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बीच हुई पहली टीवी बहस में बाइडेन के कमजोर प्रदर्शन से उनकी उम्मीदवारी पर सवाल खड़े हो गये हैं. वहां प्रमुख उम्मीदवारों के बीच टीवी पर सीधी बहस की परंपरा 1960 से चली आ रही है. ये बहसें प्रमुख पार्टियों- रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशनों के बाद होती हैं, जिनमें उम्मीदवारों की घोषणा होती है. पर इस बार पहली बहस अधिवेशनों से पहले हुई, जिसका अनुरोध बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी ने किया था. बाइडेन प्रचार अभियान के लोग उनकी वृद्धावस्था से कमजोर होती स्मृति और शारीरिक क्षमता को लेकर उठ रहे सवालों से चिंतित थे. इसलिए वे सिद्ध करना चाहते थे कि बाइडेन 81 वर्ष की उम्र में भी सजग और सक्षम हैं. एक के बोलते समय दूसरे का माइक बंद रखने की व्यवस्था करने के साथ-साथ स्टूडियो में दर्शकों को भी नहीं बुलाया गया था, ताकि ट्रंप समर्थक शोर मचाकर विघ्न न डाल सकें.

संचालकों ने झूठे तथ्यों और दावों को चुनौती न देने की नीति अपना कर 90 मिनट की बहस में अधिक से अधिक सवालों के समावेश की कोशिश की, जिसकी मीडिया में खासी आलोचना हो रही है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने तो इसे रियलिटी शो की संज्ञा दे डाली और वास्तव में यह बहस रियलिटी शो ही साबित हुई. हाथ मिलाने के शिष्टाचार के बिना उम्मीदवारों ने बहस शुरू की और यह कटुता पूरे समय बनी रही. बाइडेन ने ट्रंप को झूठा और अपराधी कहा, तो ट्रंप ने बाइडेन को सबसे बुरा राष्ट्रपति और चीनी पैसे पर पलने वाला मंचूरियाई उम्मीदवार कह दिया. बाइडेन ने ट्रंप के आरोपों का खंडन किया और नोक-झोंक के ऐसे क्षणों में वे प्रखर और सजग दिखे.

परंतु शुरू के पंद्रह मिनटों में वे काफी सुस्त, थके, कुछ खोये और बातें कहने में लड़खड़ाते दिखाई दिये. कोविड पर काबू पाने के लिए टीकाकरण की बात करते-करते भूल गये और ‘हमने कोविड को परास्त कर दिया’ कहने की जगह ‘ हमने मेडिकेयर को परास्त कर दिया’ कह गये, जो अमेरिका की स्वास्थ्य बीमा सेवा है. वहीं ट्रंप इत्मीनान और चतुराई के साथ अपनी बातें रखते नजर आये. विडंबना यह है कि राष्ट्रपति बाइडेन की शारीरिक और मानसिक क्षमता संबंधी जिन आशंकाओं को दूर करने के लिए बहस को समय से दो महीने पहले कराया गया, वे असल में इससे पुष्ट हो गयीं.

ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी ने बाइडेन की अक्षमताओं को ही प्रचार का मुख्य बिंदु बना रखा है. इसलिए डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रचार तंत्र ने बहस से मचते हड़कंप को देखते ही स्पष्टीकरण जारी किया कि राष्ट्रपति को जुकाम था, इसलिए वे सुस्त दिख रहे थे. बाइडेन अपनी सक्षमता पर उठने वाले सवालों पर कहते आये हैं- मुझे देख लीजिए! इसलिए उन्होंने अपने समर्थकों को आश्वस्त करने के लिए अगले ही दिन जोश के साथ एक रैली को संबोधित किया. पर हकीकत यह है कि बाइडेन का प्रदर्शन 1960 में शुरू हुई टीवी बहसों में सबसे कमजोर साबित हुआ. परिणामस्वरूप सर्वेक्षणों के अनुसार ट्रंप इस बहस के बाद जन स्वीकार्यता में बाइडेन से चार की जगह छह अंकों से आगे हो गये.

लेकिन उससे भी बड़ी समस्या यह है कि जिन सात स्विंग राज्यों में चुनाव का फैसला होना है, वहां ट्रंप लगातार आगे चल रहे हैं. बाइडेन और उनके प्रचार तंत्र को आशा है कि सितंबर में होने वाली दूसरी बहस में वे बेहतर प्रदर्शन कर इस बहस के नुकसान की भरपाई कर सकते हैं और जीत सकते हैं. पर उनके अधिकतर समर्थक उम्मीद हार चुके हैं और मानते हैं कि उम्मीदवार बदले बिना अब यह चुनाव नहीं जीता जा सकता. वे बाइडेन से अपील कर रहे हैं कि वे ठंडे दिमाग से सोचें और मैदान से हट जाएं ताकि पार्टी नया उम्मीदवार चुन सके. इसी में देश और दुनिया की भलाई है.

यदि बाइडेन इसके लिए तैयार हुए, तो उनकी जगह उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को उम्मीदवार बनाया जा सकता है. पर जन स्वीकार्यता में वे बाइडेन से भी पीछे चल रही हैं और डेमोक्रेटिक पार्टी के नियमों के अनुसार उन्हें उम्मीदवार बनाना जरूरी भी नहीं है. इसलिए नये उम्मीदवार का फैसला अगस्त में पार्टी अधिवेशन में जमा होने वाले प्रतिनिधियों को करना होगा. इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि नया उम्मीदवार भी ट्रंप को हरा ही सकेगा. डेमोक्रेटिक पार्टी में दो बार इसी तरह आखिरी दौर में उम्मीदवार बदले गये हैं और दोनों बार नये उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा है. फिर भी पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि इस बार नये उम्मीदवार के जीतने की संभावना अधिक है क्योंकि उसके आने से पार्टी के उम्मीदवार की शारीरिक क्षमता को निशाना बनाने वाला ट्रंप का सबसे बड़ा हथियार बेकार हो जायेगा.

चुनाव से हटने के लिए बाइडेन पर इस समय उनकी पार्टी के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय दबाव भी पड़ रहा है क्योंकि दुनिया इस समय चार बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है. यूक्रेन और गाजा में चल रहे युद्धों की वजह से दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से चली आ रही नियमबद्ध वैश्विक व्यवस्था के टूटने का खतरा पैदा हो गया है तथा वैश्विक संस्थाएं अप्रासंगिक होती जा रही हैं. जलवायु परिवर्तन ने अभूतपूर्व चुनौती खड़ी कर दी है. कृत्रिम बुद्धि (एआइ) के विकास से जीवन के हर क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन होने जा रहे हैं और बढ़ते निजी एवं सरकारी कर्ज के बोझ के कारण पूरी दुनिया में ऋण संकट बढ़ रहा है. इन वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए दुनिया को इस समय अमेरिका के नेतृत्व की जरूरत है. ऐसे समय में अमेरिका में सत्ता परिवर्तन की संभावना से यूरोप, मध्य-पूर्व, लातीनी अमेरिका और एशिया में चिंता है क्योंकि पिछले कार्यकाल में ट्रंप की नीतियां जलवायु विरोधी, टकरावपूर्ण और अमेरिका केंद्रित रही हैं और बहस के दौरान भी उन्होंने अपनी नीतियों की वही दिशा रखने की पुष्टि की. जलवायु और व्यापार नीतियों की चर्चा के दौरान भारत का प्रसंग भी आया और ट्रंप ने दोहराया कि वे ऐसी जलवायु नीतियों का समर्थन नहीं करेंगे, जिनका सारा लाभ चीन और भारत जैसे देशों को मिले. प्रवासन और व्यापार घाटे को लेकर भी ट्रंप की नीतियां सख्त रहने वाली हैं. इसलिए यदि डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर उम्मीदवार को लेकर चल रहे संशय की स्थिति में ट्रंप बाजी मार ले जाते हैं, तो भारत समेत विश्व को कई नीतियों पर फिर से तालमेल बिठाना होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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