कैलाशपति मिश्र का नाम जब भी जुबां पर आता है, छाती चौड़ी हो जाती है. भारत के गैर-कांग्रेसी राजनीति में 60 से 70 के दशक में अटल जी जिस तरह उच्च स्थान पर विराजमान थे, बिहार की गैर-कांग्रेसी राजनीति में कर्पूरी ठाकुर के साथ यदि किसी को उसी तरह का स्थान मिलता था, तो वे कैलाशपति मिश्र थे. मुझे याद है, अटल जी कहा करते थे, “जनसंघ-भाजपा के गठन की सार्थकता तब है जब देश के हर हिस्से में भारत माता की जय कहने वालों की फौज खड़ी हो जाए.” ठीक उसी तरह कैलाशपति मिश्र का जनसंघ के प्रचार में कहना था, “केवल चुनाव जीतना हमारा उद्देश्य नहीं है, बल्कि दीये (जनसंघ की निशानी) को घर-घर पहुंचाना हमारा उद्देश्य है, ताकि देश की भावी पीढ़ी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना से परिचित होकर आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदमताल करे.” आज जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम भारत को दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाते देख रहे हैं, तो मुझे कैलाशपति की बरबस याद आ रही है.
बिहार के इस लाल ने जनसंघ-भाजपा का जो बिरवा बिहार में रोपा और अपने खून-पसीने से सींचा, वह आज वटवृक्ष बन गया है. बक्सर में जन्मे कैलाशपति मिश्र ने युवावस्था में जो आंदोलन किया, जो अभियान चलाया, वह युवाओं के लिए आज भी प्रेरणा-पुंज है. वह 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में छात्र के रूप में शामिल हुए और गिरफ्तार कर लिये गये. पर उन्होंने बर्बरता व अन्याय के विरुद्ध घुटने टेकने से मना कर दिया. बिहार में भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे कैलाशपति से नयी पीढ़ी को एक बात सीखनी चाहिए कि दिन-रात मेहनत कर संगठन गढ़ने के बाद भी वे कभी सत्ता के शिखर पर चढ़ने के लिए लालायित नहीं रहे. पार्टी ने जो दायित्व दिया उसे बखूबी निभाया. राजनीति में रहकर भी संघ जीवन जीया, शुचिता का आजन्म पालन किया. जनता और सामान्य कार्यकर्ताओं से अपने संपर्क की नाल को जोड़े रखा. गांव-गांव में संपर्क स्थापित कर ग्रामीणों की पीड़ा का अनुभव किया और उसे दूर करने का सतत प्रयत्न किया. जब नेता अपने कृत्य के माध्यम से संदेश देता है कि मैं भी आम जन की तरह तकलीफ उठाकर गंतव्य तक पहुंचूंगा, तो कार्यकर्ता भी स्वयं को झोंक देता है. जब कांग्रेस ने देश में आपातकाल लागू किया, तब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जनसंघ के नेताओं ने स्वयं के अस्तित्व को भूलकर जनता पार्टी में अपने आपको समाहित कर लिया था.
तब बिहार की कर्पूरी ठाकुर की सरकार में कैलाशपति वित्त मंत्री बने थे. बिहार को अन्याय, असुरक्षा व असुविधा के घुप अंधेरे से निकालकर गांव-गरीब-किसान के कल्याण की अनेक योजनाओं को उन्होंने मूर्त रूप दिया था. कैलाशपति ने 1971 का लोकसभा चुनाव जनसंघ के टिकट पर पटना से लड़ा, पर हार गये. वर्ष 1977 में बिक्रम सीट से बिहार विधानसभा चुनाव जीता. उनका ध्येय एक था- बिहार को सुजलाम सुफलाम बनाना है. इसलिए निर्लिप्त भाव से पद पर रहते हुए भी सेवा करते रहे. जब 1980 में भाजपा की स्थापना हुई, तब वह भाजपा की बिहार इकाई के पहले अध्यक्ष बने. उन्होंने 1995 से 2003 तक भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया. वर्ष 2003 में उन्हें गुजरात का राज्यपाल नियुक्त किया गया, वे राजस्थान के कार्यवाहक राज्यपाल भी रहे.
मिश्र ने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया. वे अद्भुत प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने पहले जनसंघ, फिर भाजपा को सींच कर पार्टी को मुकम्मल ऊंचाई तक पहुंचाया. उनके समर्पण भाव का ही द्योतक है कि उन्हें तीन बार भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. उनकी तपस्या का ही परिणाम है कि पूरे बिहार में भाजपा पुष्पित-पल्लवित हुई. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने 2016 में उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया. गरीब कल्याण का एजेंडा हो या अंत्योदय की संकल्पना को साकार करने का अनुष्ठान, ऋषितुल्य कैलाशपति मिश्र आजीवन इसके लिए समर्पित रहे. बिहार को सुदृढ़ व भयमुक्त बिहार बनाने का जो स्वप्न उन्होंने देखा था, जिसके लिए तपस्या की थी, हम उनके सपनों को पूरा कर उन्हें अपनी आदरांजलि दे पाएं, तो जीवन धन्य समझेंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)