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चीन की नापाक कोशिशों पर रहे नजर

चीन को यह डर लगता है कि भारत कहीं कुछ सख्त कदम न उठा ले, जिससे उसके आर्थिक गलियारे का काम प्रभावित हो जाये.

By शशांक | September 2, 2020 2:06 AM

शशांक, पूर्व विदेश सचिव, भारत सरकार

shashank1944@yahoo.co.in

मई से चीन एलएसी पर लगातार घुसपैठ कर रहा है. हाल ही में उसने रात के अंधेरे में पैंगोंग झील के पास एक बार फिर घुसपैठ की है. चीन की इन हरकतों से ऐसा लग रहा है कि वह पाकिस्तान, नेपाल और ईरान के साथ मिलकर भारत पर दबाव बनाना चाहता है. क्योंकि भारत ने शुरू से ही चीन के आर्थिक गलियारे, जो पाकिस्तान से होकर गुजर रहा है, का विरोध किया है और कहा है कि यह भारत के संप्रभु क्षेत्र से होकर गुजरता है, इसलिए भारत इस गलियारे को स्वीकृति नहीं देगा.

इसके लिए भारत से स्वीकृति नहीं ली गयी है. इसलिए चीन को यह डर लगता है कि भारत कहीं कुछ सख्त कदम न उठा ले, जिससे उसके आर्थिक गलियारे का काम प्रभावित हो जाये. इसी डर के कारण वह भारत पर पाकिस्तान, नेपाल और ईरान के माध्यम से दबाव बनाकर रखना चाहता है, ताकि वह अपने इस आर्थिक गलियारे को मजबूती प्रदान कर सके.

दरअसल, इस आर्थिक गलियारे से चीन की बहुत सी बड़ी परियोजनाएं जुड़ी हुई हैं, जिसके जरिये वह महाशक्ति बनने का सपना संजोये बैठा है. इसमें पहले स्थान पर है आर्थिक व सैन्य महाशक्ति बनना. उसे लगता है कि पाकिस्तान के कारण, महाशक्ति बनने की उसकी महत्वाकांक्षी राह में भारत रोड़ा अटका सकता है. इसलिए वह बार-बार इस तरह की हरकतें कर रहा है, ताकि भारत पर दबाव बना सके. जबकि उसका मुख्य झगड़ा हांगकांग, ताइवान और दक्षिण चीन सागर में है.

चीन द्वारा बार-बार एलएसी पर घुसपैठ का एक कारण पाकिस्तान भी हो सकता है, क्योंकि वह बार-बार चीन को भारत के खिलाफ बरगला रहा है. इसलिए उसे भारत को लेकर बहुत डर लग रहा है. दूसरे, पाकिस्तान चीन से पैसा मांग रहा है, क्योंकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था काफी डांवाडोल हो रही है. सउदी अरब ने उसे पैसा दिया नहीं है. चीन से पैसा मांगने गया, तो उसने भी मना कर दिया. चूंकि चीन ने पाकिस्तान को पैसे देने से मना कर दिया है, इसलिए वह भारत के उपर दबाव बनाकर पाकिस्तान को इस तरह से मदद देना चाहता है.

चीन की इस हरकत का भारत को जवाब देना होगा. हमारी सुरक्षा को मजबूत करके रखना होगा और चीन को बताना होगा कि उसकी मनमानी नहीं चलेगी. भारत अपनी संप्रभुता से उसे खिलवाड़ नहीं करने देगा. चीन के साथ जब हम राजनयिक और सैन्य स्तर पर बातचीत करने के लिए तैयार हैं, तो चीन को भी चाहिए कि वह बातचीत के लिए आगे आये . भारत एक शांतिप्रिय देश है, लेकिन वह कभी नहीं चाहेगा कि चीन उसकी संप्रभुता के साथ खिलवाड़ करे और उस पर प्रभाव डालने की कोशिश करे.

पाकिस्तान को आतंकवाद को बढ़ावा देने में मदद करे. ईरान, अफगानिस्तान समेत अन्य देशों में आतंकवाद को फैलने में परोक्ष रूप से सहायता दे. ऐसी स्थिति भारत के लिए बहुत मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. इसलिए भारत को इन बातों को भी ध्यान में रखना है कि पाकिस्तान में जो आतंकवाद फैल रहा है, उसमें चीन किस तरह से उसकी मदद कर रहा है.

चीन, पाकिस्तान के साथ मिलकर भारतीय क्षेत्रों में आर्थिक गलियारा बना रहा है, और इस क्षेत्र में अपने सैनिकों की तैनाती कर रहा है. और अब तो इसने एलएसी पर, जहां पहले बात चलती रहती थी, वहां अपने सैनिकों को भेज रहा है. इसलिए चीन को इस बात को समझाने की आवश्यकता है कि यह सब नहीं चलेगा. भारत कभी नहीं चाहेगा कि उसकी संप्रभुता को कोई चुनौती दे, वहां आतंकवाद फैलाये. भारत यह भी नहीं चाहेगा कि चीन और बाकी के देश मिलकर भारत को अस्थिर करने की कोशिश करें.

चीन के सभी पड़ोसी देश इस समय उससे काफी नाराज हैं. इस समय चीन के साथ केवल नेपाल, पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान ही हैं. दक्षिण चीन सागर में भी उसके साथ एक देश नहीं खड़ा है. जहां तक दक्षिण चीन सागर में अमेरिका, भारत समेत अन्य देशों के युद्धपोतों की तैनाती की बात है तो वहां अभ्यास चलता रहता है. हिंद-प्रशात महासागर को लेकर अमेरिका की रणनीति ओपन सी रखने की है. भारत भी मानता है कि ओपन सी की रणनीति होनी चाहिए. इसलिए वहां भारत समेत बहुत से देश अभ्यास कर रहे हैं. चीन ने हिंद महासागर के भी कई द्वीपों पर कब्जा किया हुआ है, वहां अपने सैन्य अड्डे बनाये हैं, और भारत को चारों तरफ से घेरने की कोशिश की है, जिसकी उसे कोई आवश्यकता नहीं है.

इसलिए दक्षिण चीन सागर में चीन को यह भी संदेश देना है कि यहां भी ओपन सी की रणनीति अपनायी जानी चाहिए. दूसरे, इस क्षेत्र में भारत के सभी मित्र देश की मौजूदगी है, सभी आसियान में शामिल देश हैं. अपने इन्हीं मित्र देशों के साथ मिलकर भारत चाहता है कि यह पूरा क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत खुला रहे, न कि किसी एक के कब्जे में. चीन का यह कहना कि भारत ने एलएसी पार किया है, एकदम गलत बात है. एलएसी का सीमांकन ही नहीं हुआ है, इसीलिए वहां का क्षेत्र काफी विस्तृत है.

किसी जमाने में वहां भारतीय और चीनी सैनिक दोनों जाते रहते थे. लेकिन अब चीनी सैनिकों ने वहां के कई स्थानों पर स्थायी निर्माण करना शुरू कर दिया है, जिसका भारत ने विरोध किया है. यदि भारतीय सैनिकों ने उनके उस निर्माण को हटा दिया है या उसे अपने कब्जे में ले लिया है, तो इसका अर्थ चीन को केवल इतना बताना है कि इस जगह स्थायी निर्माण नहीं हो सकता है, जब तक कि दोनों देश बातचीत के द्वारा आपस में तय ना कर लें कि एलएसी का किस तरीके से सीमांकन करना है. चीन एकतरफा बात करने की जो कोशिश करता है, वह नहीं चल पायेगा.

अक्साई चिन को लेकर चीन के मन में क्या चल रहा है, यह तो नहीं बताया जा सकता, लेकिन अक्साई चिन को वापस लेने का भारत का अभी कोई एजेंडा है. लेकिन अगर चीन अमेरिका के साथ भिड़ जाता है, तो हो सकता है कि अमेरिका तिब्बत की मदद को और बढ़ा दे, क्योंकि अमेरिका ने पहले से ही तिब्बत को ज्यादा मदद की कोशिश की है. यदि तिब्बत के मसले पर अमेरिका और चीन के बीच शीत युद्ध या युद्ध की स्थिति बनती है तब फिर अपने आप ही अक्साई चिन भारत के साथ मिल जायेगा.

(बातचीत पर आधारित)

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