घर में ही रखें रोजा
लॉकडाउन तीन मई तक चलना है, लेकिन इसकी अवधि बढ़ाकर 24-25 मई तक कर दिया जाना चाहिए यानी रमजान के पूरे महीने आखिरी रोजे तक यह चलना चाहिए. मेरा तो कहना है कि ईद के दिन को भी लॉकडाउन में रखा जाना चाहिए.
फिरोज बख्त अहमद
चांसलर, मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी
रमजान का पवित्र पावन महीना शुरू हो रहा है. इस बार यह अवसर पहले के रमजान महीनों से पूरी तरह अलग है. इस्लाम में हर व्यक्ति के लिए इस महीने में रोजा रखने की हिदायत है. इसकी बड़ी अहमियत है. जिन लोगों की तबियत ठीक नहीं है या फिर किन्हीं अन्य वजहों से रोजा रखना मुश्किल है, उन लोगों को छूट दी गयी है. ऐसे लोग ठीक होने पर या हालात बेहतर होने पर बाद में रोजा रख सकते हैं. रोजा रखने का संबंध सिर्फ उपवास या खान-पान से नहीं है, इसमें स्वच्छता बहुत महत्वपूर्ण है- स्वच्छता मन-मस्तिष्क की और आचरण की.
रोजा रखने के दौरान मुस्लिम धर्मावलंबी यह प्रयास करते हैं कि उनसे कोई गलत व्यवहार न हो, वे झूठ न बोलें, ऐसा कोई काम न करें, जिससे दूसरों को परेशानी हो. रमजान और रोजे का यह मतलब कतई नहीं है कि कानून का पालन न किया जाये. कायदे-कानून का पालन सबसे जरूरी है. जैसे कि अभी कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित लॉकडाउन चल रहा है तथा सरकार और मेडिकल संस्थाओं की तरफ से कई निर्देश दिये गये हैं, इनका पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए.
रोजे का एक बड़ा अहम पहलू यह है कि इस दौरान गरीब तबके, कामगारों और ऐसे लोगों का ख्याल रखा जाये, जिन्हें ठीक से खाना नहीं मिल पा रहा हो. हमें रोजा रखते हुए उनके रोजे और इफ्तार के बारे में सोचना चाहिए तथा उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार मदद करनी चाहिए. आस-पड़ोस के जरूरतमंद लोगों को राहत पहुंचाना चाहिए. जिसकी कमाई जैसी है, वह उसी के मुताबिक मदद करे, यही निर्देश किया गया है. यह तो मजहबी पहलू है, अब आते है मौजूदा हालात पर.
हाल ही मैंने प्रधानमंत्री मोदी को एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें यह कहा है कि उनकी घोषणा के मुताबिक यह लॉकडाउन तीन मई तक चलना है, लेकिन इसकी अवधि बढ़ाकर 24-25 मई तक कर दिया जाना चाहिए यानी रमजान के पूरे महीने आखिरी रोजे तक यह चलना चाहिए. मेरा तो कहना है कि ईद के दिन को भी लॉकडाउन में रखा जाना चाहिए.
रमजान का पावन महीना उपवास और खान-पान का पर्व कहा जाता है. यदि लॉकडाउन हट जाता है, तो ऐसा बहुत संभव है कि लोग सोशल-फिजिकल डिस्टैंसिंग की परवाह किये बिना बाहर निकलने लगेंगे, सुरक्षित रहने के उपायों का ध्यान नहीं रखा जायेगा, ‘जान है, तो जहान है’ की समझदारी को भी ताक पर रख दिया जायेगा. मुझे आशंका है कि बहुत सारे हमारे मुस्लिम भाई बाजारों में घूमना, जमघट लगाना और इफ्तार पार्टियां करना जैसी चीजें कर सकते हैं. नमाजों और तरावी में भी भीड़-भाड़ हो सकती है.
यह समझा जाना चाहिए कि तीन मई से लेकर 11-12 मई के हफ्ते में कोरोना वायरस के संक्रमण का ग्राफ चोटी पर होगा. ऐसे में हमारे जितने भी मुस्लिम भाई हैं, वे घर पर रहें और रोजा रखें. जिनकी प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) कम है, जो उम्रदराज हैं, जिनकी तबियत ठीक नहीं है, वे रोजा न रखें. इस्लाम में यह कहा गया है कि अगर आप रोजे के नियमों को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं, तो आपको रोजा छोड़ देना चाहिए. जब आपकी तबियत अच्छी हो जाये, तो बाद में कभी आप रोजा रख सकते हैं. आज दुनिया एक संकट में है.
यह संकट इंसान की गलती से आया हो या ऊपरवाला हमारा इम्तिहान ले रहा हो, जो भी वजह हो, इसको हम सभी को झेलना है. वायरस के संक्रमण के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है. इसलिए एहतियात भी रखा जाना चाहिए और इसी के साथ रोजा भी रखा जाना चाहिए.मुझे डर है कि यदि तीन मई को लॉकडाउन हटा लिया जाता है, तो जैसा कि पहले एक छोटे से गुट द्वारा बुलाये गये एक मजहबी जुटान में हुआ और बड़े पैमाने पर संक्रमण फैला, वैसा फिर हो सकता है. ऐसी आपराधिक लापरवाही फिर कतई नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह देश और समुदाय दोनों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है. कुछ ऐसे गुट हैं, जो या तो जमीन के नीचे की बात करते हैं या फिर आसमान से ऊपर की, वे दुनिया की बात नहीं करते हैं.
मुस्लिम समुदाय को सभी निर्देशों का पालन करते हुए घर में रोजा रखना चाहिए और नमाज पढ़ना चाहिए. साथ ही, आस-पड़ोस के जरूरतमंद लोगों का ध्यान रखना चाहिए. मुस्लिम समुदाय को किसी गुट या कुछ लोगों की बेजा हरकतों का समर्थन नहीं करना चाहिए. हाल में एक गुट की गलत कारगुजारियों से समूचे मुस्लिम समुदाय का नुकसान हुआ है. उन कारस्तानियों का बचाव कतई जायज नहीं है.
कुछ ऐसी रिपोर्टें भी आयी हैं, जिनमें गरीब मुस्लिम कारोबारियों को धार्मिक आधार पर धमकी दी गयी और मारपीट की गयी. यह ठीक नहीं है. दोनों समुदायों को मिल-जुलकर देश की शानदार गंगा-जमुनी तहजीब को आगे बढ़ाना चाहिए तथा किसी भी तरह के भेदभाव या तनाव से परहेज करना चाहिए, क्योंिक इससे न तो धर्मों का भला होगा और न ही देश का. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)