अराजकता के किले बनते ब्रिटिश शहर
कर्ज में डूबती सरकारें जहां भी सुधार की कोशिश करती हैं, उसी क्षेत्र के राजनीतिक गुट हिंसक विरोध पर उतर आते हैं. बड़े शहरों के बाहर और भीतर ऐसे किलेनुमा अराजक क्षेत्र बन गये हैं, जहां उन्हीं समुदायों और गुटों के कायदे-कानून चलते हैं, जो वहां रहते हैं.
सत्ता में आने के दूसरे ही हफ्ते में दो शहरों में हुए दंगों ने प्रधानमंत्री किएर स्टामर की लेबर सरकार को झकझोर दिया है. पिछले गुरुवार की शाम को इंग्लैंड के उत्तरी शहर लीड्स के हेयरहिल्स और पूर्वी लंदन के वाइटचैपल इलाके में लगभग एक साथ दंगे हुए. पर न दोनों में कोई आपसी संबंध था और न ही किसी को गंभीर चोट आयी. गृह मंत्री इवेट कूपर ने कड़ा बयान जारी करते हुए कहा कि कानून-व्यवस्था भंग करने वालों को कानून की पूरी ताकत दिखायी जायेगी. प्रधानमंत्री ने पुलिस को जांच में सरकार का पूरा सहयोग देने का भरोसा दिलाया है. कभी अपने ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध रहे लीड्स में हुए दंगे का कारण हेयरहिल्स इलाके में रहने वाला रोमा खानाबदोश परिवार था.
परिवार के चार बच्चों में से एक की पिटाई का वीडियो किसी पड़ोसी ने शहर की बाल कल्याण एजेंसी को भेज दिया था. बच्चों को पीटना ब्रिटेन में गंभीर अपराध माना जाता है. इसलिए एजेंसी ने पुलिस बुलाकर बच्चों को बाल कल्याण केंद्र ले जाने की कोशिश की. बच्चों के परिवार ने झगड़ना शुरू किया और उनके हिमायतियों की भीड़ जुटने लगी. पुलिसकर्मियों ने बच्चों को खींचकर वैन में डालने की कोशिश की. टिक-टॉक पर इनके वीडियो देखकर उत्तेजित हुई भीड़ ने पुलिस पर पथराव करना और बोतल बम फेंकना शुरू कर दिया. हेयरहिल्स के मुस्लिम नगर पार्षद ने ढाल बनकर पुलिसकर्मियों को भीड़ से बचाया.
पुलिस और दंगाइयों के झगड़े को देखकर लगभग दो हजार की भीड़ जमा हो गयी थी, जिसने पथराव, तोड़-फोड़ और आगजनी की. मुठभेड़ और हिंसा के डर से न दमकल आयी और न पुलिस. पुलिस आधी रात को आ सकी और स्थिति को काबू में लिया. गनीमत रही कि कई घंटे चले इस दंगे में कोई हताहत नहीं हुआ. दंगा हेयरहिल्स के रोमा समुदाय के लोगों ने शुरू किया था, पर बाद में पुलिस पर अपना रोष निकालने के लिए पाकिस्तानी और बांग्लादेशी समुदाय के नकाबपोश दंगाई भी इसमें शामिल हो गये थे. अभी तक आधा दर्जन लोग पकड़े गये हैं. हेयरहिल्स की आबादी करीब 31 हजार है, जिसमें से लगभग आधे पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मूल के हैं और पांच हजार रोमा भी हैं, जो मानते हैं कि पुलिस उन्हें जान-बूझकर निशाना बनाती रही है. लीड्स नगर परिषद का कहना है कि गुरुवार का दंगा हेयरहिल्स और लीड्स के सामुदायिक चरित्र की पहचान नहीं है. पर वास्तविकता उतनी भली नहीं है.
तीन साल पहले इसी इलाके में रोड टैक्स डिस्क की चोरी के संदेह में बांग्लादेशी मूल के एक व्यक्ति की गिरफ्तारी के विरोध में दंगे भड़क उठे थे, जिनमें पुलिस पर हमले हुए थे और 25 कारें जला दी गयी थीं. इस घटना से बीस साल पहले मैनचेस्टर के उपनगर ऑल्डहैम में नस्लवादी दंगे हुए थे, जो ब्रैडफर्ड, लीड्स और बर्नली जैसे शहरों में भी फैल गये थे. उन दिनों भी ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार ही थी. दो साल पहले मध्य इंग्लैंड के लेस्टर में एशिया कप क्रिकेट में पाकिस्तान पर भारत की जीत के जलूस को लेकर दंगे भड़के थे और दंगाई जिहादी गुटों और वामपंथी मीडिया ने इन दंगों का दोष भारत की मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विभाजक नीतियों के प्रभाव पर मढ़ने की कोशिश की थी. कुछ वैसा ही पिछले गुरुवार की शाम को पूर्वी लंदन के बांग्लादेशी बहुल इलाके वाइटचैपल में हुआ.
स्वतंत्रता सेनानियों के लिए नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ हो रहे हिंसक छात्र प्रदर्शनों और दंगों में हिंसा और मौतें ढाका में हो रही थीं, पर उन्हें लेकर प्रदर्शनकारियों के बीच भिड़ंत और दंगे पूर्वी लंदन में शुरू हो गये. शेख हसीना सरकार के विरोध और समर्थन में निकले सैंकड़ों प्रदर्शनकारी आपस में भिड़ गये. जब पुलिस ने उन्हें शांत कराने की कोशिश की, तो वे मिलकर पुलिस पर टूट पड़े. इसमें दो पुलिसकर्मी घायल हुए और कई कारों को नुकसान पहुंचा. एक व्यक्ति को दंगाई गतिविधियों के संदेह में गिरफ्तार किया गया. ऐसे ही प्रदर्शन सुनक सरकार और नयी लेबर सरकार की गाजा नीति के विरोध में भी हुए थे, जिनका असर हालिया संसदीय चुनाव में लगभग एक दर्जन सीटों में दिखा.
राजनीतिक हिंसा पर ब्रिटिश सरकार के सलाहकार लॉर्ड वॉलनी ने चेतावनी दी है कि राजनीति में पल रहे जहरीले और खतरनाक वातावरण में किसी नेता की हत्या का खतरा बढ़ रहा है. वॉलनी ने बताया कि ब्रिटेन में भी कुछ प्रचार गुट जीत के लिए अमेरिका जैसी ही नफरती और विरोधी का दानवीकरण करने वाली राजनीतिक भाषा का प्रयोग करने लगे हैं. कुछ दिन पहले संसद के सभापति सर लिंडसे होएल ने भी कुछ सांसदों को मिली धमकियों और उनके दफ्तरों पर हुए हमलों को लेकर चिंता जतायी थी. लेस्टर, ब्लैकबर्न, बरमिंघम और पूर्वी लंदन के कुछ संसदीय क्षेत्रों में लेबर पार्टी उम्मीदवारों पर गाजा समर्थक उम्मीदवारों के समर्थन में दौड़ से हट जाने के दबाव भी डाले गये थे.
उनके प्रचार कार्यालयों पर तोड़-फोड़ हुई, नकाबपोश गुंडों ने चुनाव रैलियों में रुकावट डालीं, टायर पंक्चर किये और जान की धमकियां भी दी गयीं. महिला उम्मीदवार अधिक निशाने पर रहीं. जिन संसदीय क्षेत्रों में डराने धमकाने की कोशिशें हुईं, वहां गाजा समर्थक जिहादियों या वामपंथियों का प्रभाव अधिक था. इसलिए लॉर्ड वॉलनी ने गृह मंत्री इवेट कूपर और सुरक्षा मंत्री डैन जारविस से त्वरित जांच कर यह पता लगाने की सलाह दी है कि विभिन्न संसदीय क्षेत्रों में दबाव डालने वाले गुटों के बीच कहीं कोई आपसी तालमेल तो नहीं था.
लॉर्ड वॉलनी ने कहा कि राजनीतिक गुटों का अपनी विचारधारा और नीतियों को ब्लैकमेल और आतंक के जरिये प्रतिनिधियों पर थोपना लोकतंत्र की प्रक्रिया के लिए घातक है. विडंबना यह है कि ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में धीरे-धीरे अब यही हो रहा है. कर्ज में डूबती सरकारें जहां भी सुधार की कोशिश करती हैं, उसी क्षेत्र के राजनीतिक गुट हिंसक विरोध पर उतर आते हैं. बड़े शहरों के बाहर और भीतर ऐसे किलेनुमा अराजक क्षेत्र बन गये हैं, जहां उन्हीं समुदायों और गुटों के कायदे-कानून चलते हैं, जो वहां रहते हैं. फ्रांस में इन्हें बांल्यू कहते हैं. ब्रिटेन में नो-गो या अगम्य क्षेत्र कहते हैं. पुलिस भी वहां जाने से कतराती है. लीड्स, ब्रैडफर्ड, ऑल्डहैम, बरमिंघम और पूर्वी लंदन में ऐसे कई इलाके हैं. ये वे शेर हैं, जिनकी सवारी से लेबर पार्टी ने प्रचंड बहुमत तो हासिल कर लिया है, पर इनकी मांगें करना और इन पर काबू रख पाना कड़ी चुनौती साबित होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)