शानदार और दिलकश गायक थे केके

वे मीडिया और टीवी शो के साथ कभी-कभार मुश्किल से जुड़ते थे. तभी नाम से इतना मशहूर होने के बावजूद उनका चेहरा कम ही लोग पहचानते थे.

By प्रदीप सरदाना | June 3, 2022 7:20 AM
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प्रदीप सरदाना, वरिष्ठ पत्रकार

pradeepsardana29@gmail.com

पिछले चार महीनों में ही लता मंगेशकर, बप्पी लाहिड़ी, शिवकुमार शर्मा, सिद्धू मूसेवाला जैसे कलाकारों के बाद अब हर दिल अजीज गायक केके का जाना संगीत प्रेमियों के लिए बड़ा आघात है. केके ने 31 मई को कोलकाता में एक संगीत कार्यक्रम के बाद जिस तरह दुनिया को अलविदा कहा, वह दुखी कर देता है. केके कोलकाता के नजरुल मंच पर एक घंटे तक अपने गीतों से सभी को मंत्रमुग्ध कर रहे थे, लेकिन कुछ पलों बाद ही उनके निधन ने सबको झकझोर दिया. वे अपनी रूहानी आवाज की बदौलत जल्द ही फिल्मी दुनिया के एक ऐसे गायक बन गये थे, जिनके सुरों ने दमघोंटू हो रहे फिल्म संगीत में ताजी हवा के झोंकों का काम किया.

दिल्ली में एक मलयाली परिवार में 23 अगस्त, 1968 को जन्मे केके का पूरा नाम कृष्ण कुमार कुन्नथ था. इनके पिता सीएस नायर तो संगीत में रुचि रखते ही थे, लेकिन केके की माता कुन्नथ कनकावल्ली के रगों में ही संगीत था. इनकी नानी तो संगीत की शिक्षिका ही थीं. यही कारण था कि केके के मुख से बचपन से ही संगीत लहरियां निकलने लगी थीं. उस समय तो सब हैरान रह गये, जब केके ने दिल्ली कैंट स्थित अपने माउंट सेंट मैरी स्कूल में सिर्फ सात साल की उम्र में पहली बार एक गीत- जब अंधेरा होता है- गाकर सबका दिल जीत लिया. केके बचपन से ही किशोर कुमार के बहुत बड़े प्रशंसक थे. जब वे कक्षा छह में पढ़ते थे, तो उन्हें एक लड़की ज्योति से प्रेम हो गया. ज्योति को केके ने एक गीत- प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है- सुनाया, तो वे भी उन्हीं की हो गयीं. केके ने तभी सभी को कह दिया, वे शादी करेंगे, तो ज्योति से करेंगे. केके ने जब 1991 में ज्योति से शादी की, तब वे 23 साल के थे.

हालांकि शादी करने के लिए तब केके को छह महीनों के लिए एक नौकरी करनी पड़ी, जिससे परिवारवालों को लगे कि लड़का कुछ कमाता है. यूं जब केके ने दिल्ली के करोड़ीमल कॉलेज से बीकॉम किया, उसके बाद से ही वे संगीत के माध्यम से कुछ न कुछ कमाने लगे थे. उनको एक दिन गायक-संगीतकार हरिहरन ने सुना, तो उन्होंने केके को मुंबई आने को कहा. साल 1994 में केके दिल्ली की गलियां छोड़ मुंबई पहुंच गये, जहां हरिहरन ने उनको संगीत और विज्ञापनों की दुनिया से जुड़े लेसली लुइस के पास भेजा. वे केके की आवाज सुन उन पर फिदा हो गये. यह संयोग था कि जब 24 जुलाई, 1994 को केके को पहली संतान के रूप में पुत्र नुकुल की प्राप्ति हुई, उसी दिन लेसली ने केके से मुंबई में पहला जिंगल रिकॉर्ड कराया. उसी के बाद केके जिंगल्स की दुनिया के राजा बन गये. साल 1999 आते-आते केके 11 भाषाओं में 3500 जिंगल गाकर बड़ी उपलब्धि हासिल कर चुके थे.

जिंगल करते-करते एक दिन केके को उनके मित्र विशाल भारद्वाज ने फिल्म ‘माचिस’ के एक गीत की कुछ पंक्तियां ‘छोड़ आये हम वो गलियां’ गाने को दीं. वह गीत काफी लोकप्रिय हुआ था. लेकिन केके की गायकी को पर लगे 1999 में. इस बरस जब सोनी म्यूजिक ने केके का पहला म्यूजिक एल्बम ‘पल’ रिलीज किया, तो केके की आवाज का जादू चल निकला. इस एल्बम के गीत- हम रहे या ना रहें कल, कल याद आयेंगे ये पल’ ने तो ऐसी धूम मचायी कि आज भी इस गीत का जादू बरकरार है. यह भी एक संयोग था कि इसी गीत से केके ने अपनी संगीत यात्रा शुरू की थी. इसी गीत को कोलकाता में गाने के बाद उनकी संगीत ही नहीं, जीवन यात्रा का भी अंत हो गया. उधर 1999 में ही फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ में जब संगीतकार इस्माइल दरबार ने केके को इस फिल्म का एक गीत दिया- तड़प तड़प के इस दिल से. इस एक गीत ने ही केके को रातों-रात सिंगिंग स्टार बना दिया.

उसके बाद तो केके ने जो भी गीत गाया, वह हिट होता चला गया. लगभग सभी समकालीन संगीतकारों के साथ उन्होंने गाया था. उनके फिल्म करियर में- आंखों में तेरी, खुदा जाने, तू ही मेरी शब है, जिंदगी दो पल की, दस बहाने, सजदा, सच कह रहा है दीवाना, तू जो मिला, क्या मुझे प्यार है और अलविदा जैसे कितने ही गीत ऐसे हैं, जो अमर हैं. हालांकि कई दिलकश गीत देने के बावजूद पुरस्कार के मामले में वे अक्सर पिछड़ते रहे थे.

इधर उन्हें नये गीत कम मिल रहे थे. यूं हाल ही में फिल्म ‘शेरदिल’ में बरसों बाद केके ने गुलजार के लिखे गीत को गाया, तो वे बहुत खुश थे. केके की सबसे बड़ी बात यह थी कि वे फिल्म पार्टियों से कुछ दूर ही रहते थे. अपनी रिकॉर्डिंग खत्म होते ही वे घर भागते थे. सोशल मीडिया में वे भले इंस्टाग्राम से तो बराबर जुड़े थे, लेकिन वे मीडिया और टीवी शो के साथ कभी-कभार मुश्किल से जुड़ते थे. तभी नाम से इतना मशहूर होने के बावजूद उनका चेहरा कम ही लोग पहचानते थे. वे अपने गीतों से दिल-ओ-दिमाग में तो बसे थे, आंखों में नहीं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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