कामगारों की कमी
जिन परिस्थितियों में कामगारों को शहरों से पलायन करना पड़ा है और जिन कठिनाइयों को उन्होंने भुगता है, उसका गहरा असर उनके भरोसे पर हुआ है. उन्हें फिर से भरोसा दिलाना होगा.
दो महीने से अधिक समय से लगभग ठप पड़ीं आर्थिक गतिविधियों को फिर से चालू करने के इरादे से इस सप्ताह से लॉकडाउन में बहुत हद तक ढील दी गयी है, लेकिन औद्योगिक और कारोबारी केंद्रों में कामगारों की कमी की समस्या इस कोशिश में अवरोध बन रही है. मार्च के आखिरी हफ्ते में लॉकडाउन के पहले चरण की घोषणा के साथ ही देशभर से प्रवासी मजदूरों ने वापस अपने गांवों को लौटना शुरू कर दिया था.
यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है. एक ताजा रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि आगामी महीनों में निर्माण और रियल इस्टेट, मैनुफैक्चरिंग और स्वास्थ्य सेवा व दवा उद्योग समेत प्रमुख क्षेत्रों को 40 से 50 फीसदी कामगारों की कमी का सामना करना पड़ सकता है.
चूंकि यह कमी कुशल और अकुशल- दोनों तरह के कामगारों की है, सो इसका नकारात्मक असर उत्पादन पर पड़ना स्वाभाविक है. श्रमिकों की कमी का दूसरा पक्ष यह है कि जिन गांवों में वे लौटकर गये हैं, वहां उनके लिए रोजगार के विकल्प बहुत सीमित हैं. इसका सीधा असर बेरोजगारी बढ़ने के रूप में सामने है.
आमदनी नहीं होने या कम होने से मांग भी घट रही है. यह भी आर्थिकी के लिए बहुत चिंताजनक है. कंपनियों ने इस समस्या का समाधान के लिए आस-पड़ोस के इलाकों से लोगों को भर्ती करने की प्रक्रिया शुरू की है तथा वे अधिक वेतन-भत्ते का प्रस्ताव रख रही हैं. इससे उनके खर्च में बढ़ोतरी होगी, जिसका असर सेवाओं और वस्तुओं की बढ़ती कीमत तथा मुनाफे में कमी की शक्ल में हो सकता है.
यह स्थिति स्थानीय कामगारों के लिए सकारात्मक है, पर यदि प्रवासियों के लौटने के उपाय नहीं हुए, तो उनके अपने इलाकों में रोजगार के उपलब्ध अवसरों पर दबाव बढ़ सकता है. इस संकट का सबसे अधिक प्रभाव दक्षिण भारतीय राज्यों पर पड़ा है, जो देश के अन्य हिस्सों से अधिक समृद्ध और साधन-संपन्न हैं. केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालय राज्य सरकारों के साथ मिल कर इस मुश्किल का हल निकालने में जुटे हुए हैं, जिनके परिणाम आने में कुछ समय लग सकता है.
चूंकि अभी संक्रमण का प्रसार थमा नहीं है तथा रोजगार को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, ऐसे में श्रमिकों का बहुत जल्दी वापस आना भी संभव नहीं दिखता है. जिन परिस्थितियों में उन्हें शहरों से पलायन करना पड़ा है और जिन कठिनाइयों को उन्होंने भुगता है, उसका गहरा असर उनके भरोसे पर हुआ है. उन्हें फिर से भरोसा दिलाना होगा कि उनकी समुचित देखभाल की व्यवस्था होगी.
ग्रामीण युवाओं को अच्छी आमदनी और सुविधाएं देकर लाया जा सकता है. कोरोना वायरस के संक्रमण और लॉकडाउन ने भारत समेत समूची दुनिया की अर्थव्यवस्था को समस्याग्रस्त कर दिया है. आर्थिक वृद्धि के पूर्ववर्ती आकलनों का अब कोई अर्थ नहीं रह गया है. आत्मनिर्भरता एवं स्थानीयता के संकल्प को व्यवहार में लाकर उत्पादन, मांग और रोजगार को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.